जम्मू कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों को जारी वीजा रद्द कर दिया था. सरकार ने पाकिस्तानी पासपोर्ट धारकों से 48 घंटे के भीतर देश छोड़ने के लिए कहा था. यह मियाद बीत चुकी है. देश के अलग-अलग राज्यों से हजारों की तादाद में पाकिस्तानी नागरिक वापस अपने वतन लौट भी चुके हैं. जो बचे हैं, उनको वापस भेजने के लिए भी राज्यों की सरकारें एक्टिव हैं और इन सबके बीच एक नई बहस घुसपैठियों के मुद्दे पर भी छिड़ गई है.
योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने बांग्लादेशी घुसपैठिए और रोहिंग्या को चिह्नित कर वापस भेजने के लिए मुहिम छेड़ दी है. सभी जिलाधिकारियों, पुलिस अधिकारियों को योगी सरकार ने निर्देश दिया है कि ऐसे लोगों को चिह्नित करें, जिससे उन्हें उनके देश वापस भेजा जा सके. नेपाल की सीमा से सटे इलाकों में अंतरराष्ट्रीय सीमा से 15 किलोमीटर की रेंज में अवैध धार्मिक स्थल, अवैध कब्जे को लेकर भी सरकार एक्शन मोड में है. श्रावस्ती में डेढ़ दर्जन मदरसों समेत सौ से अधिक संपत्तियां कब्जा मुक्त कराई गई हैं तो वहीं बहराइच, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, बलरामपुर में भी सरकारी जमीन से अवैध कब्जे हटाने की कार्रवाई प्रशासन ने की है.
पहलगाम हमले के बाद एक तरफ यूपी सरकार घुसपैठियों को लेकर एक्शन मोड में है, वहीं दूसरी तरफ लखनऊ से करीब 1400 किलोमीटर दूर गुवाहाटी में भी हलचल तेज हो गई है. हिमंत बिस्व सरमा की अगुवाई वाली असम सरकार घुसपैठियों को पकड़ने, उनके देश वापस भेजने के अभियान के साथ ही अब पहलगाम हमले के बाद कथित तौर पर पाकिस्तान समर्थक रुख दिखाने के आरोप में भी एक्शन शुरू कर दिया है. असम पुलिस ने करीब दो दर्जन लोगों को इस आरोप में पकड़ा है. सीएम हिमंत ने पकड़े गए लोगों को देशद्रोही बताते हुए यह भी कहा है कि जरूरत पड़ी तो इनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई करेंगे.
यूपी की ही तरह असम में भी हिमंत घुसपैठ और घुसपैठियों को लेकर सख्त हैं. असम में पिछले साल अगस्त महीने से अब तक 330 से अधिक घुसपैठियों को पकड़कर बांग्लादेश वापस भेजा है. सीएम हिमंत साफ कह चुके हैं कि हमें आतंक की जड़ पर प्रहार करना है. असम पुलिस, एनआईए और खुफिया एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित कर काम कर रही है. हाल की ही बात करें तो केवल अप्रैल महीने में ही असम पुलिस ने आधा दर्जन से अधिक घुसपैठियों को पकड़कर वापस बांग्लादेश भेजा. सीएम हिमंत की घुसपैठ को लेकर आक्रामक राजनीति को इन पॉइंट्स में भी समझा जा सकता है.
1- असमिया अस्मिता
असम की सियासत में जातीय और वर्गीय आधार से कहीं अधिक मजबूत है असमिया अस्मिता. सीएम हिमंत इस सीमावर्ती राज्य में घुसपैठ को लेकर आक्रामक पॉलिटिक्स कर रहे हैं, घुसपैठियों के खिलाफ पूर्वोत्तर से उत्तर तक बीजेपी का सबसे मुखर चेहरा बन गए हैं तो उसके पीछे कहीं न कहीं असमिया अस्मिता का भी रोल है. घुसपैठ का मुद्दा असमिया और गैर असमिया के आसपास ही है. सीएम हिमंत घुसपैठ को लेकर आक्रामक पॉलिटिक्स के जरिये असमिया अस्मिता की मुखर आवाज माने जाने लगे हैं.
2- डेमोग्राफी
साल 2011 की जनगणना के अनुसार, असम में असमिया भाषा बोलने वाले 1 करोड़ 51 लाख लोग थे. प्रदेश की कुल जनसंख्या 3 करोड़ 12 लाख में यह हिस्सा करीब 48 फीसदी पहुंचता है. बांग्ला बोलने वालों की संख्या तब 90.24 लाख थी जिसमें हिंदू और मुस्लिम, दोनों ही शामिल थे. आबादी के अनुपात में यह करीब 29 फीसदी है. सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने गैर असमिया आबादी बढ़ने को लेकर कहा था कि सरकार की इस पर नजर है. बीजेपी और असम गण परिषद (एजीपी) ने देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा, सीमावर्ती क्षेत्रों में डेमोग्राफी बदलने की साजिश बताते हुए घुसपैठ के खिलाफ अभियान छेड़ रखा है.
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3- असम समझौता
असम समझौते के साथ ही अप्रवासी (असम से निष्कासन) अधिनियम भी घुसपैठ के मुद्दे पर आक्रामक पॉलिटिक्स के लिए आधार प्रदान करता है. इन दोनों में ही घुसपैठियों को असम से बाहर निकालने की बात है. सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक आदेश में साफ कहा था कि 24 मार्च, 1971 के बाद असम आने वाले सभी बांग्लादेशी नागरिक घुसपैठिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि जितनी जल्दी हो, उन्हें देश से निकाला जाना चाहिए. असम समझौते से लेकर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश तक, ये सब भी हिमंत बिस्वा सरमा की घुसपैठ के मुद्दे पर एग्रेसिव पॉलिटिक्स को सूट करते हैं.
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4- पूर्वोत्तर की सियासत
घुसपैठियों का मुद्दा बीजेपी को भी सूट करता है. असम ही नहीं, पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ ही हिंदी पट्टी के राज्यों में भी घुसपैठ बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है. बीजेपी हाल के वर्षों में पूर्वोत्तर की सियासत में मजबूती से पैर जमाने में सफल रही है तो इसके पीछे असम के सीएम हिमंत के नाम की चर्चा होती है. हिमंत को पूर्वोत्तर की सियासत का चाणक्य कहा जाने लगा है. उनकी इस नई इमेज के पीछे घुसपैठ के खिलाफ आक्रामक राजनीति प्रमुख वजह बताई जाती है.