एक विदेशी महिला का कमाल कहें या फिर जुनून, राजस्थान के दौसा जिले के एक छोटे-से गांव गढ़ हिम्मतसिंह को ही उन्होंने 'हॉकी विलेज' बना डाला. जर्मनी के बर्लिन शहर में जन्मी एन्ड्रिया ने इस गांव का नक्शा ही बदल डाला है.
अब यहां के लड़कों के पास किताब मिले या न मिले, पर एक हॉकी स्टिक जरूर मिलेगी. एन्ड्रिया पिछले दो साल से इसी गांव में रहकर, इस गांव की ही होकर रह गईं. बस उसे नजर आती है हॉकी और गांव के हर बालक में उसे दिखता है हॉकी का खिलाड़ी. दो साल पहले शुरू एन्ड्रिया के इस सफर में मुश्किलें कम
नहीं आईं, लेकिन वह हिम्मत नहीं हारी.
इस छोटे से गांव में आज करीब 70 बच्चे हॉकी के खिलाड़ी हैं. गांव का रहने वाला हर कोई बालक चाहे किताब ठीक ढंग से पढ़ना जाने या न जाने, पर हॉकी के उतार-चढा़व से वह वाकिफ होगा. इस गांव से एन्ड्रिया के जुड़ाव की भी एक अजीबोगरीब दास्तान है. एन्ड्रिया टूरिज्म कारोबार से जुडी़ थीं, तभी गांव के एक युवक से उनकी पहचान हुई और वे टूरिस्ट ग्रुप के साथ गांव आ पहुंचीं. उसने जब गांव के लड़कों को टेढ़ी लकड़ी से खेलते देखा, तो सहसा ही उसके दिमाग में हॉकी का सपना तैरने लगा. एन्ड्रिया ने उसी वक्त तय कर लिया कि वे इस गांव को हॉकी विलेज बनाकर ही दम लेंगी.
एन्ड्रिया ने दो साल के अथक प्रयास से गांव में हॉकी के करीब 70 जूनियर खिलाड़ी तैयार कर लिए हैं. गांव में दो टीमें बनाई गई हैं. इनमें एक बालिकाओं की टीम है, दूसरी बालक समूह की टीम है. एन्ड्रिया के प्रयास से अब तक गांव के पांच लड़के नेशनल टूर्नामेंट खेलने में कामयाब हो चुके हैं.
दूसरी ओर, एड्रिया की मुश्किलें भी कम नहीं हैं. आर्थिक तंगी इस मिशन में अड़चन बन रही है. किस्मत से एक जर्मन क्लब से खेल मैदान के लिए एस्ट्रो टर्फ मिला था, जिसे सरकार की सहमति से मण्डावर स्कूल खेल मैदान पर लगाना था, लेकिन कुछ ग्रामीणों ने विरोध करके इस सपने को पूरा होने से रोक दिया. अब एन्ड्रिया निजी भूमि की तलाश कर इस काम को पूरा करना चाहती हैं.
गांव में किए गए विदेशी महिला के प्रयास से गांव के लोग बेहद उत्साहित हैं. विदेशी महिला गांव की आबोहवा में धुलमिल गई हैं और अब ग्रामीण बालकों को शिक्षा और खेल के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं. आखिरकार इससे बेहतर काम क्या हो सकता है?
अब जरूरत है एन्ड्रिया जैसी विदेशी महिलाओं की मदद किए जाने की. ऐसे में एक बड़ा सवाल यह है कि चाहे राज्य सरकार हो या केन्द्र सरकार, देश के इस अहम खेल को प्रोत्साहित कर रही इस महिला को आखिर मदद व संसाधन क्यों नहीं उपलब्ध करवाया जा रहा है?