बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि मालेगांव 2008 ब्लास्ट मामले के पीड़ितों से उसे तय प्रारूप में जानकारी चाहिए कि अपीलकर्ता, जिन्होंने इस धमाके में अपने परिजनों को खोया, उन्होंने ट्रायल कोर्ट में गवाह के रूप में बयान दिया था या नहीं.
दरअसल, मंगलवार को चीफ जस्टिस चंद्रशेखर और जस्टिस गौतम ए. अंखड की खंडपीठ ने कहा था कि किसी को भी अपील का अधिकार नहीं है और यह देखना होगा कि पीड़ित गवाह बने थे या नहीं. अदालत ने अपीलकर्ताओं से यह जानकारी सारणीबद्ध (टेबुलर फॉर्म) देने को कहा.
बुधवार को जब अधिवक्ता मतीन शेख ने अदालत में चार्ट पेश किया, तो उन्होंने बताया कि पहले अपीलकर्ता निसार अहमद हाजी सैयद बिलाल, जिनके बेटे की धमाके में मौत हुई थी, गवाह नहीं बने थे, लेकिन उन्हें ट्रायल के दौरान अभियोजन पक्ष की मदद करने की अनुमति दी गई थी.
70 वर्षीय बिलाल ने अपने बेटे सैयद अज़हर को खोया था. अन्य अपीलकर्ताओं में शेख लियाकत मोहिउद्दीन ने अपनी बेटी शेख फरहीन, शेख इशाक शेख यूसुफ ने अपने भाई शेख मुश्ताक, उस्मान खान अइनुल्लाह खान ने अपने भतीजे इरफान खान जियाउल्लाह खान, मुश्ताक शाह हारून शाह ने अपने पिता हारून शाह मोहम्मद शाह और शेख इब्राहिम शेख सुपदो ने अपने दामाद शेख रफीक शेख मुस्तफा को धमाके में खोया था.
अधिवक्ता शेख ने बताया कि छह अपीलकर्ताओं में से सिर्फ दो मुश्ताक शाह हारून शाह और शेख लियाकत मोहिउद्दीन को अभियोजन पक्ष ने गवाह के रूप में पेश किया था. बाकी मामलों में किसी और रिश्तेदार ने गवाही दी थी. उदाहरण के लिए, बिलाल की ओर से उनके भतीजे ने अदालत में बयान दिया था.
अदालत ने कहा, “यह चार्ट भ्रमित करने वाला है. आपको इसे ठीक से जांचना होगा. सवाल यह है कि संबंधित व्यक्ति गवाह बने थे या नहीं. चार्ट अधूरा है.”
इसके बाद अदालत ने सुनवाई गुरुवार तक के लिए टाल दी.
गौरतलब है कि 29 सितंबर 2008 को मालेगांव की एक मस्जिद के पास विस्फोटक से लदी मोटरसाइकिल फट गई थी. महाराष्ट्र एटीएस ने जांच में दावा किया था कि यह मोटरसाइकिल बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की थी और आरडीएक्स सेना के अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित ने कश्मीर से मंगवाया था.
हालांकि ट्रायल कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद पाया कि मोटरसाइकिल के चेसिस नंबर को रीस्टोर करने का दावा पूरी तरह सही नहीं था और आरडीएक्स संबंधी सबूतों पर भी अभियोजन का दावा साबित नहीं हो पाया. नतीजतन, 31 जुलाई को कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा और पुरोहित समेत सातों आरोपियों को बरी कर दिया.
अब तक न महाराष्ट्र एटीएस और न ही केंद्र की एनआईए ने इस बरी करने के फैसले के खिलाफ अपील दायर की है.