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10 साल से ज्यादा की सजा काट चुके कैदियों को मिल सकती है जमानत, लेकिन ये होगी शर्त

ऐसे कैदी जो 10 से ज़्यादा सालों से जेल में बंद हैं, उन्हें सुप्रीम कोर्ट राहत देने जा रहा है. शीर्ष अदालत ने अपने एक फैसले में कहा है कि उत्तर प्रदेश में उन दोषियों की जमानत मंजूर की जा सकती है, जिनके अपराधिक रिकॉर्ड नहीं हैं.

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सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पिछले साल तक ऐसे लंबित मामलों की संख्या 83 हजार से ज्यादा थी
  • सजा देने का मकसद किसी भी व्यक्ति को सुधारना है

बरसों से जेल में सज़ा काट रहे कैदियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को एक अहम फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि उत्तर प्रदेश में उन दोषियों की जमानत मंजूर की जा सकती है, जिनके आपराधिक रिकॉर्ड नहीं हैं.

कई कैदी सिर्फ एक अपराध के लिए, जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने इस आदेश में कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट उन दोषियों की जमानत पर विचार कर सकता है, जो 10 से 14 साल या उससे अधिक की सजा जेल में काट चुके हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि इससे जेलों में कैदियों की भीड़ और अदालतों में लंबित मामले घटेंगे. अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट की इस खंडपीठ ने कहा कि 10 से 14 साल तक कैद की सजा काट चुके कैदियों की जमानत पर रिहाई करने से उच्च न्यायालयों में उनके खिलाफ लंबित अपील भी घटेगी. 

लंबित मामलों की संख्या 83 हजार से ज्यादा

इलाहाबाद हाईकोर्ट और इसकी लखनऊ पीठ के सामने अगस्त 2021 तक, ऐसे लंबित मामलों की संख्या 83 हजार से ज्यादा थी. जबकि राज्य की कई जेलों में 7,214 अपराधी दस साल से अधिक की सजा काट चुके हैं. अपनी जमानत के लिए उनकी अपील अदालतों में लंबित हैं.  

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सजा देने का मकसद व्यक्ति को सुधारना

जस्टिस संजय किशन कौल जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने इस आदेश में कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद हाईकोर्ट, इन दोषियों को जमानत देने के मामले में सामान्य निर्देशों का अनुपालन अवश्य करें. इस मामले में जस्टिस कॉल, सरकार और हाईकोर्ट के रवैये से नाराज दिखे. उन्होंने साफ कहा कि जिन कैदियों ने अपनी सजा की ज्यादा अवधि जेल में काट ली है, भविष्य में उनकी अपील पर सुनवाई की संभावना भी अधिक नहीं दिखती. लिहाजा, अदालतें 10 से 14 साल की सजा काट चुके कैदियों को जमानत पर रिहा करने पर भी विचार करें. बशर्ते, उनका पिछला कोई आपराधिक रिकॉर्ड न हो. उन्हें समुचित जमानत पर रिहा कर समाज का हिस्सा बनने दें. क्योंकि सजा देने का मकसद किसी भी व्यक्ति को सुधारना है.

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