जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 2 लड़कियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हेरफेर करने और पाकिस्तान एजेंसी के इशारे पर काम करने वाले दो डॉक्टरों को बर्खास्त कर दिया है. डॉ. बिलाल अहमद दलाल और डॉ. निघत शाहीन चिल्लू ने साल 2009 में झूठी पोस्टमार्टम रिपोर्ट बना दो लड़कियों के डूबकर मरने की घटना को रेप और मर्डर का केस बना दिया था. केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) की जांच में यह पूरा खुलासा हुआ है.
दरअसल, 30 मई, 2009 को शोपियां में दो लड़कियां आसिया जान और नीलोफर एक नदी में मृत पाई गई थीं. आरोप लगाया गया कि सुरक्षाकर्मियों ने उनके साथ बलात्कार किया और फिर उनकी हत्या कर दी. इस मामले के सिलसिले में 4 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया था. इस मामले के चलते तत्कालीन विशेष पुलिस महानिदेशक अशोक भान और तत्कालीन महानिरीक्षक (कश्मीर) बी श्रीनिवासन सहित शीर्ष पुलिस अधिकारियों को पद छोड़ना पड़ा था.
42 दिनों तक ठप रही घाटी
बता दें कि इस घटना के बाद कश्मीर घाटी में भारी विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ और घाटी लगभग 42 दिनों तक ठप रही. बाद में सीबीआई ने जांच अपने हाथ में ली और जांच में पाया कि दोनों लड़कियों के साथ कभी बलात्कार या हत्या नहीं हुई ही थी. दोनों की दुर्भाग्य से 29 मई 2009 को नदी पार करने के दौरान डूबने से मौत हो गई थी.
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में झूठ
सीबीआई जांच में पाया गया कि डॉक्टरों की दोनों टीमों ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में झूठ बोला. डॉक्टरों की पहली टीम ने कहा कि आसिया जान की मौत कार्डियोवैस्कुलर अरेस्ट के कारण हुई और नीलोफर की मौत न्यूरोजेनिक शॉक के कारण हुई.
पुलवामा के डॉक्टरों की दूसरी टीम ने दावा किया कि आसिया जान का यौन उत्पीड़न किया गया था और चोटों के कारण रक्तस्राव व सदमे के कारण उसकी मौत हो गई. टीम ने दावा किया था कि नीलोफर की मौत न्यूरोजेनिक शॉक के कारण हुई. दरअसल, डॉ. दलाल शवों का पोस्टमार्टम करने वाले पहले डॉक्टर थे, जबकि चिल्लू पोस्टमार्टम करने वाली डॉक्टरों की दूसरी टीम का हिस्सा थे.
14 साल बाद कार्रवाई
अब 14 साल बाद दो डॉक्टरों- डॉ बिलाल अहमद दलाल और डॉ. निघत शाहीन चिल्लू को पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करने और शोपियां की आसिया और नीलोफर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट को गलत साबित करने के लिए साजिश रचने के कारण नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है. दोनों डॉक्टरों का उद्देश्य सुरक्षाबलों पर बलात्कार और हत्या का झूठा आरोप लगाकर असंतोष पैदा करना था.
दोनों डॉक्टरों को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत बर्खास्त किया है. इस प्रावधान के तहत सरकारी अधिकारियों को बिना किसी जांच के बर्खास्त किया जा सकता है.