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नए संसद भवन पर लगे अशोक स्तंभ के डिजाइन पर विवाद, सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका खारिज

नए संसद भवन की छत पर लगाए गए अशोक स्तंभ के डिजाइन को लेकर छिड़ा विवाद खत्म नहीं हो रहा है. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया है. आरोप है कि इस अशोक स्तंभ में शेर आक्रामक दिखाई दे रहे हैं.

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नए संसद भवन की छत पर 16 हजार किलो वजनी अशोक स्तंभ की प्रतिमा स्थापित की गई है. (फाइल फोटो-PTI)
नए संसद भवन की छत पर 16 हजार किलो वजनी अशोक स्तंभ की प्रतिमा स्थापित की गई है. (फाइल फोटो-PTI)

सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत तैयार किए जा रहे नए संसद भवन की छत पर लगाए गए राष्ट्रीय प्रतीक यानी अशोक स्तंभ के खिलाफ दायर एक याचिका खारिज कर दी है. इस याचिका में शेरों के डिजाइन को लेकर आपत्ति जताई गई थी. 

याचिका में कहा गया था कि नए संसद भवन की छत पर जो अशोक स्तंभ लगाया गया है, उसमें शेर आक्रामक दिखाई दे रहे हैं, जबकि सारनाथ में जो ओरिजिनल अशोक स्तंभ है, उसमें शेर शांत हैं.

इस याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि ये हर दर्शक की अपनी निजी सोच पर निर्भर है कि वो किसी भी आकृति को किस भाव से देखता है. अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि ये आपका परसेप्शन है कि आप इसे किस तरह देखते हैं. इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि हम इसमें सुधार चाहते हैं क्योंकि अशोक स्तंभ के डिजाइन से छेड़छाड़ की गई है. 

याचिका में कहा गया कि संसद के नए भवन के शीर्ष पर स्थापित किए गए अशोक स्तंभ पर बनाए गए शेरों को ज्यादा गुस्से वाला दिखाया गया है. यह बदलाव भारतीय राष्ट्रीय चिह्न एक्ट 2005 का उल्लंघन है. क्योंकि सारनाथ में जो ओरिजनल स्तंभ है, उसमें बने शेर शांत दिखते हैं. उनमें क्रोध नहीं है. वे शांति, सद्भाव, सत्य और अहिंसा का संदेश देते हैं.

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बता दें कि यहां यह जानना जरूरी हो जाता है कि भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 के सेक्शन 6(2)(f) में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है. सेक्शन में कहा गया है कि जरूरत पड़ने पर केंद्र सरकार के पास हर वो परिवर्तन करने की ताकत है जिसे वो जरूरी समझती है. इसमें राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव वाली बात भी शामिल है.

अशोक स्तंभ में बदलाव पर क्या कहता है कानून?

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