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मणिपुर में असम राइफल्स की गाड़ी पर IED हमला, आतंकियों की तलाश में सर्च ऑपरेशन

अधिकारियों के मुताबिक अर्धसैनिक बल का वाहन जिले के सैबोल इलाके में नियमित गश्त पर था. इस दौरान सुबह करीब सवा आठ बजे आतंकियों ने उसे निशाना बनाया. हालांकि वाहन बख्तरबंद होने के चलते किसी भी सैनिक को चोट नहीं आई.

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मणिपुर में सैनिकों के वाहन पर आतंकी हमला (फाइल फोटो)
मणिपुर में सैनिकों के वाहन पर आतंकी हमला (फाइल फोटो)

मणिपुर के तेंग्नौपाल जिले में गुरुवार सुबह आतंकवादियों ने असम राइफल्स  के वाहन पर IED विस्फोट किया. हालांकि वाहन बख्तरबंद होने के चलते किसी भी सैनिक को चोट नहीं आई. अधिकारियों के मुताबिक अर्धसैनिक बल का वाहन जिले के सैबोल इलाके में नियमित गश्त पर था. इस दौरान सुबह करीब सवा आठ बजे आतंकियों ने उसे निशाना बनाया.

न्यूज एजेंसी से उन्होंने कहा, "असम राइफल्स के जवानों की एक टीम इलाके में नियमित गश्त ड्यूटी पर थी, तभी वाहन के नीचे एक कम तीव्रता वाला आईईडी विस्फोट हो गया. बख्तरबंद वाहन के अंदर मौजूद कोई भी सैनिक घायल नहीं हुआ."

पुलिस ने बताया कि विस्फोटक चालू करने के तुरंत बाद बंदूकधारियों ने वाहन पर अंधाधुंध गोलीबारी की. सैनिकों ने भी जवाबी कार्रवाई की. इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि कोई हमलावर घायल हुआ है या मारा गया है. असम राइफल्स ने अपराधियों को पकड़ने के लिए एक अभियान शुरू कर दिया है. असम राइफल्स ने हमलावरों की तलाश के लिए तलाशी अभियान शुरू किया है. बलों ने इलाके की घेराबंदी कर दी है.

बता दें कि कुछ दिनों पहले ही सरकार ने राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और सुरक्षाबलों पर घातक हमले करने को लेकर नौ मैतई चरमपंथी समूहों तथा उनके सहयोगी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था. ये सभी ज्यादातर मणिपुर में सक्रिय हैं. गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, जिन समूहों को पांच साल के लिए प्रतिबंधित घोषित किया गया है, उनमें पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, जिसे आम तौर पर पीएलए के नाम से जाना जाता है, और इसकी राजनीतिक शाखा, रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ), यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) और इसकी सशस्त्र शाखा मणिपुर पीपुल्स आर्मी (एमपीए) शामिल हैं.

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3 मई को शुरू हुई हिंसा नहीं ले रही थमने का नाम

गौरतलब है कि मणिपुर में 3 मई को शुरू हुए जातीय संघर्ष के बाद से हालात सुधरे नहीं है. पूर्वोत्तर राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से अब तक 180 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है. अशांति की शुरुआत पहाड़ी जिलों में आयोजित 'आदिवासी एकजुटता मार्च' से हुई, जिसका उद्देश्य मेइतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में आवाज उठाना था.

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