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'पानी आया तब गांव में लड़कों की शादी हुई', वाटरमैन राजेंद्र ने बताया जल संकट से निपटने का तरीका

India Today Conclave 2021: भारत के 'वाटरमैन' राजेंद्र सिंह ने कहा कि अंडरग्राउंड पानी को खत्म होने से बचाना है तो बदलते बारिश के पैटर्न के बारे में किसानों को बताना होगा.

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India Today Conclave 2021: राजेंद्र सिंह और भरत लाल के साथ गौरव सावंत
India Today Conclave 2021: राजेंद्र सिंह और भरत लाल के साथ गौरव सावंत
स्टोरी हाइलाइट्स
  • इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2021 में जल जीवन मिशन पर हुई बात
  • वाटरमैन राजेंद्र सिंह और जल जीवन मिशन के डायरेक्टर भरत लाल हुए शामिल

पानी की हो रही कमी कितनी भयावह है और इससे कैसे निपटा जा सकता है इसको लेकर वाटरमैन राजेंद्र सिंह ने बड़ी बातें कहीं. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2021 (India Today Conclave 2021) में जल जीवन मिशन के मिशन डायरेक्टर भरत लाल के सामने वाटरमैन के रूप से पहचाने जाने वाले राजेंद्र सिंह ने अलवर के अपने गांव का किस्सा भी बताया.

Water Works: Turn the tap. India most crucial story टॉपिक पर बात करते हुए राजेंद्र सिंह ने कहा कि पानी की कमी से सिर्फ सिंधु घाटी की सभ्यता ही नहीं नष्ट हुई. बल्कि राजस्थान में पहले फतेहपुर सीकरी में राजधानी थी, पानी की कमी हुई तो उसे जयपुर शिफ्ट किया गया. राजेंद्र बोले, 'मेरे गांव में तो सारे लड़के बाहर चले गए थे. गांव उजड़ गया था.'

'पानी आया तो शादी हुई' 

अलवर में करीब दो दशक पहले एक नदी को फिर से 'जिंदा' करने वाले राजेंद्र ने आगे कहा कि मेरे इलाके में जब पानी आया तब गांव के लड़कों की शादी होने लगी. अब सब शादीशुदा हैं कोई कुंवारा नहीं मिलेगा. पहले 100 में से 10 लड़कों की शादी पानी की वजह से नहीं होती थी.

India Today Conclave 2021 में गौरव सावंत से बात करते हुए राजेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार ने जल जीवन मिशन के 3 लाख 80 हजार पानी समितियां बनी हैं वे सब कागज पर हैं. लेकिन जब कॉन्ट्रेक्टर किसी गांव में इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाता है तो वह अपना लाभ देखता है. ऐसे में समाज के लिए शुभ क्या होगा, उसको लाभ नष्ट कर देता है. उन्होंने कहा कि जल की सुरक्षा में महिलाओं की भागीदारी होनी चाहिए.

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अंडरग्राउंड पानी को कैसे बचाया जाए? राजेंद्र सिंह ने बताया

वाटरमैन ने आगे कहा कि अच्छी बारिश के बावजूद पानी घट रहा है. इसकी वजह यह है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश का पैटर्न बदला है और किसान उसको समझ नहीं पा रहा. उससे लिंक नहीं कर पा रहा. किसान अंदाजा नहीं लगा पाता कि बारिश कितनी होगी, कब होगी. अब जमाना था जब गांव के लोग ज्येष्ठ के महीने में अमावस के दिन यह तय कर लेते थे कि बारिश का पैटर्न क्या है और किस इलाके में क्या फसल बोनी है. अब गांव में वह दिखता नहीं है. लेकिन अब जब चीजें बदली हैं तो किसान जमीन से पानी निकालकर खेती करता है जो बड़ी दिक्कत है.

राजेंद्र ने कहा कि भारत की कृषि यूनिवर्सिटीज को यह जिम्मेदारी दी जानी चाहिए कि वह ठीक से रेन पैटर्न को समझें. वह बोले कि देश में 90 एग्रो-इकोलॉजिकल जोन हैं, वहां की अगर 90 यूनिवर्सिटीज को भी यह जिम्मेदारी दे दी जाए कि सभी एग्रो-इकोलॉजिकल जोन में किसानों को रेन पैटर्न बताओ और क्रॉप पैटर्न को उससे लिंक करने को कहो तो धरती का पेट खाली होना बंद हो जाएगा और पानी बच जाएगा.

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