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महाराष्ट्र में पास हुआ विवादित 'लोक सुरक्षा विधेयक', वामपंथी विचारधाराओं पर कसेगा शिकंजा, विपक्ष ने उठाए सवाल

विधेयक में निगरानी और पारदर्शिता के लिए तीन सदस्यीय सलाहकार बोर्ड का प्रावधान है, जिसमें एक मौजूदा या सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज, एक रिटायर्ड जिला जज और एक लोक अभियोजक शामिल होंगे. फडणवीस ने कहा, 'हमने पत्रकार संगठनों से चर्चा की है ताकि यह कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने का हथियार न बने.'

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महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस (फाइल फोटो)
महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस (फाइल फोटो)

महाराष्ट्र विधानसभा ने तमाम विवादों और विपक्ष के विरोध के बीच 'महाराष्ट्र लोक सुरक्षा विधेयक' (Maharashtra Public Security Bill) को बहुमत से पारित कर दिया. इस बिल को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पेश किया, जिसमें वामपंथी उग्रवाद, माओवादी विचारधाराओं और सरकार विरोधी हिंसक गतिविधियों पर सख्ती से कार्रवाई का प्रावधान है.

फडणवीस ने विधानसभा में कहा, 'गडचिरोली और कोकण जैसे जिलों में वामपंथी उग्रवाद का शहरी और ग्रामीण इलाकों में फैलाव कानून-व्यवस्था के लिए खतरा है. यह विधेयक गुरिल्ला युद्ध और हिंसा फैलाने वाली संगठनों पर रोक लगाने के लिए लाया गया है.' उन्होंने स्पष्ट किया कि यह कानून UAPA जैसे कानूनों की कमियों को पूरा करता है, जो मुख्यतः आतंकवादी गतिविधियों पर केंद्रित है, जबकि यह विधेयक चरमपंथी विचारधाराओं और उससे जुड़ी गैरकानूनी गतिविधियों को भी नियंत्रित करेगा.

बिल की निगरानी के लिए समिति

विधेयक में निगरानी और पारदर्शिता के लिए तीन सदस्यीय सलाहकार बोर्ड का प्रावधान है, जिसमें एक मौजूदा या सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज, एक रिटायर्ड जिला जज और एक लोक अभियोजक शामिल होंगे. फडणवीस ने कहा, 'हमने पत्रकार संगठनों से चर्चा की है ताकि यह कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने का हथियार न बने.'

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संशोधित बिल में हुए अहम बदलाव

यह विधेयक जुलाई 2024 में मानसून सत्र के दौरान पहली बार पेश किया गया था, लेकिन तब इसमें 'व्यक्ति और संगठन' शब्दों के चलते भारी आलोचना हुई थी. इसे बाद में संयुक्त समिति को सौंपा गया, जिसने 9 जुलाई 2025 को अपनी रिपोर्ट सौंपी. इसके बाद 10 जुलाई को संशोधित बिल पेश किया गया, जिसमें अब केवल 'चरमपंथी विचारधाराओं वाले संगठन' शब्द रखा गया है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि असहमति जताने वाले व्यक्ति निशाने पर नहीं आएंगे.

संयुक्त समिति, जिसमें जयंत पाटिल, नाना पटोले, भास्कर जाधव, जितेंद्र आव्हाड और अंबादास दानवे जैसे नेता शामिल थे, ने तीन प्रमुख संशोधन सुझाए. 'व्यक्ति और संगठन' शब्द हटाकर केवल 'चरम विचारधारा वाले संगठन' किया गया. एक हाईकोर्ट जज की अध्यक्षता में सलाहकार बोर्ड बनाने का प्रस्ताव दिया गया. जांच की जिम्मेदारी सब-इंस्पेक्टर की जगह DSP स्तर के अधिकारियों को देने की सिफारिश की गई. इस समिति को 12,500 सुझाव मिले, जिससे जनता की भारी भागीदारी साफ नजर आई.

विपक्ष के सवाल और शंकाएं

विपक्ष के कई नेताओं ने विधेयक को लेकर चिंता जताई. भास्कर जाधव ने सवाल उठाया, 'अगर यह कानून राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है, तो इसे अन्य बीजेपी शासित राज्यों में क्यों नहीं लाया गया?'

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जयंत पाटिल ने कुछ संशोधनों का स्वागत करते हुए कहा, 'हमने तीन साल की सजा या ₹3 लाख जुर्माने का सुझाव दिया था, जिसमें अब ‘और’ शब्द जोड़ा गया है. लेकिन मैं ये भी याद दिलाता हूं कि पी. चिदंबरम ने जो PMLA कानून लाया था, बाद में उन्हीं पर उसी कानून के तहत कार्रवाई हुई.'

नितिन राऊत ने आशंका जताई कि क्या यह कानून आंदोलनों, सड़क जाम या मोर्चा निकालने जैसी लोकतांत्रिक गतिविधियों पर भी लागू होगा? उन्होंने भीमा कोरेगांव मामले और पंढरपुर वारी में ‘अर्बन नक्सल’ जैसे शब्दों के इस्तेमाल का हवाला देते हुए कहा, 'आपने गडचिरोली में नक्सलवाद को कम करने में सराहनीय काम किया, लेकिन यह कानून कहीं गलत हाथों में न चला जाए.'

रोहित पवार ने स्पष्टता की मांग करते हुए कहा, “हम सब नक्सलवाद के खिलाफ हैं, लेकिन ‘चरमपंथी’ और ‘वामपंथी’ की परिभाषा क्या है, यह तय होना चाहिए.”

विवादित प्रावधान जो बने चिंता की वजह-

विधेयक के कुछ प्रावधानों को लेकर आलोचना हो रही है, जिनमें शामिल हैं:

-सभी अपराध गंभीर (cognizable) और ग़ैर-जमानती (non-bailable) होंगे.

-किसी संगठन की संपत्ति जब्त करने वाले अधिकारियों पर कोई दीवानी या आपराधिक मुकदमा नहीं चलेगा.

-संगठन तब तक समाप्त नहीं माना जाएगा जब तक उसके सदस्य गैरकानूनी गतिविधियाँ न रोक दें, भले ही वह कानूनी रूप से भंग हो चुका हो.

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-बिना अनुमति किसी चिन्हित क्षेत्र में प्रवेश करने पर आपराधिक अतिक्रमण (criminal trespass) का केस चलेगा.

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