scorecardresearch
 

जस्टिस गनेड़ीवाला के सेवा विस्तार पर फिर ठनी! कॉलेजियम की सिफारिश केंद्र ने घटाई

बॉम्बे हाईकोर्ट की जज जस्टिस पुष्पा वी गनेड़ीवाला को एडिशनल जज बनाए रखने की अवधि पर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश के बीच दूरी बनती दिख रही है. यानी एक बार फिर दोनों आमने सामने हैं.

Advertisement
X
जस्टिस गनेड़ीवाला के सेवा विस्तार पर फिर ठनी (फाइल फोटो)
जस्टिस गनेड़ीवाला के सेवा विस्तार पर फिर ठनी (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • जस्टिस गनेड़ीवाला को एडिशनल जज बनाए रखने का मामला
  • केंद्र ने एडिशनल जज की अवधि एक साल की

बॉम्बे हाईकोर्ट की जज पुष्पा वी गनेड़ीवाला को एडिशनल जज बनाए रखने की अवधि पर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश के बीच दूरी बनती दिख रही है. यानी एक बार फिर दोनों आमने-सामने हैं.
 
यौन शोषण के मामलों में एक के बाद एक विवादास्पद फैसले देने के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने बॉम्बे हाईकोर्ट की अस्थायी जज गनेड़ीवाला को अगले दो साल तक परमानेंट न करने की ठान ली थी. वैसे जस्टिस गनेड़ीवाला का अस्थायी जज के रूप में कार्यकाल 13 फरवरी 2022 तक है. कॉलेजियम ने उनको 13 फरवरी 2022 तक इसी रूप में रखे जाने की सिफारिश की है. लेकिन सरकार ने एक साल और घटाते हुए 13 फरवरी 2021 तक ही एक्सटेंशन देने के लिए फाइल आगे बढ़ा दी है.
 
हालांकि कॉलेजियम ने कुछ दिन पहले ही अपने कुछ जजों के बीच तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद जस्टिस गनेड़ीवाला को स्थायी जज बनाने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी थी. लेकिन उनके लगातार विवादित फैसले देने की वजह से कॉलेजियम को अपनी ही सिफारिश में बदलाव करना पड़ा है.

कॉलेजियम ने जस्टिस पुष्पा वी गनेड़ीवाला को अगले दो साल तक अस्थायी जज ही बनाए रखने की सिफारिश की है. लेकिन केंद्रीय विधि और न्याय मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री कार्यालय में भेजी गई फ़ाइल में जस्टिस गनेड़ीवाला को सिर्फ एक साल तक ही अस्थायी जज के रूप में विस्तार दिए जाने की बात कही गई है. यानी ये व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश के इतर है.
 
जस्टिस गनेड़ीवाला ने पहले 19 जनवरी को स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट ना होने की स्थिति में रेप ना होने की दलील देते हुए पॉक्सो एक्ट के तहत आरोपी को बरी करने के आदेश दिए थे, जबकि 28 जनवरी को एक अन्य मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि रेप की घटना के समय आरोपी के पैंट की जिप खुली होने के सबूत दोष सिद्धि के लिए अपर्याप्त हैं. अपने फैसले में जस्टिस गनेड़ीवाला ने तमाम परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के बावजूद सिर्फ इस दलील पर आरोपी को बरी कर दिया कि आरोपी के पैंट की जिप खुली होने से ये आरोपी के खिलाफ दोष साबित नहीं होता.

Advertisement


 

Advertisement
Advertisement