अफगानिस्तान में तालिबान ने सत्ता हासिल कर ली है. तालिबान ने विश्व समुदाय से कहा है कि वे उनकी सरकार को मान्यता दें. अफगानिस्तान में तालिबान के शासन पर अब्दुल गफ्फार खान की परपोती यास्मीन निगार खान ने चिंता जाहिर की है. यास्मीन निगार खान ने कहा है कि तालिबानियों की ट्रेनिंग पाकिस्तान के मदरसों में हुई है, अफगान की 90 फीसदी जनता, वहां की अशरफ गनी सरकार के साथ है.
अब्दुल गफ्फार खान को सीमांत गांधी भी कहा जाता था. वे महात्मा गांधी के अनुयायी थे और उन्हें शेर-ए-अफगान का भी दर्जा मिला था. उनके विचारों से न सिर्फ पाकिस्तान और अफगानिस्तान बल्कि एशिया भी प्रभावित था. उनकी परपोती यास्मीन निगार निगार खान ने कहा कि राष्ट्रपति अशरफ गनी को मजबूरन, अफगानिस्तान छोड़कर जाना पड़ा है.
यास्मीन निगार खान ने कहा है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के पद से उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया है, अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अब भी वहीं मौजूद हैं. अशरफ गनी पर दबाव बनाकर उन्हें बाहर भेजा गया है. उन्होंने अपने अवाम को बचाने के लिए देश छोड़ा है. जब तक एक राष्ट्रपति इस्तीफा नहीं दे सकता है, तब तक तालिबान सरकार स्थापित नहीं कर रहा है.
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90 फीसदी अफगानी अशरफ गनी के साथ, महिला अधिकारों की हो रक्षा
यास्मीन निगार खान ने कहा कि 90 फीसदी अफगानी सरकार के साथ हैं, वहीं 10 फीसदी लोगों का ब्रेनवॉश किया गया है. महिलाओं के बारे में उन्होंने कहा कि भारत सरकार और वैश्विक समुदाय ये अपील है कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जाए. उनकी आजादी का हनन न होने पाए. अफगानिस्तान की महिलाओं को उन्होंने संदेश दिया कि पूरी दुनिया की औरतें आपके साथ हैं, मैं भी आपके साथ हूं. उन्होंने बादशाह खान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर आपको पता करना है कि कोई कौम कितनी सभ्य है, तो वहां यह देखना है कि वे अपनी औरतों के साथ कैसा सलूक करते हैं.
अशरफ गनी ने नहीं दिया है पद से इस्तीफा
राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़ चुके हैं. उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह वहां मौजूद हैं. तालिबान ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया है. तालिबान ने मीडिया संस्थानों पर कब्जा कर लिया है. हथियार बंद तालिबानी सड़कों पर गश्त दे रहे हैं. ऐसे में जब उनसे सवाल पूछा गया है कि कैसे यह कहा जा सकता है कि अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता पर काबिज नहीं है. सवाल के जवाब में यास्मीन ने कहा कि बाजी कब किधर पलट जाए, कहा नहीं जा सकता है. लेकिन अशरफ गनी ने अपने इस्तीफा नहीं दिया है. यही वजह है कि तालिबानी सरकार नहीं बना पा रहे हैं.
तालिबानियों को कहां लगा झटका?
यास्मीन निगार खान ने कहा कि अफगानिस्तान में ही खोस्त नाम की एक जगह पर तालिबानियों ने कब्जा किया था. उन्होंने अफगानिस्तान के झंडे को नीचे गिराकर अपना झंडा लगाया था, जिसे स्थानीय लोगों ने नीचे गिराकर एक बार फिर अफगानिस्तान का झंडा लहरा दिया है. स्थानीय लोगों ने कहा कि यह एक संगठन का झंडा है, अफगानिस्तान का झंडा वही रहेगा, जो पहले से रहा है. अफगानिस्तान का नाम भी नहीं बदला जाएगा.
अफगानिस्तान की जनता का हो सम्मान
यास्मीन निगार खान ने कहा कि भारत सरकार और पूरी दुनिया यह समझने की कोशिश करे कि अफगानिस्तान की आम जनता क्या चाहती है. जब उनसे सवाल किया गया कि क्या अशरफ गनी की सरकार वापस सत्ता में लौट सकती है, तो उन्होंने कहा कि अगर वहां की अवाम चाहेगी तो जरूर लौटेंगे.
तालिबानियों पर नहीं कर रहा कोई भरोसा
विमानों पर लटकते लोग और अफगानिस्तान छोड़ने वाले लोगों की लंबी कतारों पर उन्होंने कहा कि अब तालिबान पर लोग भरोसा नहीं कर पा रहे हैं. यही वजह है कि लोग मुल्क छोड़ना चाह रहे हैं. तालिबान के पहले का शासन का उन्होंने देखा है, अब तालिबानी दूसरी बातें कर रहे हैं. ऐसे में लोगों को उन पर भरोसा नहीं है.
