अपने शब्दों और कविताओं से देश की कई पीढ़ियों को प्रोत्साहित करने वाले ‘राष्ट्रकवि’ रामधारी सिंह दिनकर की आज जयंती है. इस मौके पर देश के कई दिग्गज नेता और हस्तियां उन्हें नमन कर रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह ने भी बुधवार सुबह ट्वीट कर रामधारी सिंह दिनकर को श्रद्धांजलि दी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर रामधारी सिंह दिनकर को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने लिखा कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि. उनकी कालजयी कविताएं साहित्यप्रेमियों को ही नहीं, बल्कि समस्त देशवासियों को निरंतर प्रेरित करती रहेंगी.
अमित शाह ने ट्वीट कर लिखा कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ अपनी उपाधि के अनुरूप साहित्य जगत में अपने लेखन के माध्यम से एक सूरज की भांति चमके. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपनी कलम की शक्ति से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और आजादी के बाद अपने विचारों से समाज की सेवा की.
गृह मंत्री ने लिखा कि राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत अपनी कविताओं से ‘दिनकर’ जी ने राष्ट्रीयता के स्वर को बुलंद किया. देश के लोकतंत्र पर हुए सबसे बड़े आघात आपातकाल का उन्होंने निडर होकर विरोध किया और उनकी कविता ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ उस आंदोलन का स्वर बनी, राष्ट्रकवि दिनकर को कोटिशः नमन.
राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत अपनी कविताओं से ‘दिनकर’ जी ने राष्ट्रीयता के स्वर को बुलंद किया। देश के लोकतंत्र पर हुए सबसे बड़े आघात आपातकाल का उन्होंने निडर होकर विरोध किया और उनकी कविता ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ उस आंदोलन का स्वर बनी।
राष्ट्रकवि दिनकर को कोटिशः नमन।
— Amit Shah (@AmitShah) September 23, 2020
कांग्रेस पार्टी की ओर से भी ट्विटर हैंडल के जरिए रामधारी सिंह दिनकर को नमन किया गया. पार्टी ने अपने ट्वीट में उनकी एक कविता भी साझा की.
कांग्रेस की ओर से ट्वीट किया गया, ‘लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं, जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है; दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’. बिहार की क्रांतिधर्मा माटी के राष्ट्रकवि दिनकर जी ने अपनी रचनाओं से ब्रिटिश हुकूमत की नींदें उड़ा दी थीं. वीर धरा के वीर पुत्र को नमन.
आपको बता दें कि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर, 1908 को बिहार के बेगूसराय में हुआ था. उन्होंने सरकारी नौकरी भी की, कॉलेज में हिन्दी पढ़ाई और आजादी के बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार के पद पर भी रहे. दिनकर को आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस का कवि माना जाता है.
आजादी से पहले उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी कलम चलाई तो आजादी के बाद उन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि मिली. रश्मिरथी, कुरुक्षेत्र, उर्वशी, हुंकार, परशुराम की प्रतीक्षा और हाहाकार जैसे उनके कई लेख अमर हैं.