
देश में कोरोना की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है. रोज लाख से ज्यादा नए मामले दर्ज किए जा रहे हैं और मौत का आंकड़ा भी डराने लगा है. बढ़ते केस की वजह से देश के कई राज्यों में अब ऑक्सीजन की किल्लत देखने को मिल रही है. हालात इतने खराब हैं कि कई राज्य ऑक्सीजन के लिए अपने पड़ोसी राज्यों पर निर्भर दिख रहे हैं.
किन राज्यों में ऑक्सीजन की भारी किल्लत?
अकेले महाराष्ट्र में इस समय 6.38 लाख एक्टिव केस हैं और उनमें भी 10 प्रतिशत ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं. ऐसे में राज्य में ऑक्सीजन की डिमांड बढ़ती जा रही है, लेकिन सप्लाई में दिक्कत हो रही है. अभी की बात करें तो महाराष्ट्र की ऑक्सीजन आपूर्ति छत्तीसगढ़ और गुजरात के जरिए पूरी हो रही है. दोनों ही राज्यों की तरफ से महाराष्ट्र को 50 टन ऑक्सीजन दी जा रही है.
मध्य प्रदेश की स्थिति चिंता बढ़ाने वाली है. केस तो फुल स्पीड से बढ़ते दिख ही रहे हैं, लेकिन ऑक्सीजन और बेड के इंतजाम कम पड़ रहे हैं. इसकी बड़ी वजह ये है कि मध्य प्रेदश के पास खुद का ऑक्सीजन मैन्युफैक्चरिंग प्लांट नहीं है. राज्य की ऑक्सीजन आपूर्ति गुजरात, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के जरिए पूरी होती है. गुजरात में भी कोरोना ने ऐसे पैर पसार लिए हैं कि अब राज्य में प्रति दिन ऑक्सीजन की डिमांड 500 टन तक जा पहुंची है.

बड़े राज्यों में तो इस समय ऑक्सीजन संकट देखने को मिल ही रहा है, गांव में तो स्थिति बद से बदतर है. वहां पर ना सिर्फ ऑक्सीजन की कमी है, बल्कि ट्रांसपोर्टेशन भी बड़ा मुद्दा है. बताया जा रहा है कि ऑक्सीजन के लिए बड़े स्टोरेज टैंक की भारी कमी है. ऐसे में सवाल तो उठता है कि भारत में कोरोना संकट के बीच ये ऑक्सीजन की किल्लत क्यों हुई? ऑक्सीजन सप्लाई करने में क्या दिक्कत आ रही है?
क्या ऑक्सीजन उत्पादन में आ रही समस्या?
मालूम हो कि देश 7,000 मीट्रिक टन तक मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकता है. वहीं आईनॉक्स एयर प्रोडक्ट्स लिमिटेड, लिंडे इंडिया कुछ ऐसी कंपनियां हैं जो देश के लिए ऑक्सीजन का सबसे ज्यादा निर्माण करती हैं. अकेले आईनॉक्स की तरफ से प्रति दिन 2000 टन ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है. लेकिन फिर भी सवाल यहीं आता है कि इस ऑक्सीजन का समय रहते ट्रांसपोर्ट कैसे किया जाए? डिमांड बढ़ती जा रही है लेकिन स्टोरेज टैंक और सिलेंडर की भारी कमी देखने को मिल रही है. अस्पतालों में ऑक्सीजन की किल्लत की ये भी एक बड़ी वजह बताई जा रही है.

महंगे ट्रांसपोर्टेशन से बढ़ी चुनौती
अब ऐसा नहीं है कि आक्सीजन प्लांट बढ़ाने पर विचार नहीं किया गया हो. ऐलान बड़े किए गए हैं, कहा जा रहा है कि बंगाल, एमपी और यूपी में ऑक्सीजन के भविष्य में और प्लांट लगाए जा सकते हैं, लेकिन उन्हें लगने में समय लगेगा. यही कारण है कि ट्रांसपोर्टेशन को दुरुस्त करने पर जोर दिया जा रहा है. समस्या तो ये भी है कि अब ट्रांसपोर्टेशन का दाम काफी ज्यादा हो गया है, इस वजह से दूसरी वस्तुओं के दाम पर भी असर देखने को मिला है. पहले जो ऑक्सीजन सिलेंडर 100 से 150 रुपये में रीफिल करवा लिया जाता था, अब उसे रीफिल करवाने में 500 से 2000 रुपये देने पड़ रहे हैं.

कैसे दूर हो सकती है ऑक्सजीन की किल्लत?
मतलब कोरोना के प्रकोप के बीच ऑक्सीजन को लेकर दो प्रमुख समस्याए हैं- पहली- डिमांड ज्यादा और सप्लाई कम. दूसरी- एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसपोर्टेशन मुश्किल. इन समस्याओं को देखते हुए अब कोशिश की जा रही है कि अस्पतालों को ऑक्सीजन के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जाए. इसी कड़ी में कहा जा रहा है कि देश के 100 अस्पतालों में Pressure Swing Adsorption (PSA) प्लांट लगाए जाएं. ये प्लांट अस्पताल को ऑक्सीजन तो सप्लाई करेंगे ही, इसके अलावा नेशनल ग्रिड पर भी बोझ कम हो सकेगा. वहीं अब अस्पतालों में बड़े स्टोरेज टैंक लगाने की भी तैयारी है.
कोशिश की जा रही है कि अस्पतालों के पास कम से कम 10 दिनों तक ऑक्सीजन का स्टॉक सुरक्षित रहे. वहीं खबर तो ये भी है कि मध्यप्रदेश में अब ट्रेन के जरिए भी ऑक्सीजन का ट्रांसपोर्ट करवाया जा सकता है. सड़क मार्ग को छोड़ ट्रेन के जरिए भी कम समय में ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट करने की कवायद हो सकती है. अब ये इंतजाम जमीन पर कब उतरते दिखते हैं, कब राज्य ऑक्सीजन की किल्लत से मुक्त होते हैं, इस पर सभी की नजर रहने वाली है.