भारत में बढ़ते कोरोना संक्रमण के मामले एक तरफ दुनियाभर में सारे रिकॉर्ड तोड़ता जा रहा है तो दूसरी तरफ वैक्सीन के दामों को लेकर मोदी सरकार बनाम विपक्ष के बीच विवाद छिड़ गया है. सीरम इंस्टीट्यूट ने अपनी कोविशील्ड वैक्सीन का दाम केंद्र और राज्य सरकार के लिए अलग-अलग तय किए हैं. इसी बात को लेकर विपक्ष और कई गैर-बीजेपी शासित राज्य सरकारों ने मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और वैक्सीन पॉलिसी पर सवाल खड़े कर दिए हैं. यह पहली बार नहीं है, जब मोदी सरकार और विपक्ष आमने-सामने आए हों. इससे पहले लॉकडाउन लगाए जाने से लेकर मजदूरों की घर वापसी तक के मामले में ऐसी ही विवाद देखने को मिला था.
केंद्र और राज्य के लिए वैक्सीन के दाम अलग-अलग
बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार ने 18 साल के उम्र के ऊपर सभी लोगों एक मई से कोरोना वैक्सीन लगाने की अनुमित दे दी है. इसके साथ केंद्र सरकार ने वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों के लिए वैक्सीन के दाम अपनी मर्जी से तय करने की छूट दे दी है. इसी के बाद सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने अपनी कोविशील्ड वैक्सीन का दाम राज्य सरकारों के लिए 400 रुपये और निजी अस्पतालों के लिए 600 रुपये प्रति डोज तय किया है, जबकि कंपनी यही वैक्सीन केंद्र सरकार को डेढ़ सौ रुपये प्रति डोज की दर से दे रही हैं.
वैक्सीन को लेकर मोदी सरकार बनाम विपक्ष
वैक्सीन के अलग-अलग दाम को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल सहित तमाम गैर-बीजेपी राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. सोनिया गांधी ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर कहा कि एक ही वैक्सीन निर्माता कंपनी तीन तरह के रेट कैसे तय कर सकता है. सरकार को अपनी इस नीति को तुरंत वापस लेना चाहिए. साथ ही राहुल गांधी ने तंज करते हुए ट्वीट कर कहा था कि आपदा देश की, अवसर मोदी मित्रों का, अन्याय केंद्र सरकार का.
महाराष्ट्र सरकार के मंत्री व एनसीपी नेता नवाब मलिक ने सवाल उठाया कि कोविशील्ड वैक्सीन केंद्र सरकार और राज्य सरकार के लिए अलग-अलग दाम क्यों हैं ? बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी कोरोना वैक्सीन के दामों को लेकर मोदी सरकार को घेरा और कहा कि एक देश में वैक्सीन के रेट अलग-अलग कैसे हो सकते हैं. साथ ही कहा कि वैक्सीन का ऐसे समय में कोरोबार नहीं होना चाहिए जब लोगों की जान जा रही हो. छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल से लेकर सचिन पायलट तक ने वन नेशन, वन वैक्सीन, वन रेट की मांग उठाई. सुपरस्टार से नेता बने कमल हासन ने कहा है कि ऐसे संकट के वक्त में केंद्र सरकार ने वैक्सीन के दाम बढ़ा दिए हैं, ये शर्मनाक है और लोगों पर अधिक बोझ बढ़ाने जैसा है.
सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ने प्रेस के लिए जारी अपने बयान में तीन विदेशी वैक्सीनों के दाम भी बताए हैं, जो भारत में खुले बाजार के लिए दी जाने वाली कोविशील्ड की तुलना में अधिक ही हैं. इनमें अमेरकी वैक्सीन की कीमत 1500 रुपये और रूस व चीन की वैक्सीनों की कीमत 750 रुपए बताई गई है. हालांकि, कोरोना वैक्सीन का दाम केंद्र सरकार ने नहीं बल्कि निर्माता कंपनी ने तय किया है. इसके बावजूद विपक्ष और राज्य सरकारों के निशाने पर मोदी सरकार है जबकि पीएम मोदी यह बात कह चुके हैं कि 45 साल के ऊपर वालों के लगने वाली वैक्सीन केंद्र के द्वारा मुफ्त में मुहैया कराई जाएगी.
