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धर्म बदलने के बाद नहीं मिल सकती पिछले धर्म की सुविधाएं और सुरक्षा: हाई कोर्ट

जस्टिस हरिनाथ ने साफ किया कि ईसाई धर्म में जाति भेदभाव नहीं है. इस कानून के तहत अनुसूचित जाति के दर्जे को खत्म कर दिया गया है. भले ही उसके पास कोई मौजूदा जाति प्रमाण पत्र क्यों न हो.

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आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट का फैसला (प्रतीकात्मक तस्वीर)
आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट का फैसला (प्रतीकात्मक तस्वीर)

आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट (Andhra Pradesh High Court) ने अपने निर्णय में साफ कर दिया है कि धार्मिक परिवर्तन करने के बाद पिछले धर्म की सुविधाएं नहीं मिल सकती हैं. कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अनुसूचित जाति (SC) से संबंधित व्यक्ति ईसाई धर्म अपनाने पर तुरंत अपना एससी दर्जा खो देते हैं. इससे एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत उन्हें मिलने वाली सुरक्षा और संरक्षण भी खत्म हो जाते हैं. 

हाई कोर्ट ने यह फैसला आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में कोट अपलेम कस्बे के पादरी चिंतदा आनंद से जुड़े एक मामले में सुनाया. इसमें पादरी ने एससी/एसटी अधिनियम के तहत अक्कला रामीरेड्डी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी.

दरअसल, दशक भर से ज़्यादा वक्त से पादरी रहे आनंद ने 2021 में चंदोलू पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. उसमें आरोप लगाया गया कि अक्कला रामीरेड्डी और अन्य लोगों ने उनकी जाति के आधार पर उनके साथ दुर्व्यवहार किया. पुलिस ने एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया. उधर रामीरेड्डी और अन्य ने अदालत में इसे चुनौती देते हुए खारिज करने की मांग की. 

कोर्ट में क्या दलील दी गई?

याचिकाकर्ताओं के वकील फणी दत्त ने तर्क दिया कि आनंद ने ईसाई धर्म अपना लिया है. दस साल से भी ज्यादा वक्त से पादरी के रूप में काम कर रहा है. इसलिए वे संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 के तहत अनुसूचित जाति के सदस्य के रूप में योग्य नहीं हैं. आदेश में कहा गया है कि अनुसूचित जाति के व्यक्ति जो हिंदू धर्म के अलावा कोई अन्य धर्म अपनाते हैं, वे अपना अनुसूचित जाति का दर्जा खो देते हैं.

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नतीजतन, एससी/एसटी अधिनियम के तहत दायर की गई शिकायत अमान्य है. आनंद के वकील ईरला सतीश कुमार ने दलील दी कि आनंद के पास वैध अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र है. इससे अधिनियम के तहत संरक्षण के लिए उनकी पात्रता साबित होती है.

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हालांकि, जस्टिस हरिनाथ ने साफ किया कि ईसाई धर्म में जाति भेदभाव नहीं है. इस कानून के तहत अनुसूचित जाति के दर्जे को खत्म कर दिया गया है. भले ही उसके पास कोई मौजूदा जाति प्रमाण पत्र क्यों न हो. अदालत ने कहा कि एससी/एसटी कानून समुदायों को भेदभाव से बचाने के लिए बनाया गया था लेकिन इसके प्रावधान उन लोगों पर लागू नहीं होते जिन्होंने दूसरे धर्म अपना लिए हैं.

कोर्ट ने पाया कि आनंद ने झूठी शिकायत दर्ज करके एससी/एसटी अधिनियम का दुरुपयोग किया है. गवाहों ने पादरी के रूप में उनकी दशक भर की भूमिका की पुष्टि की और अदालत ने बिना सत्यापन के मामला दर्ज करने के लिए पुलिस की आलोचना की.

जस्टिस हरिनाथ ने रामीरेड्डी और अन्य के खिलाफ मामला खारिज करते हुए कहा कि आनंद की शिकायत में कानूनी आधार नहीं है. अदालत ने कहा कि जाति प्रमाण पत्र के अस्तित्व से उन्हें एससी/एसटी अधिनियम के तहत सुरक्षा का अधिकार नहीं मिलता.
 

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