शिरोमणि अकाली दल ने अपने संरक्षक और वरिष्ठ नेता सुखदेव सिंह ढींडसा को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया है. यह फैसला सुखदेव सिंह ढींडसा द्वारा पार्टी प्रमुख सुखबीर सिंह बादल पर निशाना साधने और आठ बागी नेताओं के निष्कासन को खारिज करने के एक दिन बाद लिया गया है.
ये फैसला पार्टी की तीन सदस्यीय अनुशासन समिति द्वारा सर्वसम्मति से लिया गया, जिसकी अध्यक्षता इसके अध्यक्ष बलविंदर सिंह भूंदड़ ने की. समिति में अन्य दो सदस्य महेशिंदर सिंह ग्रेवाल और गुलजार सिंह रणिके भी शामिल थे.
इस फैसले के बाद महेशइंदर ग्रेवाल ने कहा कि अनुशासन समिति का मानना है कि सुखदेव सिंह ढींडसा अपने पद की गरिमा को बनाए नहीं रख सके. वे न सिर्फ अनधिकृत बयान जारी कर रहे हैं, बल्कि पार्टी के संविधान और इसकी समृद्ध और गौरवशाली परंपराओं के भी खिलाफ काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अनुशासन समिति ने ढींडसा द्वारा हाल के दिनों में जारी किए गए विभिन्न बयानों के साथ-साथ जिस तरह से उन्होंने पार्टी से निकाले गए 8 नेताओं का नेतृत्व किया, उसे भी ध्यान में रखा गया है.
'ढींडसा ने ये कदम उठाने के लिए मजबूर किया'
अनुशासन समिति के अध्यक्ष बलविंदर सिंह भूंदड़ ने कहा कि ढींडसा ने पार्टी को यह कदम उठाने के लिए मजबूर किया. उन्होंने कहा कि पार्टी ने अपनी ओर से सभी असंतुष्ट पार्टी नेताओं को पार्टी बैठकों में शामिल होने और पार्टी फोरम में अपनी गलतफहमी पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया था. ऐसा करने के बजाय असंतुष्ट नेता पार्टी को कमजोर करने और विभाजित करने के लिए नागपुर में रची गई साजिश का हिस्सा बन गए. इन नेताओं ने 2015 में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के मुख्य अपराधी के बेबुनियाद आरोपों को भी बल दिया है. जब उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की गई तो ढींडसा ने नेताओं का बचाव करने की कोशिश की और यहां तक कि पार्टी कार्यकर्ताओं को गुमराह करने की कोशिश की. अब पार्टी ने ढींडसा के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है, ताकि रिकॉर्ड सही हो सके.
'अनुशासनहीनता किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं'
अनुशासन समिति के सदस्यों ने कहा कि अनुशासनहीनता किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी, साथ ही उन्होंने पंजाबियों से उन अवसरवादी व्यक्तियों से दूर रहने की अपील की, जिन्होंने पार्टी को कमजोर करने के लिए एजेंसियों के साथ साजिश रची है. समिति ने यह भी स्पष्ट किया कि वह पार्टी के संविधान के अनुसार काम कर रही है और उसे शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को कार्यसमिति द्वारा दी गई शक्तियों के तहत आवश्यक कार्रवाई करने का जिम्मा सौंपा गया है.
'पार्टी संरक्षक को निर्णय लेने का अधिकार नहीं'
समिति सदस्यों ने कहा कि निष्कासित नेता कार्यसमिति की बैठक बुलाने के लिए स्वतंत्र हैं, जबकि उन्होंने दावा किया कि कार्यसमिति के 98 प्रतिशत सदस्यों ने सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में विश्वास जताया है. महेशइंदर ग्रेवाल ने स्पष्ट किया कि पार्टी संरक्षक का पद मानद होता है और पार्टी की ओर से कोई भी निर्णय लेने का अधिकार उनके पास नहीं है. उन्होंने ढींडसा के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि निष्कासित नेताओं ने पार्टी में सुधार आंदोलन शुरू करने की कोशिश की थी. उन्होंने कहा कि "प्रेसीडियम के साथ समानांतर संगठन बनाना पार्टी विरोधी गतिविधि ही मानी जा सकती है".
महेशइंदर ग्रेवाल ने ढींडसा पर लगाए ये आरोप
महेशइंदर ग्रेवाल ने कहा कि ढींडसा ने अनुशासन समिति के अध्यक्ष के तौर पर तत्कालीन एसजीपीसी अध्यक्ष गुरचरण सिंह टोहरा को पार्टी से निष्कासित कर दिया था, क्योंकि उन्होंने प्रकाश सिंह बादल से पार्टी का कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त करने की अपील की थी. उन्होंने यह भी बताया कि कैसे ढींडसा को इस साल 5 मार्च को पार्टी में वापस आने पर सुखबीर सिंह बादल के आचरण में कुछ भी गलत नहीं लगा, लेकिन जब उनके बेटे परमिंदर ढींडसा को संगरूर से पार्टी का टिकट नहीं दिया गया, तो उन्होंने बादल के नेतृत्व पर सवाल उठाना शुरू कर दिया.
ग्रेवाल ने एक अन्य निष्कासित नेता प्रेम सिंह चंदूमाजरा की भूमिका के बारे में कहा कि चंदूमाजरा ने 1985 में कैबिनेट मंत्री के रूप में ऑपरेशन ब्लैक थंडर को मंजूरी दी थी और डेरा सिरसा प्रमुख को दी गई “माफी” की भी प्रशंसा की थी. उन्होंने कहा कि चंदूमाजरा के लिए पार्टी अध्यक्ष तब तक अच्छे थे, जब तक कि उन्होंने अपने परिवार के लिए दो विधानसभा सीटें और खुद के लिए एक लोकसभा टिकट सहित उनकी सभी मांगों को स्वीकार नहीं कर लिया, भले ही उनका इस पर कोई स्वाभाविक अधिकार नहीं था.