
साल 2023 के बीच में भारत सरकार ने 14 मोबाइल ऐप्स पर बैन लगाया था. ये ज्यादातर ऐसे ऐप्स थे जो सुरक्षित बातचीत के लिए इस्तेमाल होते थे. सरकार को जानकारी मिली थी कि पाकिस्तान में बैठे आतंकी इनका इस्तेमाल भारत में अपने गुर्गों से संपर्क करने के लिए कर रहे हैं. लेकिन दो साल बाद ये ज्यादातर ऐप्स अभी भी भारत में डाउनलोड के लिए उपलब्ध हैं.
इंडिया टुडे की RTI के जवाब में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने माना कि मई 2023 में उसने IT नियम 2009 के तहत 14 ऐप्स को बैन करने का आदेश जारी किया था. ये नियम सरकार को देश की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा जैसे कारणों से किसी भी ऐप को बैन करने का अधिकार देता है.
इन 14 ऐप्स में जंगी (Zangi), नैन्डबॉक्स (nandbox), थ्रीमा (Threema), सेफस्विस (Safeswiss), एलिमेंट (Element), IMO, मीडियाफायर (MediaFire), ब्रायर (Briar), बीचैट (BChat), क्रिपवाइजर (Crypviser), एनिग्मा (Enigma) और सेकंड लाइन (2nd Line) शामिल थे. इनमें से एक ऐप Wickr Me ने खुद ही 31 दिसंबर 2023 को अपनी सेवाएं बंद कर दीं.

बैन के बावजूद चल रहे ऐप्स
28 फरवरी 2025 को इंडिया टुडे ने एक रिव्यू किया, जिसमें पाया गया कि इन 14 में से कम से कम 8 ऐप्स गूगल प्ले स्टोर और एप्पल ऐप स्टोर पर अब भी मौजूद हैं. प्ले स्टोर पर 10 ऐप्स और ऐप स्टोर पर 9 ऐप्स उपलब्ध मिले.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जंगी ऐप कई बड़े गैंगस्टरों के फोन में मिला है, जो दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा और पंजाब में सक्रिय हैं.
RTI के जवाब में मंत्रालय ने यह बताने से इनकार कर दिया कि आखिर इन ऐप्स को बैन क्यों किया गया था. हालांकि, सरकार के सूत्रों ने इंडिया टुडे को पहले बताया था कि ये ऐप्स पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के लिए संदेश भेजने का एक सुरक्षित जरिया थे. ये आतंकी जम्मू-कश्मीर में अपने सहयोगियों और अन्य गुर्गों को गुप्त कोड वाले संदेश भेजने के लिए इनका इस्तेमाल करते थे.
समस्या क्या है?
इन ऐप्स की सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि इनमें भेजे गए मैसेज को कोई ट्रैक या रिकवर नहीं कर सकता. ज्यादातर पॉपुलर मैसेजिंग ऐप्स के उलट, जंगी, थ्रीमा, नैन्डबॉक्स, सेफस्विस, एलिमेंट और ब्रायर जैसे ऐप्स रजिस्ट्रेशन के लिए फोन नंबर या ईमेल एड्रेस नहीं मांगते.
इनमें से ज्यादातर ऐप्स खुद ही वर्चुअल नंबर या यूनीक यूआरएल जनरेट करके कनेक्शन बनाते हैं. जैसे, जंगी में सिर्फ एक यूजरनेम और पासवर्ड डालकर अकाउंट बनाया जा सकता है. यह ऐप एक 10 डिजिट का नंबर देता है, जो इस ऐप के अंदर ही फोन नंबर की तरह काम करता है.
ये ऐप्स दावा करते हैं कि ये 'मिलिट्री-ग्रेड' एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन देते हैं, जिससे इनके मैसेज को कोई भी ट्रैक या पढ़ नहीं सकता. मैसेज भेजने और रिसीव करने वाले के डिवाइस पर ही एन्क्रिप्शन और डिक्रिप्शन होता है. जंगी में मैसेज डिलीवर होते ही डिलीट हो जाते हैं. ये ऐप्स कोई डेटा भी स्टोर नहीं करते.
सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनका भारत में कोई आधिकारिक बिजनेस ऑपरेशन नहीं है. इसलिए, किसी भी कानूनी या क्रिमिनल केस में पुलिस या सुरक्षा एजेंसियां इनके मैसेज हासिल नहीं कर सकतीं.
बैन तो हुआ, लेकिन लागू नहीं हुआ?
सरकार ने खुद माना कि उसने इन ऐप्स को बैन किया, लेकिन ये अब भी काम कर रहे हैं. इसका मतलब है कि भारत में अवैध ऐप्स पर रोक लगाने की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है. IT नियम 2009 के तहत बैन के आदेश दो स्तरों पर लागू होते हैं. पहला - होस्टिंग सर्विस प्रोवाइडर और ऑनलाइन मार्केटप्लेस (जैसे गूगल प्ले स्टोर, ऐप स्टोर) पर और दूसरा- नेटवर्क और टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर (जैसे इंटरनेट कंपनियां, मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटर्स) पर.
परिभाषा के अनुसार, 'मध्यस्थ' यानी इंटरमीडियरीज में इंटरनेट कंपनियां, नेटवर्क प्रोवाइडर, ऑनलाइन मार्केटप्लेस, सर्च इंजन और साइबर कैफे तक शामिल होते हैं. भारत में ऐप्स को बैन करना एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है. कई बार बैन किए गए ऐप्स सरकार के निर्देशों का पालन करने के बाद दोबारा उपलब्ध हो जाते हैं.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार जिन चीनी ऐप्स को अलग-अलग समय पर बैन किया गया था, वे अब भी किसी न किसी रूप में उपलब्ध हैं. कुछ ऐप्स अपने पुराने नाम के साथ, तो कुछ क्लोन बनाकर काम कर रहे हैं.
इसी RTI में सरकार ने यह भी माना कि 2020 के बाद उसने कई मोबाइल ऐप्स को बैन किया है. 2020 में चीन के साथ सीमा विवाद के बीच 200 से ज्यादा चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा था. हालांकि, सरकार ने नवंबर 2020 के बाद बैन किए गए ऐप्स की लिस्ट देने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि यह 'गोपनीय' है. लेकिन यही सरकार 2020 में तीन बार बैन की गई ऐप्स की लिस्ट सार्वजनिक कर चुकी है – 29 जून, 2 सितंबर और 24 नवंबर को.