अब तक भारत में लाखों लोगों की जान ले चुके कोरोना के खिलाफ लड़ाई में भारत कहां खड़ा है? क्या हम वैक्सीन को लेकर तैयार हैं? भारत के लिए सबसे बेहतरीन वैक्सीन कौन सी है और क्या लॉकडाउन के कारण भारत में कोरोना वायरस महामारी का प्रसार रुका है?
इन सभी सवालों पर ICMR के पूर्व प्रमुख डॉ रमन गंगाखेडकर ने इंडिया टुडे से खास बातचीत की. उन्होंने कहा, 'मास्क के साथ नई जिंदगी की आदत डालें.' जानें उनके साथ बातचीत के कुछ अंश.
क्या हम भारत में कोरोना वायरस की दूसरी या तीसरी लहर देखेंगे?
यूरोप और अमेरिका में अस्पताल में भर्ती होने के मामले बढ़ रहे हैं. हमें उससे सबक सीखना चाहिए. मास्क पहनना, हाथ धोना और परिवार वालों के साथ सोशल डिस्टेंसिंग रखना बहुत जरूरी है. इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है. इस महामारी से निपटने के लिए सिर्फ कोविड मानक ही काफी हैं.
इम्युनिटी बूस्ट करना कितना जरूरी है? हर्ड इम्युनिटी के बारे में आपके सर्वे क्या कहते हैं?
खास इलाकों में ही सर्वे हो रहे हैं. हम इसे पूरे शहर के लिए नहीं मान सकते. अगर यह कह दिया जाए कि सभी में एंटीबॉडीज डेवलप हो गई हैं तो लोग लापरवाह हो जाएंगे. इस प्रवृत्ति से मामलों में इजाफा होगा.
कोरोना के गिरते मामलों पर आपका क्या कहना है? शहरों में भीड़भाड़ वाले बाजारों से क्या मामलों में इजाफा होगा?
एक शब्द है, जिसे बेल शेप कर्व कहा जाता है. माइग्रेशन, मोबिलिटी और जनसंख्या घनत्व के कारण मामले बढ़े हैं. कुछ लोग घर पर हैं लेकिन उन्हें बाहर जाना पड़ता है और वे संक्रमित हो जाते हैं. इसलिए हम इसे हल्के में नहीं ले सकते कि हर्ड इम्युनिटी डेवलप हो गई है. इसका मतलब है कि हम बीमारी को रोकने में सफल है. अगर ये कर्व नीचे जाती है तो इसका मतलब ये नहीं कि हम ढीले पड़ जाएं.
क्या आप मानते हैं कि इस बीमारी को रोकने के लिए लॉकडाउन ही एकमात्र समाधान था?
हमने पूरे देश में लॉकडाउन लागू किया. चीन ने भी यही किया. लेकिन अब हमने लॉकडाउन में ढील देनी शुरू कर दी है. अब मुझे नहीं लगता कि कोई और सख्त लॉकडाउन लगाया जाएगा. एक संक्रमित शख्स, जिसमें मामूली लक्षण हैं वह होम आइसोलेशन में है. अगर वह सारे मानकों को फॉलो करता है तो यह सही है. नाइट कर्फ्यू से यह बीमारी नहीं रुकेगी. लेकिन लोगों को समझना चाहिए कि हमें अपनी लाइफस्टाइल बदलनी होगी. फुल लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित होगी.
कोविड वैक्सीन के बारे में आप क्या सोचते हैं? कितनी वैक्सीन अंतिम स्टेज में हैं?
यह अच्छी बात है कि वैक्सीन 90 प्रतिशत कारगर हैं. मॉडर्ना, एस्ट्राजेनेका वैक्सीन में स्पाइक प्रोटीन्स डेवलप करने की क्षमता है. हम सबको डर है कि कौन सी वैक्सीन कारगर होगी. लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह कोई मुद्दा है. लेकिन भारतीयों के लिए, एक वैक्सीन जो आम फ्रिज के तापमान में भी स्टोर हो सके तो फिर मॉडर्ना, एस्ट्राजेनेका, स्पुतनिक और भारत बायोटेक कारगर है. लेकिन जो जरूरी है वो ये कि डोज एक महीने में दो बार दी जानी है इसलिए मैन्युफैक्चरिंग जरूरी है. साथ ही वैक्सीन की कीमत भी. मेरे हिसाब से एस्ट्राजेनेका, कैमिला, भारत बायोटेक और स्पुतनिक वैक्सीन भारतीयों के लिए मुफीद हैं. भारत में वैक्सीन का उत्पादन एक असेट है.
क्या आपको लगता है कि वैक्सीन की दो डोज ही काफी हैं? या इसके लिए डिमांड बढ़ेगी?
यह मेरा निजी मत है. एंटीबॉडीज में गिरावट का ये मतलब नहीं है कि वह शख्स हाई रिस्क पर है. आपका शरीर जानता है कि वायरस से कैसे लड़ना है. जो लोग SAARS से 10 साल पहले संक्रमित हुए थे, उनका शरीर जानता है कि कैसे वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनानी है. इसलिए वे कम रिस्क पर हैं. रीइन्फेक्शन काफी आम नहीं है. आधा प्रतिशत ही चांस है कि वह दोबारा से संक्रमित हो जाए. इसलिए मुझे नहीं लगता कि हमें वैक्सीन की ज्यादा डोज की जरूरत पड़ेगी.
क्या हम कभी बिना मास्क के रह पाएंगे?
महामारी की स्थिति कोई पहली बार नहीं फैली है. हमें अतीत से सबक लेना चाहिए. मास्क पहनने से आपका कुछ बिगड़ने नहीं वाला है. मास्क जरूरी है. आज हम कोविड से मुकाबला कर रहे हैं, वह एक वैक्सीन से खत्म हो सकता है. लेकिन कुछ साल बाद कोई नया वायरस आ सकता है इसलिए मास्क पहनने की सलाह दी गई है.