
पश्चिम बंगाल की सियासत में जो मामला इस वक्त सबसे ज़्यादा चर्चा में है, वह है ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी के बीच खटपट. कहा जा रहा है कि दोनों के बीच ये मनमुटाव कई महीनों से चल रहा है. फिलहाल इन खबरों से टीएमसी में राजनीतिक हलचल बढ़ गई है.
पार्टी के लिए अहम हैं अभिषेक
अपने और अभिषेक के बीच के मसले को सुलझाने के लिए अपने पद और अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए, ममता बनर्जी ने पुरानी राष्ट्रीय कार्य समिति को भंग किया और पार्टी में सभी औपचारिक पदों को अस्थायी रूप से खत्म कर दिया, जिससे पार्टी में सिर्फ उनके और महासचिव, पार्थ चट्टोपाध्यायपार्थ के पास ही औपचारिक पद रह गया था. पार्टी के वफादारों ने इस फैसले का 'मास्टर स्ट्रोक' के रूप में स्वागत किया. इस कदम से दो फायदे होते हैं- पार्टी की कलह खत्म, दूसरा अभिषेक बनर्जी का चेहरा और भविष्य दोनों गुटबाजी से बच जाते हैं.
उन्होंने 20 सदस्यीय कार्यकारी राष्ट्रीय समिति बनाई, अभिषेक बनर्जी इस समिति के सदस्य हैं, लेकिन इसमें उनके समर्थक नहीं हैं. ऐसा करके ममता बनर्जी ने एक संदेश दिया है कि अभिषेक उनके लिए अहम हैं जिन्हें वह बचाएंगी. राज्यसभा सदस्य सौगत रॉय और डेरेक ओ'ब्रायन जैसे नेता भी इस समिति का हिस्सा नहीं हैं.
पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी की लड़ाई नई नहीं
यह पहली बार नहीं है जब तृणमूल कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं और नई पीढ़ी के बीच तकरार हुई हो. ऐसा कई बार हुआ है. 2021 के पश्चिम बंगाल राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान अभिषेक बनर्जी पार्टी में स्टार के रूप में उभरे थे. उनके पिता सिसिर अधिकारी अविभाजित मिदनापुर जिले के एक शक्तिशाली नेता थे, जिन्होंने 1998 में नवगठित तृणमूल कांग्रेस में सहयोग किया. पार्टी में अभिषेक बनर्जी के बढ़ते रुतबे से सुवेंदु नाराज थे. उन्हें लगता था कि एक शीर्ष नेता के तौर पर सफल होने की संभावनाएं खत्म हो जाएंगी.
तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय ने भी अभिषेक का विरोध किया था. हालांकि उनका यू-टर्न और फिलहाल अभिषेक को समर्थन देना थोड़ा अजीब तो है, लेकिन समझ में आता है. असल में, ये दोनों ही राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की वकालत करते हैं, जिन्हें 2021 के चुनावों में तृणमूल कांग्रेस की जीत का श्रेय दिया जाता है.
तृणमूल कांग्रेस में अभिषेक की एंट्री बाद में हुई थी, वो उत्तराधिकारी के तौर पर लाए गए थे और इसके लिए 2011 में तृणमूल युवा बनाया गया था, जो तृणमूल कांग्रेस के छात्र विंग से अलग था. मई 2021 में तृणमूल कांग्रेस की शानदार जीत के बाद वह पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बने.
प्रशांत किशोर की I-PAC पर विवाद
अभिषेक I-PAC और उसकी सिफारिशों को लागू करके तृणमूल कांग्रेस को मजबूत बनाना चाहते थे, जो अच्छी तरह से संगठित हो, स्वच्छ हो और पारदर्शी हो. लेकिन ये विवाद ओल्ड गार्ड बनाम नई पीढ़ी का विवाद बन गया. अभिषेक जिन चीजों को बदलना चाहते थे, उनमें से दो चीजों ने विवाद बढ़ाया. वह पार्टी में, एक व्यक्ति-एक पद और एक निश्चित रिटायरमेंट की उम्र के सिद्धांत को लागू करना चाहते थे. दोनों ही बदलावों का उद्देश्य अगली पीढ़ी के नेताओं को ज़्यादा जगह देना था.

