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Maharashtra: सोने में निवेश के नाम पर 2.5 करोड़ की ठगी, ठाणे कोर्ट ने ज्वैलर को सुनाई सात साल की कैद

महाराष्ट्र के ठाणे में सोने में निवेश योजना के नाम पर 2.5 करोड़ की ठगी करने वाले ज्वैलर संतोष सदानंद शेलार को अदालत ने सात साल की कठोर कैद और 6 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई. शेलार, त्रिमूर्ति रत्ना ज्वैलर्स का मालिक है. अदालत ने 27 गवाहों की गवाही के आधार पर उसे दोषी पाया. वहीं, उसके दो कर्मचारियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया.

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दो कर्मचारियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया.(Photo: Representational)
दो कर्मचारियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया.(Photo: Representational)

महाराष्ट्र के ठाणे जिले की एक विशेष अदालत ने निवेशकों से करोड़ों रुपये की ठगी करने वाले एक ज्वैलर को सात साल की कठोर कैद की सज़ा सुनाई है. अदालत ने इस मामले में दो अन्य आरोपियों को बरी कर दिया.

जानकारी के मुताबिक, मामला ठाणे शहर के त्रिमूर्ति रत्ना ज्वैलर्स के संचालक संतोष सदानंद शेलार से जुड़ा है. उन पर आरोप था कि उन्होंने सोने में निवेश योजना के नाम पर लोगों से भारी भरकम रकम जमा कराई और 2.5 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की. अदालत ने 22 अगस्त को अपना फैसला सुनाते हुए शेलार को दोषी करार दिया और उन पर कुल 6 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.

यह भी पढ़ें: ठाणे अदालत का फैसला... महिला से बलात्कार और मारपीट के आरोपी को किया बरी

यह मामला जून 2019 में शुरू हुआ था, जब एक निवेशक ने शिकायत दर्ज कराई थी कि शेलार ने मासिक किस्तों के जरिए सोने में निवेश पर बड़े रिटर्न का वादा किया था. लेकिन योजना के परिपक्व होने पर निवेशकों को भुगतान नहीं किया गया. जांच में सामने आया कि इस योजना में कई निवेशक ठगे गए.

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अदालत में 27 गवाहों, जिनमें निवेशक भी शामिल थे, ने गवाही दी. सुनवाई के बाद जज जी. टी. पवार ने माना कि शेलार बतौर मालिक सीधे इस धोखाधड़ी के लिए जिम्मेदार हैं. अदालत ने कहा कि निवेशकों की राशि को जमा की श्रेणी में माना जाएगा और उसका भुगतान न करना बेईमानी से गबन की श्रेणी में आता है.

साक्ष्य के अभाव में दो कर्मचारी बरी

शेलार को एमपीआईडी अधिनियम की धारा 3 के तहत छह साल की कैद और एक लाख रुपये जुर्माना तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 409 (आपराधिक न्यासभंग) के तहत सात साल की कैद और पांच लाख रुपये जुर्माना लगाया गया है. दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी. वहीं, शेलार के दो कर्मचारियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया. अदालत ने माना कि वे केवल दैनिक कामकाज में शामिल थे और प्रबंधन का हिस्सा नहीं थे.

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