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Uniform Civil Code: क्या राज्यों को समान नागरिक संहिता लागू करने का अधिकार है, क्या होंगी अड़चनें?

Uniform Civil Code: देश में एक बार फिर से समान नागरिक संहिता पर बहस शुरू हो गई है. उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा किया है. लेकिन सवाल ये है कि क्या राज्य सरकार का ऐसा करने का अधिकार है. एक्सपर्ट की राय से समझिए..

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बीजेपी के घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता का मुद्दा शामिल रहता है. पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड में UCC लागू करने का वादा किया है. (फाइल फोटो-PTI)
बीजेपी के घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता का मुद्दा शामिल रहता है. पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड में UCC लागू करने का वादा किया है. (फाइल फोटो-PTI)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • उत्तराखंड के सीएम पुष्कर धामी ने किया है वादा
  • समान नागरिक संहिता को लेकर देश में पुरानी है बहस

Uniform Civil Code: उत्तराखंड में बीजेपी के पुष्कर सिंह धामी को दूसरी बार मुख्यमंत्री पद मिल गया है. मुख्यमंत्री के लिए जैसे ही उनका नाम तय हुआ, वैसे ही उन्होंने फिर से समान नागरिक संहिता का सुर छेड़ दिया. उन्होंने कहा कि सत्ता संभालते ही सारे वादों को पूरा किया जाएगा, जिसमें समान नागरिक संहिता का वादा भी शामिल है. धामी चुनाव प्रचार के दौरान भी कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कर चुके हैं. 

समान नागरिक संहिता एक ऐसा मुद्दा है, जो हमेशा से बीजेपी के एजेंडे में रहा है. 1989 के लोकसभा चुनाव में पहली बार बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता का मुद्दा शामिल किया. 2019 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी बीजेपी ने समान नागरिक संहिता को शामिल किया था. बीजेपी का मानना है कि जब तक समान नागरिक संहिता को अपनाया नहीं जाता, तब तक लैंगिक समानता नहीं आ सकती. 

समान नागरिक संहिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट से लेकर दिल्ली हाईकोर्ट तक सरकार से सवाल कर चुकी है. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए कोई कोशिश नहीं की गई. वहीं, पिछले साल जुलाई में दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से कहा था कि समान नागरिक संहिता जरूरी है. 

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आजादी के बाद से ही समान नागरिक संहिता पर बहस चल रही है. हालांकि, अब तक इसे लागू नहीं किया जा सका है. अब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कह रहे हैं कि वो समान नागरिक संहिता को लागू करेंगे तो सवाल उठता है कि क्या वाकई राज्य सरकार ऐसा कर सकती है?

क्या राज्य सरकार ऐसा कर सकती है?

- सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता बताते हैं कि उत्तराखंड या कोई भी राज्य सरकार समान नागरिक संहिता को विधि सम्मत तरीके से लागू नहीं कर सकती. संविधान का अनुच्छेद 44 राज्य को समान नागरिक संहिता लागू करने की आजादी देता है, लेकिन अनुच्छेद 12 के अनुसार 'राज्य' में केंद्र और राज्य सरकारें शामिल हैं.

- विराग गुप्ता बताते हैं कि समान नागरिक संहिता को केवल संसद के जरिए ही लागू किया जा सकता है. अदालतों और संसद में केंद्र सरकार के जवाब से यही साफ होता है. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि बीजेपी ने भी लोकसभा के आम चुनावों के घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता की लागू करने की बात की थी. जबकि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा के घोषणापत्र में इसका जिक्र नहीं था.

- वो ये भी बताते हैं कि संविधान में कानून बनाने की शक्ति केंद्र और राज्य दोनों के पास है, लेकिन पर्सनल लॉ के मामले में राज्य सरकारों के हाथ बंधे हैं. इसलिए उत्तराखंड या अन्य राज्य सरकारें अपनी ओर से पर्सनल लॉ में कोई संशोधन या समान नागरिक संहिता लागू करने का यदि प्रयास करें तो कानून की वैधता को अदालत में चुनौती मिल सकती है.

