scorecardresearch
 

27 साल बाद हाई कोर्ट ने सिख विरोधी दंगों के मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देने से किया इनकार

दिल्ली हाई कोर्ट ने 1984 सिख विरोधी दंगों के तीन आरोपियों को बरी करने के 27 साल पुराने ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देने से इनकार कर दिया. कोर्ट का कहना है कि इतने समय बाद मामले को फिर से नहीं खोला जा सकता.

Advertisement
X
फाइल फोटो.
फाइल फोटो.

दिल्ली हाई कोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के तीन आरोपियों को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के 27 साल पुराने फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. हाई कोर्ट का कहना है कि इतने लंबे समय बाद इस मामले को फिर से खोलने की इजाजत नहीं दी जा सकती है. 

1984 के सिख विरोधी दंगों में कई लोगों की जान गई थी और संपत्ति का काफी नुकसान हुआ था, लेकिन अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष इतने सालों बाद अपील लेकर आया है, इसलिए अब इस मामले पर पुनः सुनवाई संभव नहीं है. ट्रायल कोर्ट ने 29 जुलाई 1995 को तीनों आरोपियों को इस मामले में बरी कर दिया था.

अभियोजन पक्ष ने सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया कि दिसंबर 2018 में सिख विरोधी हिंसा के मामलों की जांच के लिए जस्टिस एस.एन. ढींगरा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था. इस कमेटी की रिपोर्ट अप्रैल 2019 में आई थी. इसके बाद, अभियोजन पक्ष ने मामलों की आंतरिक समीक्षा की और अपील दायर की.

हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि इतने समय बाद यह मामला फिर से उठाने का कोई आधार नहीं है.

Advertisement

बता दें कि 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली और कई अन्य शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे. इसमें हजारों सिखों की हत्या हुई और उनके घर व दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया. माना जाता है कि इसमें राजनैतिक तत्वों की भूमिका थी, जिससे न्याय पाना पीड़ितों के लिए चुनौतीपूर्ण बना. इस घटना ने भारतीय समाज में गहरी दरार डाल दी और सिख समुदाय के लिए एक दर्दनाक याद बन गई. दंगों के बाद न्यायिक जांच और पीड़ितों को मुआवजे की प्रक्रिया शुरू हुई, जो वर्षों तक चलती रही.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement