लोकसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तीन अहम विधेयक पेश करने वाले हैं, जिनके तहत गंभीर आपराधिक आरोपों के सिलसिले में लगातार 30 दिन तक जेल में रहने पर प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री या राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के मंत्री को पद से हटाने का प्रावधान है. इसे लेकर पहले से ही विपक्षी दल जोरदार विरोध कर रहे हैं और ऐसे में सदन में जोरदार हंगामा होने की आशंका जताई जा रही है.
बिल का क्यों हो रहा विरोध?
विधेयक के जरिए संविधान में संशोधन करके 30 दिन तक जेल में रहने पर वर्तमान प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री या राज्य के मंत्री को पद से हटाने का प्रावधान शामिल है. विपक्षी दलों ने इस प्रस्तावित विधेयक पर आपत्ति जताई है और उनका कहना है कि इस बिल से केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी को किसी भी मौजूदा मुख्यमंत्री या मंत्री को हटाने की इजाजत मिल जाएगी.
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कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने एक्स पर एक तीखी पोस्ट में प्रस्ताव में कानूनी प्रावधानों और दिशानिर्देशों की कमी की बात कही है. सिंघवी ने एक्स पर पोस्ट किया: 'यह कैसा दुष्चक्र है! गिरफ़्तारी के लिए कोई दिशानिर्देश नहीं! विपक्षी नेताओं की बेतहाशा और बेहिसाब गिरफ़्तारियां. नया प्रस्तावित क़ानून मौजूदा मुख्यमंत्री आदि को गिरफ़्तारी के तुरंत बाद हटा देता है. विपक्ष को अस्थिर करने का सबसे अच्छा तरीका है कि विपक्षी मुख्यमंत्रियों को गिरफ़्तार करने के लिए पक्षपाती केंद्रीय एजेंसियों को लगा दिया जाए और उन्हें चुनावी तौर पर हराने में नाकाम रहने के बावजूद, मनमाने ढंग से गिरफ़्तार करके उन्हें हटा दिया जाए!! और सत्ताधारी दल के किसी भी मौजूदा मुख्यमंत्री को कभी छुआ तक नहीं गया!!'
मौजूदा कानून क्या है?
संविधान के मुताबिक, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की नियुक्ति क्रमशः राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा की जाती है, और वे नियुक्ति प्राधिकारी की इच्छानुसार काम करते हैं. मुख्यमंत्री के रूप में 'चुना' गया व्यक्ति उस दल का नेता होता है जिसके पास राज्य विधानसभा में बहुमत होता है. सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में कहा है कि एक निर्वाचित सरकार को यह साबित करना होता है कि उसे सदन में बहुमत हासिल है.
एसआर बोम्मई मामले में और फिर शिवराज सिंह चौहान मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अगर मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद को सदन का विश्वासमत हासिल है या नहीं, इस बारे में कोई संदेह हो, तो तत्काल फ्लोर टेस्ट कराना सबसे बेहतर उपाय है.
साल 2016 के नबाम रेबिया फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति इस धारणा पर आधारित है कि उसे विधानसभा के ज्यादातर सदस्यों का समर्थन हासिल है या हासिल होने की उम्मीद है. इसलिए, ऐसा नहीं है कि राज्यपाल को किसी को भी राज्य का मुख्यमंत्री मनोनीत करने का पूर्ण विवेकाधिकार मिला है.
सीएम की सलाह पर बनते हैं मंत्री
संविधान के अनुच्छेद 75 के तहत प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाएगी. मंत्रीगण राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त यानी 'डॉक्ट्रिन ऑफ प्लेजर' से पद धारण करेंगे. मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगी. इसी तरह मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाएगी. मंत्री, राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करेंगे.
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'फ्लोर टेस्ट' के अलावा, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत, सदन के किसी भी मौजूदा सदस्य, जिसमें मुख्यमंत्री भी शामिल हैं, को सदन की सदस्यता से 'अयोग्य' ठहराया जा सकता है, अगर उन्हें किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है और दो साल से ज़्यादा की कैद की सज़ा सुनाई जाती है. अहम बात यह है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत अयोग्यता सिर्फ न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि के बाद ही लागू होती है, और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 न्यूनतम सजा को परिभाषित करती है जो विशिष्ट अपराधों के लिए अयोग्यता लागू करने के लिए दी जानी चाहिए.
इसके अलावा, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में एक सुरक्षा प्रावधान भी है कि किसी मौजूदा सांसद या विधायक की अयोग्यता तब तक प्रभावी नहीं होगी जब तक कि हाई कोर्ट में अपील प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती.
प्रस्तावित विधेयक से क्या होगा?
सूत्रों के मुताबिक लोकसभा मे पेश होने वाले विधेयक में प्रस्ताव है कि अगर किसी राज्य या केंद्र के किसी मंत्री, जिसमें मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, को किसी ऐसे मामले में गिरफ्तार किया जाता है और 30 दिन तक हिरासत में रखा जाता है जिसमें पांच साल तक की सज़ा हो सकती है, तो उन्हें गिरफ्तारी के 31वें दिन से पहले इस्तीफ़ा देना होगा. ऐसा न करने पर, वे मंत्री पद से मुक्त हो जाएंगे.
इसका अर्थ यह है कि वर्तमान मंत्री/मुख्यमंत्री/प्रधानमंत्री को हटाने की कार्रवाई दोषसिद्धि के बाद नहीं, बल्कि जांच और सुनवाई के दौरान ही शुरू हो जाएगी.
क्या वर्तमान मंत्री/मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी हुई है?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, दिल्ली आबकारी नीति घोटाले में संलिप्तता के आरोपों के बीच, मार्च 2024 में गिरफ्तार होने वाले पहले मौजूदा मुख्यमंत्री थे. केजरीवाल सितंबर तक गिरफ्तार रहे और ज़मानत पर रिहा होने के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
दिल्ली में AAP के मंत्री
सत्येंद्र जैन, जिन्हें कथित तौर पर मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया था, ने करीब एक साल तक अपना मंत्री पद बरकरार रखा. मई 2022 में उनकी गिरफ्तारी के बाद फरवरी 2023 में पद से इस्तीफा दे दिया. दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया शराब घोटाला मामले में 17 महीने से ज्यादा समय तक जेल में रहे, लेकिन गिरफ्तारी के दो दिन बाद ही उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
तमिलनाडु के मंत्री सेंथिल बालाजी
सेंथिल बालाजी ने 27 अप्रैल, 2025 को सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणियों के बाद अपना इस्तीफा दे दिया था, जिसमें उन्होंने गवाहों से छेड़छाड़ करने और कैश फॉर जॉब्स घोटाले और मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में उनके खिलाफ चल रही जांच को प्रभावित करने का आरोप लगाया था. सर्वोच्च न्यायालय ने यह साफ कर दिया था कि उन्हें मंत्री पद और स्वतंत्रता के बीच चयन करना होगा, क्योंकि अगर वह मंत्री बने रहते हैं तो बेंच उनकी जमानत रद्द कर देगी.
यह दूसरी बार था जब उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दिया. सेंथिल बालाजी को पहली बार जून 2023 में प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में गिरफ्तार किया था और 12 फरवरी, 2024 तक बिना विभाग के मंत्री बने रहे. 26 सितंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस मामले में जमानत दिए जाने के बाद उन्हें फिर से मंत्री पद पर बहाल कर दिया गया.