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- हालांकि, गोवा में पहले से ही समान नागरिक संहिता लागू है. वहां 1961 से ही पुर्तगाल सिविल कोड 1867 लागू है. इस पर विराग गुप्ता बताते हैं कि वहां समान नागरिक संहिता भारत का हिस्सा बनने से पहले से ही लागू है.

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लेकिन ये समान नागरिक संहिता है क्या?

- समान नागरिक संहिता यानी सभी धर्मों के लिए एक ही कानून. अभी होता ये है कि हर धर्म का अपना अलग कानून है और वो उसी हिसाब से चलता है.

- हिंदुओं के लिए अपना अलग कानून है, जिसमें शादी, तलाक और संपत्तियों से जुड़ी बातें हैं. मुस्लिमों का अलग पर्सनल लॉ है और ईसाइयों को अपना पर्सनल लॉ. 

- समान नागरिक संहिता को अगर लागू किया जाता है तो सभी धर्मों के लिए फिर एक ही कानून हो जाएगा. मतलब जो कानून हिंदुओं के लिए होगा, वही कानून मुस्लिमों और ईसाइयों पर भी लागू होगा. 

- अभी हिंदू बिना तलाक के दूसरे शादी नहीं कर सकते, जबकि मुस्लिमों को तीन शादी करने की इजाजत है. समान नागरिक संहिता आने के बाद सभी पर एक ही कानून होगा, चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या मजहब का ही क्यों न हो.

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फिर तो इससे धार्मिक अधिकार छीन जाएगा?

- ऐसा नहीं होगा. समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का तर्क है कि अगर ये लागू होता है तो उससे उनके धार्मिक मान्यताओं को मानने का अधिकार छीन जाएगा. 

- अगर कॉमन सिविल कोड (Common Civil Code) को लागू किया भी जाता है तो इससे धार्मिक मान्यताओं के मानने के अधिकार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

- कॉमन सिविल कोड से हर धर्म के लोगों को एक समान कानून के दायरे में लाया जाएगा, जिसके तहत शादी, तलाक, प्रॉपर्टी और गोद लेने जैसे मामले शामिल होंगे. 

तो फिर विरोध क्यों?

- समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले कहते हैं कि इससे सभी धर्मों पर हिंदू कानूनों को लागू कर दिया जाएगा. 

- विरोध करने वाले ये भी कहते हैं कि इससे अनुच्छेद 25 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन होगा. अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है. 

- समान नागरिक संहिता का सबसे ज्यादा विरोध मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड करता है. उसका कहना है कि इससे समानता नहीं आएगी, बल्कि इसे सब पर थोप दिया जाएगा.

तो क्या ये लागू नहीं हो पाएगी?

- समान नागरिक संहिता को लागू करना बहुत टेढ़ी खीर है. वो सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि सभी धर्मों के अपने अलग-अलग कानून हैं, बल्कि इसलिए भी क्योंकि हर धर्म के जगह के हिसाब से भी अलग-अलग कानून हैं.

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- जानकार मानते हैं कि सरकार के लिए समान नागरिक संहिता को लागू करना चुनौतीपूर्ण काम है. मिसाल के लिए दक्षिण भारत में सगा मामा अपनी सगी भांजी से शादी कर सकता है, लेकिन उत्तर भारत में ऐसा नहीं होता. ऐसे में सदियों से चली आ रही इन प्रथाओं पर रोक लगाना चुनौतीपूर्ण है.

- गोवा इस समय देश का इकलौता राज्य है जहां समान नागरिक संहिता लागू है. यहां 1961 में गोवा की आजादी से ही कॉमन सिविल कोड लागू है. गोवा में पुर्तगाल सिविल कोड 1867 लागू है.

केंद्र सरकार क्या कर रही है?

समान नागरिक संहिता का मसला लॉ कमीशन के पास है. कानून मंत्री किरन रिजिजू ने इसी साल 31 जनवरी को बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे को एक पत्र लिखकर बताया था कि समान नागरिक संहिता का मामला 21वें विधि आयोग को सौंपा गया था, लेकिन इसका कार्यकाल 31 अगस्त 2018 को खत्म हो गया था. अब इस मामले को 22वें विधि आयोग के पास भेजा सकता है.

 

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