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बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला, मंदिर फंड इस्तेमाल पर फिलहाल रोक

वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर से संबंधित कॉरिडोर और अध्यादेश मामले में याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने उस पुराने आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें मंदिर के कोष का उपयोग कॉरिडोर के लिए करने की अनुमति मिली थी.

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बांके बिहारी कॉरिडोर मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Photo: File)
बांके बिहारी कॉरिडोर मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Photo: File)

सुप्रीम कोर्ट ने बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर और अध्यादेश मामले में याचिकाकर्ताओं को फौरी राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 2025 के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें कॉरिडोर के लिए मंदिर के बैंक कोष का उपयोग करने की मंजूरी दी गई थी. 

यह फैसला जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने दिया. सुप्रीम कोर्ट ने एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक अंतरिम समिति बनाने का भी निर्देश दिया है.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर से संबंधित याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने 15 मई 2025 को पारित किए गए उस आदेश को निष्प्रभावी कर दिया. इस आदेश में राज्य सरकार को कॉरिडोर के लिए मंदिर के बैंक कोष का उपयोग करने की मंजूरी दी गई थी. यह फैसला याचिकाकर्ताओं के लिए एक बड़ी राहत है. इस फैसले से मंदिर के कोष की सुरक्षा सुनिश्चित होगी.

अंतरिम समिति का गठन...

सुप्रीम कोर्ट ने मामले को देखते हुए एक अंतरिम समिति बनाने का निर्देश दिया है. इस समिति की अध्यक्षता हाई कोर्ट के एक रिटायर्ड जज करेंगे. समिति में कानून-व्यवस्था की स्थिति को संभालने के लिए गोस्वामी और सरकारी अधिकारियों का प्रतिनिधित्व भी होगा. इस समिति का गठन इसलिए किया जा रहा है, जिससे मंदिर से जुड़े मामलों का प्रबंधन ठीक से हो सके और किसी भी तरह की अव्यवस्था न फैले. यह समिति मंदिर के कामकाज में सहयोग करेगी.

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यह भी पढ़ें: बांके बिहारी मंदिर विवाद में सुप्रीम कोर्ट गठित करेगा अंतरिम समिति, मैनेजमेंट और विकास पर रखी जाएगी नजर

अध्यादेश पर लगी रोक...

सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम समिति के गठन के मद्देनजर अध्यादेश के प्रावधानों पर भी रोक लगा दी है. यह रोक तब तक लागू रहेगी जब तक इलाहाबाद हाई कोर्ट में संबंधित रिट याचिका लंबित है. इसका मतलब यह है कि अभी अध्यादेश के मुताबिक, कोई भी समिति गठित नहीं की जा सकती है. कोर्ट ने यह कदम इसलिए उठाया है, जिससे मामले की सुनवाई के दौरान कोई भी बड़ा बदलाव न हो और सभी पक्षों की बात सुनी जा सके.

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