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मानहानि मामले में दोषी मेधा पाटकर के खिलाफ कोर्ट ने जारी किया गैर जमानती वारंट

जुलाई 2024 में पाटकर को 2000 में दायर किए गए मुकदमे की सजा सुनाई गई थी. एलजी वीके सक्सेना द्वारा दायर मानहानि मामले में उनको दोषी ठहराया गया. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) विशाल सिंह ने मेधा पाटकर के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया.

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मेधा पाटकर (फाइल फोटो)
मेधा पाटकर (फाइल फोटो)

दिल्ली के मौजूदा उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना की मानहानि के मामले दोषी मेधा पाटकर की मुश्किलें बढ़ रही हैं. सत्र अदालत से सजा में फौरी राहत और रियायत का कानूनी दुरुपयोग करने के आरोप में उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया है. पाटकर को 23 अप्रैल को अदालत में पेश होने का आदेश दिया गया था लेकिन संभवतः हाईकोर्ट के आदेश की आड़ में वो अदालत में पेश नहीं हुईं. आदेश के प्रति लापरवाही बरतने की वजह से कोर्ट ने सख्त तेवर दिखाए हैं.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने मेधा पाटकर को 3 मई को कोर्ट के समक्ष पेश होने का आदेश दिया है. पाटकर के खिलाफ 23 साल पुराने केस में इससे पहले सजा सुनायी गयी थी लेकिन बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य के मद्देनजर परिवीक्षा यानी प्रोबेशन के आधार पर कैद की सजा से छूट दी गई थी लेकिन मुआवजा राशि जमा करने और परिवीक्षा बांड भरने का निर्देश दिया गया था.

क्या है पूरा मामला?

जुलाई 2024 में पाटकर को 2000 में दायर किए गए मुकदमे की सजा सुनाई गई थी. एलजी वीके सक्सेना द्वारा दायर मानहानि मामले में उनको दोषी ठहराया गया. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) विशाल सिंह ने मेधा पाटकर के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया. अदालत ने गैर-जमानती वारंट पर रिपोर्ट और आगे की कार्यवाही के लिए मामले को 3 मई, 2025 की तारीख तय की है.

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आदेश में अदालत ने यह साफ किया कि अगर अगली बार दोषी 8 अप्रैल को पारित सजा के आदेश की शर्तों का पालन करने में विफल रहता है, तो अदालत को सजा पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा और सजा के आदेश में बदलाव करना होगा. बुधवार को मेधा पाटकर की तरफ से एक आवेदन पेश किया गया, जिसमें हाई कोर्ट में अपील लंबित होने की वजह से स्थगन की मांग की गई, कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया.

'आवेदन में कोई दम नहीं...'

अदालत ने कहा कि पाटकर के आवेदन में कोई दम नहीं है. हाई कोर्ट द्वारा पारित 22 अप्रैल 2025 के आदेश में ऐसा कोई निर्देश नहीं है कि दोषी मेधा पाटकर को 8 अप्रैल 2025 को पारित सजा संबंधी आदेश का पालन करना जरूरी नहीं है. वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश हुई हैं. कोर्ट ने उन्हें 23 अप्रैल को पेश होने को कहा था. इससे पहले जुलाई 2024 में मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उन्हें दोषी करार देते हुए तीन महीने की कैद की सजा सुनाई थी. कोर्ट ने उन्हें वीके सक्सेना को 10 लाख रुपये  मुआवजे के तौर पर अदा करने का निर्देश भी दिया था.

हालांकि, उन्हें आदेश को चुनौती देने के लिए अदालत से जमानत मिल गई थी. इसी आदेश को सत्र न्यायालय में चुनौती दी गई थी. कोर्ट में  उपस्थित होने और 8 अप्रैल 2025 के सजा के आदेश का पालन करने के बजाय, दोषी अनुपस्थित है, इसके साथ ही जानबूझकर सजा के आदेश का पालन करने और मुआवजा राशि प्रस्तुत करने के अधीन परिवीक्षा का लाभ लेने में विफल रही हैं.

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यह भी पढ़ें: 'महाराष्ट्र सरकार ने मेधा पाटकर की याचिका पर जिस तरह आपत्ति जताई, वह तुच्छ...', बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी

दोषी मेधा पाटकर की मंशा स्पष्ट है कि वह जानबूझकर कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर रही हैं, वह न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने से बच रही हैं और खुद के खिलाफ पारित सजा की शर्तों को स्वीकार करने से भी बच रही हैं. 

न्यायालय के पास दोषी मेधा पाटकर को बलपूर्वक पेश करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. कोर्ट ने कहा कि अगली तारीख तक दिल्ली पुलिस आयुक्त कार्यालय के माध्यम से दोषी मेधा पाटकर के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करें. गैर-जमानती वारंट और आगे की कार्यवाही पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना है.

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