
देश में पेट्रोल व डीजल (Petrol-Diesel Price) की कीमतें हर रोज नया रिकॉर्ड बना रही हैं. वो भी तब जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें काफी कम हैं. भारतीय लोग एक लीटर कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की तुलना में पेट्रोल के लिए चार गुना भुगतान कर रहे हैं. लेकिन अगर तेल पर कुछ टैक्स कम हो जाए तो ऐसी त्राहिमाम से बचा जा सकता है. आइए समझते हैं तेल का पूरा खेल..
पिछले एक साल से एक लीटर कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में जहां एक बोतल पैकेज्ड पानी के बराबर है वहीं आम आदमी को चौगुने दाम पर बेचा जा रहा है. इंडिया टुडे की डेटा टीम, डीआईयू ने यह पता लगाने की कोशिश की कि आखिर जब कच्चा तेल सस्ता है तो पेट्रोल को कौन सी बातें महंगा बना रही हैंं वो भी दोगुनी नहीं चार गुनी.
आधिकारिक रूप से पेट्रोल या डीजल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल से तय होती है. यानी जब कच्चे तल का भाव घटे या बढ़े तो पेट्रोल या डीजल के दाम को सस्ता या महंगा होना चाहिए, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हो रहा है.
पिछले एक साल यानी औसतन जनवरी 2020 से लेकर जनवरी 2021 के दौरान कच्चे तेल का भाव देखें तो हकीकत सामने आ जाती है. इस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 13 फीसदी कम हुई लेकिन घरेलू बाजार में आम लोगों को 13 फीसदी ज्यादा दाम देना पड़ा.
आज कच्चा तेल ब्रेंट क्रूड 63.57 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है और दिल्ली में पेट्रोल का मूल्य 89 रुपये प्रति लीटर को भी पार कर गया है. जबकि यूपीए के दूसरे कार्यकाल में 2009 से लेकर मई 2014 तक क्रूड की कीमत 70 से लेकर 110 डॉलर प्रति बैरल तक थी. लेकिन तब भी पेट्रोल की कीमत 55 से 80 रुपए के बीच ही रही, क्योंकि उस वक्त टैक्स का बोझ कम था.
कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम से जुड़ी
बता दें कि घरेलू बाजार में पेट्रोल और डीजल की रिटेल कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों से जुड़ी हैं. इसका मतलब है कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें गिरती हैं, तो रिटेल कीमतें कम होनी चाहिए. लेकिन ज्यादातर बार ऐसा नहीं होता है. इसके विपरीत, अंतरराष्ट्रीय क्रूड ऑयल की कीमतों में 13 प्रतिशत की गिरावट के बावजूद, भारत में कहीं अधिक कीमतों पर पेट्रोल बिका.
कोरोना से पहले यानी जनवरी में एक लीटर कच्चे तेल का भाव करीब 29 रुपए था जबकि भारत में आम आदमी को 78 रुपए में मिल रहा था. तकरीबन तीन गुने दाम पर. फरवरी में यह कोरोना महामारी का दायरा बढ़ने लगा और कच्चे तेल की कीमत घटकर करीब 25 रुपए प्रति लीटर हो गई हालांकि देश में लोगों को पेट्रोल तीन गुने दाम पर बेचा गया.

लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात मार्च में सामने आई जब दुनिया भर में कोरोना से निपटने के लिए लॉकडाउन की शुरुआत होने लगी तब क्रूड की कीमत जनवरी के मुकाबले मार्च में 29 रुपए प्रति लीटर से घटकर सोलह रुपए पर आ गई यानी तेरह रुपए की गिरावट, जबकि आम आदमी के लिए घरेलू बाजार में पेट्रोल की कीमत महज पांच रुपए कम हुए.
एक भारतीय ग्राहक को पेट्रोल भरवाने के लिए क्रूड ऑयल की कीमत (15.60 रुपए प्रति लीटर) की तुलना में लगभग पांच गुना अधिक (72.93 रुपए प्रति लीटर) खर्च करने पड़े.
यही नहीं, अप्रैल 2020 में कच्चे तेल की कीमत में भारी गिरावट आई और यह दस रुपए प्रति लीटर के नजदीक पहुंच गया. बावजूद इसके भारी गिरावट के देश में पेट्रोल के दाम कच्चे तेल के मुकाबले आठ गुना था. लॉकडाउन में ढील के बाद क्रूड ऑयल की कीमत इस साल जनवरी में 25 रुपए प्रति लीटर हो गई. लेकिन ग्राहकों को पेट्रोल के लिए फिर भी 87.57 रुपए प्रति लीटर की दर से जेब ढीली करनी पड़ी. ऐसा इसलिए है, क्योंकि क्रूड ऑयल की कीमतें गिरने के बाद सरकार नए टैक्स लगा देती है.
ये आंकड़े बताते है कि देश में पेट्रोल और डीजल की कीमत का सीधा रिश्ता विदेश में कच्चे तेल की कीमत से नहीं टैक्स और डीलर्स के कमीशन से है.
सरकार ने कई बार टैक्स बढ़ाए
5 मई, 2020 को क्रूड ऑयल की कीमतें 28.84 रुपए प्रति लीटर से 14.75 रुपए पर आ गई थी. लेकिन सरकार ने पेट्रोल पर रिकॉर्ड 10 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 13 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से एक्साइज ड्यूटी लगा दी. इससे सरकार को 1.6 लाख करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ.
