ये कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए कड़वी गोली की तरह है और यह उनकी मां, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से दी गई है. पार्टी की नेता ने 23 असंतुष्टों के ताकतवर ग्रुप को ध्वस्त करने का काम किया, वो ग्रुप जिसने उनके नेतृत्व के स्टाइल पर सवाल उठाने की हिम्मत दिखाई और पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की मांग की. सोनिया गांधी का ये कदम द ग्रैंड ओल्ड पार्टी की बड़ी युवा उम्मीद के लिए झटके के समान है.
कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC), उसके स्थायी आमंत्रितों, विशेष आमंत्रितों और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के पदाधिकारियों में पार्टी के ओल्ड गार्ड्स (पुराने दिग्गजों) को भरे जाना बहुत कुछ कहता है. इसी के इर्दगिर्द कांग्रेस को रीसेट करने का ताना-बाना बुना गया. इस कवायद में जितेंद्र सिंह, मणिकम टैगोर, देवेंद्र यादव और कुछ अन्य को छोड़कर ‘टीम राहुल’ की मौजूदगी के बहुत कम ही संकेत नजर आते हैं.
केसी वेणुगोपाल, अजय माकन, रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे AICC के पदाधिकारियों पर भी राहुल की छाप है, लेकिन ये सभी युवा गांधी के साथ खड़े होने का चतुर और सोचा समझा विकल्प चुनने से पहले भी राजनेता के तौर पर अपनी पहचान बना चुके थे. हैवीवेट अहमद पटेल, मुकुल वासनिक, हरीश रावत, ओमन चांडी, तारिक अनवर, राजीव शुक्ला और अन्य की मौजूदगी राहुल के लिए सोनिया का कड़ा रिमाइंडर है कि सबको साथ लेकर चलने की जरूरत है. इनमें जितिन प्रसाद से भी अच्छा कामकाजी रिश्ता रखना शामिल है जो कभी टीम राहुल का नियमित चेहरा हुआ करते थे और बाद में असंतुष्टों में शामिल हो गए.
चुनावी रास्ता
कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण का पुनर्गठन एक संकेत है कि वायनाड के सांसद को नामांकन के बजाय चुनावी रास्ता अपनाना होगा. राहुल के वफादार मधुसूदन मिस्त्री उस पैनल के प्रमुख हैं, जो पार्टी संगठन चुनावों की निगरानी करेगा. राजेश मिश्रा, कृष्णा बायरे गौड़ा, जोथिमणि एस और अरविंदर सिंह लवली पैनल के अन्य सदस्य हैं. लवली पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की मांग करने वाले पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले 23 नेताओं में शामिल थे.
असल में, हर पार्टी पैनल में एक पैटर्न रहा है, जिसके तहत कम से कम एक असंतुष्ट को शामिल किया जाता है. ये उनकी (असंतुष्टों) समझ के खोखलेपन को दिखाने के लिए है और साथ ही उन्हें अधीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर करने का सोनिया गांधी का तरीका है. ऐसा किए जाने से ‘बचेखुचे असंतुष्टों’- कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरूर, मिलिंद देवड़ा, विवेक तन्खा, पृथ्वीराज चव्हाण आदि के सामने नाजुक विकल्प ही बचा रह जाता है कि या तो समझौता करें या फिर अपने लिए कोई और रास्ता चुनें.
कांग्रेस के टॉप सूत्र इस बात पर जोर देते हैं कि के राजू और कनिष्क सिंह को शामिल न किए जाना ‘रणनीतिक’ कदम है क्योंकि इनका राहुल के सचिवालय का हिस्सा बना रहना जारी रहेगा और ये राहुल के औपचारिक तौर पर पार्टी अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद धमक के साथ वापसी की क्षमता रखते हैं.
मजबूत पकड़ तोड़ने की कोशिश
2006 (जब राहुल हैदराबाद में AICC महासचिव बने) और अब तक के बीच की अवधि में राहुल ने अहमद पटेल, अंबिका सोनी, मुकुल वासनिक, राजीव शुक्ला के अलावा 75 की उम्र से ऊपर के नेताओं की मजबूत पकड़ को तोड़ने की कई कोशिश कीं. लेकिन शुक्रवार को पार्टी की बड़ी कवायद में एके एंटनी, ओमान चांडी, मल्लिकार्जुन खड़गे और अन्य का CWC में स्थान बना रहते हुए देखा गया.
CWC में स्थायी और विशेष आमंत्रित सदस्यों की संख्या कांग्रेस पार्टी के संविधान का मखौल उड़ाती है. जिसके मुताबिक कायदे से कांग्रेस के टॉप नीति नियामक निकाय में 12 निर्वाचित और इतनी ही नामित सदस्यों की संख्या निर्धारित है. पवन कुमार बंसल, दिग्विजय सिंह, तारिक अनवर, सलमान खुर्शीद, राजीव शुक्ला और प्रमोद तिवारी जैसे नेताओं को गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, विवेक तन्खा और G23 के अन्य सदस्यों को शुक्रिया का नोट भेजने की आवश्यकता है. अगर आजाद ने अपने वफादारी के मुखौटे को न उड़ाया होता तो अनवर को इतनी आसानी से स्थान नहीं मिल सकता था.
मई 1999 में, अनवर ने शरद पवार और पीए संगमा के साथ मिलकर सोनिया को उनके विदेशी मूल के आधार पर चुनौती दी थी. लेकिन फिर राजनीति में, हर किसी को सीखने और जीने का हक है और सोनिया गांधी से बेहतर इसे कौन जानता है. ऐसा लगता है कि वह इन बुनियादी बातों को राहुल गांधी तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, वो राहुल जो अन्यथा उतावलेपन में दिखते हैं. उन्हें साफ संदेश है- एक टीम लीडर बनें. उनकी मां ने एक बार फिर अपनी सूझबूझ और प्रतिष्ठा को सिर्फ एक ख्वाहिश के लिए दांव पर लगा दिया है: राहुल को कामयाब बनाना और नेहरू-गांधी विरासत के लायक वारिस के तौर पर स्थापित करना.
(ये लेखक के अपने विचार हैं. पत्रकार-लेखक रशीद किदवई ORF के विजिटिंग फैलो हैं)