एक समय जिस शख्स के इशारे पर राजस्थान थम जाया करता था. सूबे की सरकारों को अपनी मांग के आगे झुकाने से लेकर सत्ता बदल देने की ताकत रखने वाले शख्स की सांसें गुरुवार को थम गई. हम बात कर रहे हैं गुर्जर आरक्षण आंदोलन के पुरोधा कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की, जिनका 82 साल की उम्र में निधन हो गया है. उनका अंतिम संस्कार टोडाभीम के मुंडिया गांव में किया जाएगा. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया तक ने बैंसला के निधन पर गहरा दुख जताया है.
गुर्जर समुदाय से आने वाले किरोड़ी सिंह बैंसला ने अपने करियर की शुरुआत शिक्षक के तौर पर की थी. देश सेवा के लिए कर्नल बैंसला ने सैनिक के रूप काम किया और उसके बाद अपने समाज उत्थान के लिए संघर्ष का रास्ता पकड़ा. उन्होंने पहले गुर्जर समाज को शिक्षित करने के लिए अलख जाया और अपना पूरा जीवन राजस्थान में गुर्जर समाज को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने के लिए लगा दिया. बैंसला ने आंदोलन के जरिए राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस दोनों की पार्टियों की नकेल कस कर रखा.
2007 में गुर्जर आरक्षण आंदोलन
राजस्थान में गुर्जर समुदाय गुर्जर को एसटी में शामिल कराने के मांग को लेकर कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व में साल 2007 में आंदोलन शुरू किया, जो साल 2008 तक जारी रहा. गुर्जर आरक्षण के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. गुर्जरों ने आरक्षण की मांग को लेकर राजस्थान में रेलवे ट्रैक को जाम कर दिया था और रेल पटरियां उखाड़ दी थी. इसके चलते संपूर्ण उत्तर भारत रेल मार्ग से कट गया था. हरियाणा से लेकर पश्चिमी यूपी और दिल्ली तक गुर्जर समुदाय सड़क पर उतर आए थे.
वसुंधरा सरकार की सत्ता से विदाई
गुर्जर आरक्षण आंदोलन पर नकेल कसने के लिए वसुंधरा राजे सरकार ने एक्शन लिया तो आंदोलन ने उग्र रूप अख्तियार कर लिया. गुर्जर आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग में 70 से अधिक गुर्जर समाज के लोग मारे गए थे. वसुंधरा सरकार के एक्शन के चलते गुर्जर समाज बीजेपी से नाराज हो गया और 2008 में विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे को हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी की सत्ता से विदाई में गुर्जर आरक्षण आंदोलन एक अहम कारण बनी थी. इसीलिए गहलोत ने सत्ता की कमान संभालते ही बैंसला को साधा.
गहलोत ने मानी बैंसला की मांग
राजस्थान की सत्ता से वसुंधरा राजे सरकार के जाने के बाद अशोक गहलोत की अगुवाई वाली सरकार ने गुर्जर समुदाय के साथ वार्ता किया. इस दौरान काफी दिनों तक सचिवालय में बैठकों को दौर चला. गहलोत सरकार ने गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति की मांगों का स्वीकर कर कर गुर्जर समाज को राहत प्रदान की. गुर्जर समुदाय को 5 फीसदी आरक्षण देने का वादा पूरा किया, लेकिन मामला कोर्ट में आकर फंस गया.
सियासी पिच पर नहीं टिक पाए बैंसला
राजस्थान में हार के बाद बीजेपी ने किरोड़ी बैंसला के सियासी आधार को देखते हुए अपने साथ मिला लिया. बैंसला 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर टोंक- सवाई माधोपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस के नमोनारायण मीणा से 317 वोटों से चुनाव हार गए थे. इसके बाद कर्नल बैंसला ने कुछ दिनों बाद भाजपा छोड़ दी थी, लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान एक बार कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला बीजेपी का दामन थाम लिया.
गहलोत सरकार को झुकाया
गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष रहते हुए गहलोत सरकार से अपनी मांगे मनवाने के लिए एक बार फिर से आंदोलन की धमकी दी थी. धमकी के बाद गहलोत सरकार बैकफुट पर आ गई. संघर्ष समिति की मांगे स्वीकार कर ली गई. गहलोत सरकार ने गुर्जर आरक्षण के दौरान मारे गए 3 लोगों को 5 लाख का मुआवजा और परिजनों को सरकारी नौकार दी. इतना ही नहीं सरकार ने बैंसला को भरोसा दिलाया थ कि गुर्जर आरक्षण आंदोलन के समय 2011 में हुई समझौते का पालन किया जाएगा. इसके बाद बैंसला ने आंदोलन को टाल दिया था.
2015 में वसुंधरा ने मानी मांगें
साल 2015 में राजस्थान में एक बार फिर से कर्नल बैंसला के नेतृत्व में गुर्जर आंदोलन हुआ, जिसके बाद तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे के साथ गुर्जर समाज की एक बैठक हुई थी. इस बैठक में गुर्जरों को 5 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया गया था. कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने राजस्थान के गुर्जरों के लिए अलग से एमबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत गुर्जर समाज को सरकारी नौकरियों में 5 फीसदी आरक्षण दिलाने में कामयाब रहे.
पहले राजस्थान के गुर्जर ओबीसी में थे, लेकिन बैंसला के दबाव में सरकार को एमबीसी में गुर्जरों को शामिल करना पड़ा. हालांकि, अभी भी गुर्जर समुदाय का कहना था उनकी मांग गुर्जर समाज को एसटी के दर्जा दिलाने का था. ऐसे में साल 2020 में एक बार फिर से गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति ने अपनी मांगों लेकर आंदोलन शुरू किया, जिसके बाद गहलोत सरकार ने किरोड़ी बैंसला के साथ समझौता किया था. बैंसला के निधन से गुर्जर समाज में शोक की लहर दौड़ गई है.