कर्नाटक के अस्पतालों में अब पीएम जन औषधि केंद्र नहीं होंगे. मेडिकल एजुकेशन मिनिस्टर शरण प्रकाश पाटिल ने सरकारी अस्पताल के परिसर में जन औषधि केंद्र खोलने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार वैसे भी मुफ्त में दवाइयां देती है और अस्पतालों के अंदर केंद्र सरकार की मेडिकल शॉप की कोई जरूरत नहीं है. मरीज दवा के लिए पैसे क्यों दें, जबकि सरकार मुफ्त में दवाइयां दे रही है.
जन औषधि केंद्र हटाए जाने पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विजयेंद्र येदियुरप्पा ने कहा कि सरकार हर कदम पर टकराव पैदा कर रही है. यह पीएम मोदी की ड्रीम स्कीम है. लोगों को सस्ती दवाइयां दी जा रही हैं. इस योजना को रोकना सही नहीं है.
विजयेंद्र येदियुरप्पा ने कहा, क्या कांग्रेस सरकार गरीबों के स्वास्थ्य से ज्यादा अपनी फूहड़ राजनीति पर ध्यान दे रही है? मेडिकल एजुकेशन मिनिस्टर शरण प्रकाश पाटिल द्वारा सरकारी अस्पताल परिसर के पास जन औषधि केंद्रों को अनुमति देने से इनकार करना वाकई निराशाजनक है. यह निर्णय न केवल मरीजों को सस्ती दवाओं तक पहुंच से वंचित करता है, बल्कि जरूरतमंदों की कीमत पर दवा कंपनियों को लाभ पहुंचाने की संभावित साजिश के बारे में भी गंभीर चिंताएं पैदा करता है.
फैसले पर पुनर्विचार की अपील
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा, सरकार को लोगों के कल्याण के खिलाफ जाने वाले किसी भी फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए और उसे वापस लेना चाहिए. केंद्र सरकार के साथ टकराव के रुख से बचना और इसके बजाय नागरिकों की भलाई पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है. मोदी सरकार ने गरीबों को सस्ती जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराने के लिए जन औषधि केंद्र स्थापित किए और कर्नाटक को अपने नागरिकों की भलाई के लिए इस रास्ते पर चलते रहना चाहिए.
हालांकि, इस निर्णय को कई लोगों ने पसंद नहीं किया है, खासकर उन लोगों ने जो जन औषधि केंद्रों को कम आय वाले परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा के रूप में देखते हैं. आलोचकों का तर्क है कि सरकारी अस्पतालों में अक्सर दवाओं की कमी होती है, और जन औषधि केंद्र इस कमी को पूरा करने में मदद करते हैं. यह सुनिश्चित हो पाता है कि मरीजों को किफायती कीमतों पर आवश्यक दवाएं मिल सकें. राज्य सरकार के इस निर्णय के खिलाफ विपक्षी दलों और सार्वजनिक समूहों के एकजुट होने से विवाद बढ़ने की संभावना है.