अफगानिस्तान मसले पर नई दिल्ली में आज से एक अहम कॉन्फ्रेंस हुई. इस कॉन्फ्रेंस में 8 देशों ने हिस्सा लिया. अफगानिस्तान के मसले पर ये तीसरी ऐसी मीटिंग हो रही है और पहली बार भारत इसकी अध्यक्षता कर रहा है. इस बैठक में भारत समेत 8 देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) बैठक कर रहे हैं. इस कॉन्फ्रेंस में तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान में बढ़े आतंकवाद, उग्रवाद, नशीली दवाओं के उत्पादन और तस्करी जैसे मुद्दों के अलावा सुरक्षा संबंधी चुनौतियों पर चर्चा होगी.
इस बैठक में एनएसए अजित डोभाल ने कहा कि ये समय क्षेत्रीय देशों के बीच ज्यादा से ज्यादा बातचीत, सहयोग और समन्वय का है, ताकि अफगानिस्तान के लोगों की मदद करने के साथ-साथ हमारी सामूहिक सुरक्षा भी बढ़ सके.
2018 में हुई थी ऐसी पहली बैठक
2018 में अमेरिका ने जब अफगानिस्तान से सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला लिया तो उसके बाद उसी साल इस तरह की कॉन्फ्रेंस का आइडिया सामने आया. सितंबर 2018 में पहली बार NSA लेवल की बातचीत हुई. इस बैठक की मेजबानी ईरान ने की थी. इस बैठक में भारत, अफगानिस्तान, ईरान, रूस और चीन शामिल हुए थे. दिसंबर 2019 में इसकी दूसरी बैठक हुई और इसमें ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने भी हिस्सा लिया. दोनों ही बैठक में शामिल होने से पाकिस्तान ने इनकार कर दिया था.
अब कौन-कौन देश हो रहे हैं शामिल?
NSA लेवल की ये तीसरी बैठक भारत की अध्यक्षता में हो रही है. इस बैठक को 'दिल्ली डायलॉग' नाम दिया गया है. इस बैठक में भारत के अलावा ईरान, रूस, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान शामिल हुए हैं. पाकिस्तान ने इस बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया था. वहीं, चीन ने शेड्यूलिंग समस्या के कारण इस बैठक में शामिल होने में असमर्थता जाहिर की है.
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क्या है मीटिंग का एजेंडा?
आखिर क्या वजह रही है कि दुनिया के 8 देशों को अफगानिस्तान से सुरक्षा के मसले पर साथ आना पड़ा. इसकी 5 बड़ी वजहे हैं...
1. तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान में बढ़ता आतंकवाद.
2. उग्रवाद और कट्टरपंथ.
3. तालिबान के आने के बाद शुरू हुआ क्रॉस बॉर्डर माइग्रेशन.
4. ड्रग का उत्पादन और तस्करी.
5. अमेरिकी और नाटो देशों की ओर से अफगानिस्तान में छोड़े गए हथियारों से खतरा.
चीन-पाकिस्तान की गैरमौजूदगी के मायने क्या?
भारत की मौजूदगी के कारण पाकिस्तान पहले की दो मीटिंग में भी शामिल नहीं हुआ था और तीसरी बैठक में भी उसने शामिल होने से इनकार कर दिया. पाकिस्तान ने इस बैठक में शामिल होने से ये कहते हुए इनकार कर दिया था कि भारत 'शांतिदूत' नहीं है. पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद युसूफ से जब इस बैठक में हिस्सा लेने के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा था कि "मैं नहीं जाऊंगा. मुझे नहीं जाना है, एक बिगाड़ने वाला शांतिदूत की भूमिका नहीं निभा सकता.'
वहीं, चीन ने भी ऐन मौके पर इस बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया. चीन पहली दोनों बैठकों में शामिल हुआ था, लेकिन इस बार उसने शेड्यूलिंग की समस्या होने का हवाला देकर इससे दूरी बना ली. इसको ऐसे भी देखा जा रहा है कि चीन इस मसले पर ये संदेश देने की भी कोशिश कर रहा है कि वो भारत के नेतृत्व वाली किसी भी प्रक्रिया से नहीं जुड़ना चाहता. इसके अलावा चीन को तालिबान का करीबी भी समझा जाता है.
इस बैठक में अफगानिस्तान का प्रतिनिधि क्यों नहीं?
शुरुआती दोनों बैठकों में अफगानिस्तान भी शामिल हुआ था, लेकिन इस बैठक में उसे नहीं बुलाया गया है. इसकी बड़ी वजह तालिबान ही है. बैठक में अफगान प्रतिनिधि को नहीं बुलाने के सवाल पर सूत्रों ने बताया कि हमने तालिबान को इसलिए नहीं बुलाया क्योंकि हम उन्हें नहीं पहचानते. साथ ही इन देशों में से किसी ने भी उन्हें मान्यता नहीं दी है.
क्या है भारत का एजेंडा
सूत्रों ने कहा कि अफगानिस्तान पर भारत का साफ कहना है कि तालिबान शासित अफगानिस्तान को आतंकियों का पनाहगाह बनने नहीं दिया जा सकता. तालिबान राज में अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए. लेकिन, तालिबान इनके अधिकारों की जरा भी फिक्र नहीं करता है. तालिबान पर पाकिस्तान की सरकार, सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई का जबर्दस्त प्रभाव है. दुनिया जानती है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करना चाहता है.