महिला सुरक्षा का रखा जाए खास ख्याल
औरतों के लिए यास्मीन निगार खान ने कहा कि पूरी दुनिया और भारत अफगानिस्तान में महिला और बच्चों की सुरक्षा पर ध्यान दें. शिक्षित महिलाएं ही अपने बच्चों का बेहतर तरीके से परवरिश कर सकती हैं उन्हें शिक्षा मिलती है. शिक्षा की बेहद कमी अफगानिस्तान में है. यही वजह है कि वहां कोई भी उनका ब्रेनवॉश कर लेता है. लोग वहां ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं. पढ़ाई की कमी की वजह से ऐसी स्थिति है. महिलाओं के सिर पर तलवार लटक रही है, जो एक्टिविस्ट हैं. अभी खेल बाकी है, किस करवट पटल जाए, कहा नहीं जा सकता है.
इमरान खान पर क्या बोलीं यास्मीन?
यास्मीन निगार खान ने इमरान खान के उस बयान की निंदा की, जिसमें उन्होंने कहा था कि अफगानिस्तान गुलामी की जंजीरों से छूट गया है. यास्मीन ने कहा कि अफगानिस्तान अब तालिबान की गुलामी की जंजीरों में जकड़ गया है. तालिबान के गुलामी और पाकिस्तान के गुलामी की जंजीरों में अफगानिस्तान जकड़ गया है.
पाकिस्तान के प्रोडक्ट हैं तालिबानी, मदरसों में मिली ट्रेनिंग!
यास्मीन निगार खान ने अफगानिस्तान आर्मी की तारीफ करते हुए कहा कि अफगान एक बहादुर कौम है. खराब स्थितियों में वे जी-जान लगाकर काम करेंगे. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में 44 साल से जंग चल रही है. पाकिस्तान के इशारे पर जंग चल रही है. विश्वयुद्ध भी इतने दिनों में खत्म हो जाती है. पूरी दुनिया अफगानिस्तान में चल रही जंग को खत्म कराए. पाकिस्तानी फैक्ट्री के प्रोडक्ट हैं तालिबानी, जिन्हें इस्लाम के नाम पर मदरसों में ट्रेनिंग दी गई है.
अफगानिस्तान की जनता का जागरूक होना जरूरी
तालिबानी अफगानिस्तान में महिलाओं के पोस्टर फाड़ रहे हैं. अफगानिस्तान की पहली गवर्नर और एक्टविस्ट सलीमा बजारी को तालिबान अरेस्ट कर चुका है. पहली मेयर जरीफा गफ्फार भी संकट में हैं. ऐसे में क्या महिलाओं का भविष्य होगा. इस सवाल के जवाब में सीमांत गांधी की परपोती यास्मीन ने कहा कि एक बार अफगानिस्तान की आम जनता जागरूक हो गई, तो वहां की स्थितियां बदल जाएंगी. अवाम से मुल्क बनता है, मुल्क से अवाम नहीं बनता है.
'जिहादियों को अफगानिस्तान भेज रहा है पाकिस्तान'
अफगानिस्तान में 90 के दशक में तालिबानियों ने कोहराम मचा दिया था. एक बार फिर अफगानिस्तान सामान्य ढर्रे पर लौट रहा था. महिलाएं काम पर जा रहीं थीं. लेकिन एक बार फिर तालिबान का कब्जा हो गया है. पाकिस्तान सीमाओं के जरिए हथियार भेज रहा है. अफगानिस्तान में पाकिस्तान 10-10 हजार जिहादी भेज रहा है. घायलों का इलाज क्वेटा में हो रहा है, पेशावर में दफनाया जा रहा है. मतलब साफ है कि पाकिस्तान वहां सक्रिय रूप से भूमिका निभा रहा है.
'पढ़ा-लिखा शख्स नहीं तोड़ता अपना घर'
यास्मीन निगार खान ने कहा कि यही सबूत है कि अफगान आर्मी जिन्हें मार रही है, उन्हें दफनाया पाकिस्तान में जा रहा है. अगर वे अफगानिस्तान के ही होते तो ऐसा नहीं होता. पाकिस्तान लाशें ले जा रहा है. इस्लाम के नाम पर जिहाद के लिए उन्हें भड़काया जा रहा है. वे पढ़े-लिखे नहीं है. इसलिए उन्हें भड़काया जा रहा है. कोई भी पढ़ा लिखा शख्स अपने घर को नहीं तोड़ता है. कोई अपने घर के लोगों को नहीं मारता है.
'पाकिस्तान चाहता है मिट जाए अफगानिस्तान का नाम'
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में भारत ने इन्वेस्ट किया है. सलमा डैम को तालिबानी तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. अफगानिस्तान के लोग इसे नहीं तोड़ते. पाकिस्तान चाहता है कि अफगानिस्तान का नाम मिट जाए. पाकिस्तान चाहता है कि यहां का नाम बदल दिया जाए, झंडा बदल दिया जाए. ऐसा कहां होता है. अफगानिस्तान के लोग सड़कों पर आएंगे, विद्रोह करेंगे, वे गलत तरीके से आए हैं. उन्हें बुलाया गया है.
सीमांत गांधी पर क्या बोलीं यास्मीन निगार खान?
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनवा में 60 फरवरी 1890 में जन्मे अब्दुल गफ्फार खान ने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से संघर्ष किया है. फ्रंटियर गांधी के नाम का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें सत्ता का लालच नहीं था. वे मानते थे कि जंग से समस्याओं का हल नहीं होता. साल 1921 में ही उन्होंने कहा था कि औरतों को बेहतर तालीम मिले, जिससे उनका विकास हो. औरतों के लिए उन्होंने स्कूल बनाया. देश की सेवा इबादत है. कौम की खिदमत करना एक इबादत है.