तीन महीने के भीतर उत्पाद शुल्क में यह दूसरा इजाफा था जो सीधे पेट्रोल की कीमत में जुड़ गया. इससे पहले मार्च में भी उत्पाद शुल्क में इजाफा किया गया था. इसके अलावा राज्य सरकारें भी बिक्री कर या वैट में बदलाव कर रहीं. केंद्र और राज्य सरकारों के इस टैक्स से कच्चे तेल में गिरावट का फायदा आम ग्राहकों तक नहीं पहुंच पाया.
अगर हम 2019 के मुकाबले 2020 (अप्रैल से नवंबर) के टैक्स कलेक्शन को देखें तो हर क्षेत्र में गिरावट आई है, लेकिन पेट्रोल और डीजल पर इसी दौरान सरकार ने 48 फीसदी ज्यादा टैक्स वसूले. इस दौरान सरकार ने 1,96,342 करोड़ रुपए टैक्स वसूले जबकि 2019 में यह कलेक्शन 1,32,899 करोड़ रुपए ही था.
पेट्रोल की कीमत कैसे तय होती है?
दुनिया भर में 160 किस्म के कच्चे तेल का कारोबार होता है. यह उनके घनत्व से लेकर तरलता के स्तर पर निर्भर करता है. ज्यादातर कच्चे तेल अपने भौगोलिक नामों जैसे ब्रेंट क्रूड, ओमान क्रूड, दुबई क्रूड से पहचाने जाते हैं. भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल बाहर से आयात करता है और इस आयातित कच्चे तेल का भाव ब्रेंटस, ओमान, दुबई के भाव से तय होता है. ऑयल मार्केटिंग कंपनियां और रिफाइनरी इस कच्चे तेल को खरीदकर ले आती हैं और उसे साफ सुथरा करके अलग-अलग पेट्रोलियम पदार्थों- पेट्रोल, डीजल को देशभर में भेजती हैं
गौरतलब है कि जिस पेट्रोल के एक लीटर की कीमत करीब 30 रुपए है. उस पर एक्साइज ड्यूटी, डीलर कमीशन और वैल्यू ऐडेड टैक्स जुड़ने के बाद उसकी कीमत 86-87 रुपए पहुंच जाती है. यानी कि अगर टैक्स कम हो जाए तो पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम हो सकती हैं.

देश के भीतर पेट्रोल या डीजल की कीमतों के तय होने के लिए हम दिल्ली का उदाहरण लेते हैं. सबसे पहले पेट्रोल की कीमत में बेस कीमत जुड़ती है, जैसे दिल्ली में पहली फरवरी 2021 के हिसाब से बेस कीमत 29.34 रुपए प्रति लीटर थी. उसके बाद उसमें भाड़े के 37 पैसे और जुड़ गए.
इसके बाद ऑयल मार्केटिंग कंपनियां यह तेल 29 रुपए 71 पैसे के भाव से डीलर्स को बेचती हैं. इसके बाद केंद्र सरकार हर लीटर पेट्रोल पर 32 रुपए 98 पैसे उत्पाद शुल्क लगाती है. एक झटके से पेट्रोल की कीमत 62 रुपए सत्तर पैसे हो जाती है. इसके अलावा हर पेट्रोल पंप डीलर हर लीटर पर 3 रुपए 69 पैसे का कमीशन जोड़ता है. इसके बाद जहां पेट्रोल बेचा जाता है उसकी कीमत में उस राज्य सरकार (उदाहरण के लिए दिल्ली) की ओर से लगाए गए वैट या बिक्री कर यानी 19 रुपए 92 पैसा और जुड़ जाता है. और कुल मिलाकर अंत में एक लीटर पेट्रोल के लिए आम आदमी को 86 रुपए तीस पैसे चुकाने पड़े.
क्या कहना है सरकार का
ऑयल मार्केटिंग कंपनियां अंतरराष्ट्रीय कीमतों के आधार पर पेट्रोल-डीजल की कीमतों में संशोधन करती हैं. भारत में कीमतों के इस तरह से तय होने की प्रक्रिया को डायनमिक प्राइसिंग कहते हैं और यह हर रोज तय होती है. सरकार का मूल्य निर्धारण पर कोई नियंत्रण नहीं है. इस बाबत पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने सदन में बयान दिया है.
सरकार का कहना है कि पेट्रोल कंपनियां कीमतों को तय करने के लिए स्वतंत्र होती है और सरकार इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करती. राज्य सभा के एक सवाल के जवाब में पेट्रोलियम मंत्री धर्मंद्र प्रधान ने कहा कि “पेट्रोलिम पदार्थों की कीमतों को तय करने का एक अंतरराष्ट्रीय प्रक्रिया है जो कि दशकों से चली आ रही है. हमारा देश जरूरत का करीब 85 फीसदी कच्चा तेल बाहर से आयात करता है. जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ती है तो हमें उसी हिसाब से घरेलू कीमत बदलना होता है. जब कीमत कम होती है तो घरेलू बाजार में भी घट जाती है. कीमतों को तय करने का यह तरीका सभी मार्किटिंग कंपनियों ने मिलकर विकसित किया है. हमने इसके लिए इन कंपनियों को पूरी आजादी दी है”.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड की कीमतें लगातार बढ़ रही है. पिछले हफ्ते ब्रेंट क्रूड की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया था. लॉकडाउन खत्म होने और कोरोना की दवा आने के बाद से कच्चे तेल के बाजार मे उछाल जारी है और घरेलू बाजार में कीमतें तकरीबन हो रोज बढ़ रही है, लेकिन सवाल है कि कच्चे तेल के भाव बढ़ने से घरेलू कीमत बढ़ जाती है लेकिन जब कच्चे तेल कीमत नीचे जाती है तो उसका फायदा आम लोगों को पूरा क्यों नहीं मिलता.