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'अफगानिस्तान के बहाने देश में ना हो ध्रुवीकरण की राजनीति', PM मोदी को बुद्धिजीवियों की चिट्ठी

ये चिट्ठी पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह, यशवंत सिन्हा, मनी शंकर अय्यर सहेत कई दूसरे बड़े बुद्धीजीवियों द्वारा लिखी गई है. चिट्ठी में प्रमुखता से मांग की गई है कि देश का कोई भी राजनीतिक दल अफगानिस्तान स्थिति को अपने फायदे में इस्तेमाल करने की कोशिश ना करे.

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अफगानिस्तान स्थिति पर मोदी को बुद्धिजीवियों की चिट्टी (पीटीआई)
अफगानिस्तान स्थिति पर मोदी को बुद्धिजीवियों की चिट्टी (पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अफगानिस्तान स्थिति पर मोदी को बुद्धिजीवियों की चिट्टी
  • अफगानिस्तान के बहाने देश में ना हो ध्रुवीकरण की राजनीति
  • 'शरण देने में ना हो कोई भेदभाव'

अफगानिस्तान में तालिबान राज स्थापित हो चुका है. अमेरिकी सेना ने देश छोड़ दिया है, कई दूसरे देश भी अपने नागरिकों को बाहर निकालने में सफल रहे हैं. अब कुछ ही दिनों में अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बन जाएगी और एक नया अध्याय शुरू होगा. इन बदलती परिस्थितियों के बीच भारत के कुछ बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी है. चिट्ठी के जरिए अफगानिस्तान के बहाने में देश में ध्रुवीकरण की राजनीति को हवा ना देने की बात कही गई है.

अफगानिस्तान स्थिति पर मोदी को बुद्धिजीवियों की चिट्टी

ये चिट्ठी पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह, यशवंत सिन्हा, मणिशंकर अय्यर सहेत कई दूसरे बड़े बुद्धिजीवियों द्वारा लिखी गई है. चिट्ठी में प्रमुखता से मांग की गई है कि देश का कोई भी राजनीतिक दल अफगानिस्तान स्थिति को अपने फायदे में इस्तेमाल करने की कोशिश ना करे. लिखा गया है कि केंद्र सरकार को लगातार तालिबान से बात करनी चाहिए. किसी भी राजनीतिक दल को अफगानिस्तान स्थिति पर ध्रुवीकरण की रजानिति करने से बचना चाहिए. चुनाव के समय इसका चुनावी हठकंडे की तरह इस्तेमाल नहीं होना है.

'शरण देने में ना हो कोई भेदभाव'

उसी चिट्ठी में ये भी मांग कर दी गई है कि भारत सरकार हर उस नागरिक को देश में शरण दे जिसको अपने वतन में डर लग रहा है. हर पीड़ित अफगानी की हिंदुस्तान को मदद करनी चाहिए. इस बारे में कहा गया है कि शरण देने के मामले में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए. भारत को हर उस अफगान पत्रकार, आर्टिस्ट और नेता की मदद करनी चाहिए जो कुछ समय के लिए हमारे देश में रहना चाहते हैं. जिन्हें अफगानिस्तान में अपनी जान का खतरा है.

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'अमेरिकी सेना का अफगानिस्तान से जाना अच्छा'

खत में इस बात पर भी खुशी जाहिर की है कि अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान छोड़ दिया है. उनके मुताबिक अब अफगानिस्तान का सारा ध्यान सिर्फ और सिर्फ विकास पर रहना चाहिए. लिखा गया है कि अमेरिकी सेना का अफगानिस्तान से जाना स्वागत योग्य कदम है. लेकिन जिस तरीके से इस प्रक्रिया को पूरा किया गया, उस वजह से काफी बवाल हुआ. कई आम अफगानी मारे गए. काबुल हमले की भी हम कड़े शब्दों में निंदा करते हैं. ऐसे समय में भारत, पाकिस्तान और खुद अफगानिस्तान को पूरे एशिया में शांति स्थापित करने पर जोर देना चाहिए.

वहीं चिट्ठी के जरिए तालिबान से भी खास अपील की गई है. इस बात पर जोर दिया गया है कि अब चार दशक बाद अफगानिस्तान को हिंसा से मुक्ति चाहिए. उसे आतंकवाद से खुद को दूर रखना है. ऐसे में तालिबान को एक समावेशी सरकार बनाने की नसीहत दी गई है. स्पष्ट कहा गया है कि अब अफगानिस्तान की धरती पर आतंकवाद को नहीं पनपने देना है. बुद्धिजीवियों द्वारा केंद्र से तालिबान से बात करने की अपील भी गई है.

'सभी देश साथ मिलकर काम करें'

उनकी नजरों में बातचीत के जरिए ही अब समाधान निकल सकता है. ऐसे में हर किसी को बातचीत में शामिल करना जरूरी है. चिट्ठी में कहा गया है कि भारत को तालिबान से लगातार बातचीत जारी रखनी चाहिए. हमे इस बात की खुशी है कि दोहा में भारत की तालिबान से पहली बातचीत हो गई है. चिट्ठी में ये भी कहा गया है कि इस समय किसी भी देश को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. अगर अफगानिस्तान में फिर शांति चाहिए, तो हर देश को साथ लाना जरूरी है. वहीं सुझाव के तौर पर बताया गया है कि अब भारत-पाकिस्तान और चीन को अमेरिका, यूएन संग मिलकर एक रणनीति तैयार करनी चाहिए. सभी को साथ मिलकर अफगानिस्तान में स्थिति सुधारने पर जोर देना चाहिए.

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