जम्मू कश्मीर के गांदरबल जिले के सोनमर्ग क्षेत्र में निर्माणाधीण सुरंग की साइट पर रविवार रात को भीषण आतंकी हमले में 7 लोगों की मौत हो गई. इस हमले में एक डॉक्टर और तीन गैर कश्मीरी मजदूर सात लोगों की जान चली गई, जबकि पांच अन्य घायल हो गए. ये हमला तब हुआ जब गांदरबल के गुंड में सुरंग परियोजना पर काम कर रहे मजदूर और अन्य कर्मचारी देर शाम अपने शिविर में लौट आए थे.
खुफिया एजेंसी के सूत्रों के मुताबिक, हमले के पीछे लश्कर-ए-तैयबा के मुखौटा आतंकी संगठन द रेजिस्टेंस फोर्स यानी टीआरटी का नाम हो सकता है. सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान में बैठा टीआरएफ प्रमुख शेख सज्जाद गुल इस हमले का मास्टरमाइंड है, उसी के इशारे पर टीआरएफ के लोकल माड्यूल ने हमले को अंजाम दिया है. सूत्रों के मुताबिक पिछले एक महीने से ये माड्यूल कर रहा था वारदात के जगह की रेकी की थी.
पाकिस्तानी सेना और ISI करती है फंडिंग
यह पहली बार नहीं है जब टीआरएफ ने इस तरह की आतंकी वारदात को अंजाम दिया है. टीआरएफ पहले भी माइग्रेंट को निशाना बनाते रहा है. कश्मीर में इस समय टीआरएफ ही सबसे ज्यादा एक्टिव आतंकी संगठन माना जाता है. लश्कर से जुड़े साजिद जट, सज्जाद गुल और सलीम रहमानी इसको लीड कर रहे हैं. टीआरएफ से जुड़े आतंकी सूबे में होने वाली हर सरकारी और सियासी गहमागहमी पर नजर रखते हैं. वो सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव हैं और इसके जरिए युवाओं को भटकाते हैं.
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द रेजिस्टेंस फ्रंट जम्मू-कश्मीर में एक्टिव है. ये लश्कर-ए-तैयबा की एक तरह से ब्रांच है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के बाद टीआरएफ एक ऑनलाइन यूनिट के रूप में शुरू हुआ था. माना जाता है कि टीआरएफ को बनाने का मकसद लश्कर जैसे आतंकी संगठनों को कवर देना है. इसके बैकडोर से पाकिस्तानी सेना और ISI खुलकर सहयोग करती है.टीआरएफ ज़्यादातर लश्कर के फंडिंग चैनलों का इस्तेमाल करता है.
गृह मंत्रालय ने मार्च में राज्यसभा को बताया था कि "द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का एक मुखौटा संगठन है और 2019 में अस्तित्व में आया."
इस संगठन को बनाने की साजिश सरहद पार से रची गई थी. टीआरएफ को बनाने में लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के साथ-साथ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी हाथ रहा है. ये इसलिए बनाया गया ताकि भारत में होने वाले आतंकी हमलों में सीधे तौर पर पाकिस्तान का नाम न आए और वो फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ब्लैक लिस्ट में आने से बच जाए.
लश्कर का मुखौटा
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में बड़ा आतंकी हमला हुआ था. इसके बाद दुनियाभर में पाकिस्तान बेनकाब हो गया. इस हमले को जैश-ए-मोहम्मद ने अंजाम दिया था. जब दुनियाभर से पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा तो वो समझ गया कि आतंकी संगठनों के खिलाफ कुछ न कुछ करके दिखाना होगा. इसके बाद उसने ऐसा संगठन बनाने की साजिश रची, जिससे भारत में आतंक भी फैल जाए और उसका नाम भी न आए. तब जाकर आईएसआई ने लश्कर के साथ मिलकर टीआरएफ बनाया.
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कश्मीर में लगातार कर रहा है आतंकी वारदात
2022 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा कि 2022 में कश्मीर में सुरक्षा बलों द्वारा 90 से ज़्यादा ऑपरेशनों में 42 विदेशी नागरिकों सहित 172 आतंकवादी मारे गए. घाटी में मारे गए आतंकवादियों में से ज़्यादातर (108) द रेजिस्टेंस फ्रंट या लश्कर-ए-तैयबा के थे. साथ ही, आतंकवादी समूहों में शामिल होने वाले 100 लोगों में से 74 TRF द्वारा भर्ती किए गए थे, जो पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूह से बढ़ते ख़तरे को दर्शाता है.
माइग्रेंट्स रहते हैं TRF के निशाने पर
टीआरएफ का नाम तब चर्चा में आया जब उसने 2020 में बीजेपी कार्यकर्ता फिदा हुसैन, उमर राशिद बेग और उमर हाजम की कुलगाम में बेरहमी से हत्या कर दी थी.टीआरएफ कश्मीर में फिर से वही दौर लाना चाहता है, जो कभी 90 के दशक में था. टीआरएफ के आतंकी टारगेट किलिंग पर फोकस करते हैं. वो ज्यादातर गैर-कश्मीरियों को निशाना बनाते हैं ताकि बाहरी राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर आने से बचें.
26 फरवरी, 2023 को संजय शर्मा अपनी पत्नी के साथ कश्मीर के पुलवामा में स्थानीय बाजार जा रहे थे, तभी आतंकवादियों ने उन पर गोलियां चला दीं. सुरक्षा गार्ड के तौर पर काम करने वाले शर्मा को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन गोली लगने से उनकी मौत हो गई. हत्या के पीछे द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) का ही हाथ था. TRF ने शर्मा की हत्या का एकमात्र कारण यह चुना कि वह एक कश्मीरी पंडित थे. 2019 से, जब से यह आतंकी संगठन अस्तित्व में आया है तब से वह दर्जनों आतंकी हमलों में शामिल रहा है. खासकर घाटी में अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाकर हमला कर रहा है.
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