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वकील ने लगाई याचिका, ज्यूडिशरी के लोगों को मिले वैक्सीनेशन में तवज्जो, जज ने पूछा- 'टाइटैनिक' देखी है?

दोनों वकीलों ने यह दलील देते हुए याचिका लगाई थी कि कोरोना के दौर में अदालतों के खुलने के बाद से ज्यूडिशरी के कई लोग वायरस संक्रमित हुए हैं. मुख्य न्यायाधीश ने वकीलों से कहा आपने सिर्फ वकीलों और जजों के बारे में ही क्यों सोचा आपने प्राइवेट कंपनियों के लोगों के बारे में क्यों नहीं सोचा?

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बॉम्बे HC में वैक्सीनेशन में ज्यूडिशरी के लोगों को प्राथमिकता देने को लेकर याचिका लगाई गई थी. (फाइल फोटो)
बॉम्बे HC में वैक्सीनेशन में ज्यूडिशरी के लोगों को प्राथमिकता देने को लेकर याचिका लगाई गई थी. (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • जज ने कहा- आपका स्वभाव स्वार्थ भरा नजर आता है
  • मुख्य न्यायाधीश बोले- इसे न्यायपालिका के विवेक पर छोड़ें
  • वैक्सीनेशन में प्रथामिकता को लेकर लगाई थी याचिका

बॉम्बे हाईकोर्ट में ज्यूडिशरी के लोगों को कोरोना वैक्सीनेशन अभियान के दौरान प्राथमिकता देने की मांग वाली याचिका पर मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता ने दिलचस्प टिप्पणी की. उन्होंने याचिकाकर्ता वकील यशोदीप देशमुख और विनोद पी सांगवीकर से पूछा कि आपने हॉलीवुड की फिल्म टाइटैनिक देखी है? आपको जहाज का कैप्टन याद है? आपको याद है उसने क्या किया था? वह भागा नहीं था. जहाज में अंत में वही बचा था. यहां कप्तान मैं हूं. पहले सबको वैक्सीन मिल जाएगी फिर हम लोगों को वैक्सीन की डोज मिलेगी.

उन्होंने कहा कि आप ये चाहते हैं कि हम यह साबित करें कि हम फ्रंटलाइन वर्कर्स हैं और हमें वैक्सीन का डोज पहले मिलना चाहिए? आपने उन लोगों के लिए क्यों नहीं कहा जो आपके घर के बाहर कूड़ा उठाने आते हैं. यहां आपका स्वभाव काफी स्वार्थी नजर आता है. दोनों वकीलों ने यह दलील देते हुए याचिका लगाई थी कि कोरोना के दौर में अदालतों के खुलने के बाद से ज्यूडिशरी के कई लोग वायरस संक्रमित हुए हैं. मुख्य न्यायाधीश ने वकीलों से कहा आपने सिर्फ वकीलों और जजों के बारे में ही क्यों सोचा आपने प्राइवेट कंपनियों के लोगों के बारे में क्यों नहीं सोचा? उन्होंने आगे कहा कि वैक्सीन पर्याप्त मात्रा में नहीं है. इसलिेए इसे न्यायापालिका के विवेक पर छोड़ दीजिए.

उधर, एक अन्य मामले में सुनावई के दौरान एक पढ़े लिखे और संपन्न शख्स को उसकी पत्नी को गुजरा भत्ता देने के आदेश दिए. शख्स का कहना था कि उसके पास नौकरी नहीं है. दुबई में रहने वाले इस शख्स ने चीन की यात्रा की थी और उसके फोन का बिल दस हजार रुपये प्रति माह था. कुर्ला मजिस्ट्रेट कोर्ट ने महिला और उस शख्स के परिवार की आर्थिक स्थिति के बारे में पता लगाया था. दोनों ने शादी के दौरान बीएमडब्ल्यू और ऑ़डी जैसी महंगी गाड़ियों का इस्तेमाल किया था. हनीमून के दौरान दोनों मलेशिया भी गए थे. कोर्ट ने कहा कि इस बिनाह पर कहा जा सकता है कि दोनों परिवार अपर मिडिल क्लास  लाइफस्टाइल वाले हैं.

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कोर्ट ने शख्स को कहा कि अगर महिला पति के परिवार के साथ रहती है तो उसे 20 हजार प्रति माह और अगर महिला अपने परिवार के साथ रहती है तो उसे 30 हजार रुपये प्रति माह दिया जाए. कोर्ट ने यह भी पाया था कि शख्स जिस कंपनी में काम करता था वहां उसकी तारीफ की गई थी और कहा गया था कि वह जहां भी काम करेगा तरक्की हासिल करेगा. कोर्ट ने कहा कि दुबई जैसे शहर में रह रहे शख्स जिसका फोन का बिल 10 हजार प्रति महीने हो उसकी इस बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता कि वह बेरोजगार है. बता दें, महिला ने पति के परिवार पर दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया था.

 

 

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