लॉकडाउन पर केंद्र बनाम राज्य की जंग
कोरोना से निपटने के लिए पिछले साल लॉकडाउन को हथियार के रूप में इस्तेमाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस्तेमाल किया था. देशव्यापी लॉकडाउन लगाने के पीएम मोदी के फैसले का विपक्ष दल कांग्रेस सहित तमाम गैर-बीजेपी शासित राज्य सरकारों ने काफी आलोचना की थी और कहा कि बिना किसी तैयारी के केंद्र सरकार ने इतना बड़ा फैसला ले लिया. राज्य सरकार ने आरोप लगाया कि केंद्र ने बिना उनके साथ विचार-विमर्श किए बगैर लॉकडाउन लगाया. लॉकडाउन लगाने के निर्णय को लेकर केंद्र बनाम विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया था. इसी के चलते बाद में केंद्र सरकार ने राज्य को अपने-अपने हिसाब से पाबंदिया लगाने और छूट देने की इजाजत दे दी थी.
वहीं, इस बार कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए मोदी सरकार ने लॉकडाउन लगाने से बचने की राज्य सरकारों को सलाह दी तो भी विपक्ष के निशाना साधने शुरू कर दिया. महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नवाब मलिक ने कहा था कि पीएम ने कहा है कि लॉकडाउन राज्यों के लिए अंतिम विकल्प होना चाहिए, लेकिन देश की अलग-अलग अदालतों ने लॉकडाउन लगाने का आदेश दे रही हैं. इस तरह से लॉकडाउन लगाने और न लगाने पर दोनों ही स्थिति में केंद्र बनाम राज्य आमने-सामने खड़े नजर आए.
मजदूरों की घर वापसी पर भी केंद्र बनाम राज्य
पिछले साल लॉकडाउन लगाए जाने के चलते लॉकडाउन के चलते लाखों लोगों की नौकरियां गईं थीं. ऐसे में दूसरे राज्यों फंसे लाखों प्रवासी मजदूरों को अपने-अपने घर वापस लौटने के लिए दरबदर होना पड़ा था. लॉकडाउन के चलते ट्रेन-बसें सभी बंद थी, जिसके चलते मजदूर पैदल ही घर वापस लौटने लगे. ऐसे में तमाम राज्य सरकारों ने केंद्र से विशेष ट्रेन चलाने की अपील की थी. मोदी सरकार ने श्रमिक विशेष ट्रेन चलाने की इजाजत दी, जिसके बाद मजदूरों से किराया वसूले जाने को लेकर केंद्र बनाम राज्य सरकार आमने-सामने आ गई थी. इतना ही नहीं विपक्ष ने भी इस मामले को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था.
दरअसल, पहले राज्य सरकारों ने केंद्र से ट्रेन चलाने की गुहार लगाई थी, लेकिन रेलवे ने किराए को लेकर स्पष्ट नीति कोई तय नहीं की थी. इसके चलते मजदूरों के किराए वसूले जा रहे था, जिसे लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सहित कई राज्य सरकारों ने इस बात को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना शुरू कर दी थी. सबसे बड़ा कंफ्यूजन इस बात को लेकर पैदा हुआ है कि जब इन मजदूरों के लिए स्पेशल ट्रेनें चलाई जाएंगी तो इनसे पैसे क्यों लिए गए. हालांकि, रेलवे ने बाद में कहा कि वो सिर्फ 85 फीसद किराया ले रहे हैं बाकी 15 फीसद ही किराया लिया जा रहा है. ये 15 फीसद भी प्रदेश सरकारें लेकर उसे रेलवे को देंगी.