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 'प्यार का दुश्मन है सारा जमाना'.. आखिर मुहब्बत करने वालों से लोग जलते क्यों है?

अक्सर मुहब्‍बत करने वालों को कड़े इम्तेहान से गुजरना पड़ता है. जमाने भर की रुसवाई और रंजो-गज जैसे दो प्रेमी दिलों की झोली में डाल दिए जाते हैं. आख‍िर ये समाज प्रेम करने वालों के प्रति जलन और ईर्ष्या भरी सोच क्यों करती है. हमने समाजशास्त्र‍ियों और मनो रोग विश्लेषकों से इसके बारे में जाना.

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Representation Image (by Meta AI)
Representation Image (by Meta AI)

ये इश्क़ नहीं आसां इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है..

जिगर मुरादाबादी ने इस शेर के जरिए इश्क करने वालों की हालत बयां की थी, हकीकत भी यही है कि मुहब्‍बत करने वालों को कड़े इम्तेहान से गुजरना पड़ता है. जमाने भर की रुसवाई और रंजो-गज जैसे दो प्रेमी दिलों की झोली में डाल दिए जाते हैं. आख‍िर ये समाज मोहब्बत करने वालों से नफरत क्यों करता है, उनके प्रति जलन क्यों रखता है. हमने समाजशास्त्र‍ियों और मनो रोग विश्लेषकों से इसके बारे में जानने की कोशिश की.

इश्क दो लोग करते हैं, लेकिन रास्ते में दीवार बनकर हजार खड़े हो जाते हैं.  ऐसा कम ही होता है कि इश्क की कोई दास्तां पूरी तरह मुकम्मल हो जाए. प्यार के साथ अजब अधूरापन जुड़ा है. ये अधूरापन अक्सर समाज की चोटों से आता है. दो लोग जब प्रेम में पड़ते हैं, तो उनकी पहली ख्वाह‍िश जिंदगी भर साथ रहने की होती है. लेकिन, अक्सर मुहब्बत के बदले जुदाई ही नसीब होती है. इतना ही नहीं वैलेंटाइन डे के दिन तो जैसे समाज में कल्चरल पुल‍िस की पूरी फसल उग आती है. कुछ लोग सोशल मीड‍िया में कल्चर बचाने पर जुट जाते हैं, तो कईयों का व‍िरोध तो सड़कों और पार्कों तक नजर आ जाता है. क्या हमने समाज के तौर पर कभी इस बात को महसूस किया है कि लोग मुहब्बत करने वालों से इतनी खुन्नस क्यों रखते हैं? बशीर बद्र ने लिखा था...

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जवाहर लाल नेहरू व‍िश्वव‍िद्यालय के सोशल साइंस के प्रोफेसर व‍िवेक कुमार कहते हैं कि समाज को डिजाइन ही इसी आधार पर किया गया है. हम लव स्टोरीज को किताबों और फिल्मों तक ही सराहते हैं. असल जिंदगी में इसे सच होते नहीं देखना चाहते. इसके पीछे जेंडर को लेकर भी हमारी सोच बहुत बड़ी भूम‍िका न‍िभाती है. स्त्री को आज भी स्वतंत्र सत्ता नहीं सौंपी जाती कि वो अपनी मर्जी से जीवनसाथी का चयन करे. अब जब हम बाजारवाद की तरफ बढ़ गए हैं, तो तथाकथ‍ित संस्कृति रक्षक बाजारवाद से संस्कृति को बचाने के नाम पर प्रेम करने वालों के ख‍िलाफ प्रदर्शन करते हैं. उनके भीतर प्रेमी जोड़ों में साथ में बैठी स्त्र‍ियों के प्रति नाराजगी सबसे ज्यादा झलकती है, वहीं स्वतंत्र स्त्री के साथ बैठे पुरुष को भी वो दोयम दर्जे का मानते हैं.

वहीं दिल्ली व‍िश्वव‍िद्यालय के समाज शास्त्र व‍िभाग के पूर्व डीन प्रो जेपी दुबे इसे फैमिली स्ट्रक्चर पर बढ़ते दबाव के ख‍िलाफ प्रतिक्र‍िया मानते हैं. वो कहते हैं कि समाज की प्रथम इकाई पर‍िवार है, और पर‍िवार की ये इकाई क्राइस‍िस से जूझ रही है. समाज को ऐसा लगता है कि अगर वो ऐसे संबंध जहां समाज की मान्यता नहीं है, उन्हें स्वीकृति देते हैं तो पर‍िवार टूटता है. अगर समाज के तौर हम इन र‍िश्तों को वैलिडेशन देने लगें तो ये स्थ‍िति बदल सकती है.

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प्रेम की सबसे बड़ी व‍िडंबना यह है कि बुद्ध‍िजीव‍ियों का एक वर्ग कहता है कि प्रेम को परिभाष‍ित नहीं किया जा सकता. ये जाति-धर्म की सीमाओं से परे होता है. लेकिन, समाज ने स्त्री पुरुष के रोमांट‍िक रिलेशन यानी प्रेम को असल में भलीभांति पर‍िभाष‍ित किया है. ये प्रेम आप उम्र और तमाम र‍िश्तों के दायरे को मानते हुए ही कर सकते हैं, मसलन दो एडल्ट ही इस प्रेम में पड़ सकते हैं, इसमें नाबालिग का प्रेम कानूनी तौर भी अमान्य है. ऐसे कई पैरामीटर हैं जहां आपकी सीमाएं तय हैं. इसी तरह समाज इन सीमाओं को और बड़ी रेखा में बांध देता है.

समाजशास्त्री जहां प्रेमियों के प्रति वैमनस्य की भावना को समाज की संरचना के हिसाब से पर‍िभाष‍ित करते हैं, वहीं मनो विश्लेषक इसे अलग नजर‍िये से देखते हैं. वरिष्ठ मनोरोग व‍िश्लेषक व लेखक डॉ सत्यकांत त्र‍िपाठी कहते हैं, लोग प्रेम या प्रेमियों से नहीं असल में इसके पीछे के समाज के पूरे कॉन्सेप्ट को लेकर नेगेट‍िवली कंडीश‍न‍िंंग कर चुके होते  हैं. बचपन से ही लड़के-लड़‍कियों को स‍िखाया जाता है कि कैसे प्रेम के चक्कर में पड़कर वक्त बर्बाद होता है. प्रेम में मिलने वाले धोखे की कहानियों को महिमामंड‍ित किया जाता है, इससे भी लोगों के भीतर एक धारणा जन्म ले लेती है. वहीं कई लोगों के मन में इसे लेकर व्यक्त‍िगत कुंठा भी एक वजह होती है.

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मनोव‍िज्ञान इसे कॉम्प्लेक्स विषय के तौर पर देखता है. ज‍िन लोगों में समानुभूति की भावना नहीं होती या उन्हें लोगों से ज्यादा अटेंशन नहीं मिला होता, उनमें भी ऐसे कपल के प्रति नाराजगी या जलन का भाव होता है. लोग असल में हिंसा या नकारात्मक चीजों के प्रति जल्दी आकर्ष‍ित होते हैं, दो लोगों के बीच प्रेम का पता लगने पर उनमें खुशी की भावना नहीं पैदा होती. इसके पीछे ब्रेन की कंडीशन‍िंग का ही बड़ा रोल होता है.

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