खतरे को भांपते हुए और पार्टी के भीतर बढ़ती नाराजगी को दखते हुए, ममता बनर्जी ने पार्टी और I-PAC के बीच कोई औपचारिक संबंध नहीं होने की घोषणा करते हुए दूरी बना ली. लेकिन पुरानी कामकाजी राष्ट्रीय कार्यकारिणी को हटाकर नई बना लेने से पुरानी और नई पीढ़ी के बीच का तनाव खत्म नहीं होगा.
कैसे बढ़ा विवाद
तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और अभिषेक बनर्जी के बीच विवाद, पश्चिम बंगाल में 27 फरवरी को होने वाले 108 नगर पालिकाओं और नगर निगमों के चुनावों के लिए उम्मीदवारों की सूची को लेकर था. इस सूची में पार्टी के कई पुराने वफादारों के नामों की जगह नए आए लोगों के नाम थे. इससे पुराने लोग नाराज़ हुए, तो पार्टी ने उम्मीदवारों की नई सूची जारी की गई. लेकिन नाराज़गी का दौर खत्म नहीं हुआ, जिसके बाद जो हुआ वह अराजकता थी. तृणमूल कांग्रेस की वेबसाइट पर उम्मीदवारों की एक दूसरी लिस्ट सामने आई और किसी ने भी आधिकारिक तौर पर, सूची जारी करने की जिम्मेदारी नहीं ली.
ममता बनर्जी ने घोषणा की कि केवल एक आधिकारिक सूची थी, जिस पर पार्टी के महासचिव सुब्रत बख्शी और महासचिव पार्थ चट्टोपाध्याय ने साइन किए थे. कहा जा रहा था कि पार्टी के पासवर्ड का दुरुपयोग किया गया था और इसके लिए I-PAC को दोषी ठहराया गया था. आरोप-प्रत्यारोप के पीछे असली लड़ाई सामने आई. जो लिस्ट वेबसाइट पर पोस्ट की गई, माना जा रहा है कि वह अभिषेक बनर्जी की पसंद थी. यह लिस्ट ममता बनर्जी द्वारा एप्रूव की गई लिस्ट से काफी अलग थी.
ममता बनाम अभिषेक
बुआ-भतीजे के बीच तनातनी अप्रत्याशित नहीं है. इस तनातनी को सुलझाना दोनों की जिम्मेदारी है और ममता बनर्जी अब तक अभिषेक को खुलेआम बगावत करने के लिए, उन पर लगाम लगाने में कामयाब रही हैं. अभिषेक बनर्जी इस बात से पूरी तरह वाकिफ हैं कि तृणमूल कांग्रेस और पश्चिम बंगाल की राजनीति में ममता बनर्जी का दबदबा है. वह आइकन हैं, उत्साही और परिपक्व नेता हैं, जिनकी टक्कर में कोई नहीं है. अभिषेक तृणमूल कांग्रेस की शैली और संरचना पर झगड़ सकते हैं, अपनी कार्यशैली लागू करना चाहते हों, लेकिन वह जानते हैं कि उनका भविष्य और वर्तमान ममता बनर्जी की बदौलत है.
तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ पार्टी नेता समझते हैं कि पार्टी का नेतृत्व आखिरकार ममता बनर्जी के उत्तराधिकारी के पास ही जाएगा और वह अभिषेक ही होंगे. वे यह भी जानते हैं कि उन्हें पुराने लोगों को साथ लेकर ही चलना सीखना होगा. ममता बनर्जी ने राजनीतिक संपत्ति का प्रबंधन करना सीख लिया है, अब अभिषेक को भी ये करना सीखना होगा.
इनपुट- शिखा मुखर्जी