फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' (The Kashmir Files) की पूरे देश में चर्चा हो रही है. कश्मीरी पंडितों के जीवन पर आधारित इस फिल्म को लोग खूब पसंद कर रहे हैं. इस फिल्म के आने के बाद कश्मीरी पंडितों ने 1989-90 के नरसंहार की जांच के लिए के एक बार फिर देश की सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया है. कश्मीरी पंडितों की संस्था ‘रूट्स इन कश्मीर’ ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल करते हुए मामले की फिर से जांच करने की मांग की है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में अपने आदेश में यह कहते हुए रिव्यू याचिका खारिज की थी कि नरसंहार के 27 साल बाद सबूत जुटाना मुश्किल है. लेकिन अब कोर्ट में दाखिल नई याचिका में कहा गया है कि 33 साल बाद 1984 के दंगों (सिख दंगों) की जांच करवाई जा सकती है तो ऐसा ही इस मामले में भी संभव है.
इस मामले में 27 साल बाद दाखिल क्यूरेटिव पिटीशन के साथ सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और पूर्व एएसजी सीनियर एडवोकेट विकास सिंह की सिफारिश भी है. सत्ताइस साल गुजरने के बावजूद शरणार्थियों की तरह रह रहे कश्मीरी पंडितों के हालात सुधरे नहीं हैं. याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट और अंतरराष्ट्रीय अदालतों के फैसले और आदेशों का भी हवाला दिया है. याचिका में कहा गया है कि लगभग तीन दशक बाद भी अनगिनत पीड़ितों के लिए राहत के लिए कब तक इंतजार करना होगा?
याचिका में फारुक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे, जावेद नलका सहित अन्य आतंकवादियों पर 1989- 90 1997- 98 के दौरान किए गए उनके अमानवीय कृत्य, हत्या करने के लिए मुकदमा दर्ज कर जांच कराने की मांग की है. याचिका में कश्मीरी पंडितों की ओर से कहा गया है कि साल 1990 में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने घाटी का माहौल कुछ ऐसा कर दिया था, जिसकी वजह से सुरक्षा के चलते घाटी छोड़कर जाना पड़ा था. अब जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटने के बाद वो एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया है. ऐसे में इन लोगों का कहना है कि अब ये सरकार से इस बात की उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द ही इनकी घाटी में वापसी हो सकेगी.