महाराष्ट्र के औरंगाबाद में निकाय चुनाव जल्द होने हैं. ऐसे में शिवसेना ने औरंगाबाद शहर का नाम बदल कर संभाजीनगर करने पर जोर देना शुरू कर दिया है. औरंगाबाद का नाम बदलने का मुद्दा महाराष्ट्र की राजनीति में 1988 से चला आ रहा है. तब शिवसेना के संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे ने औरंगाबाद का नाम छत्रपति शिवाजी के पुत्र संभाजी के नाम पर रखने का प्रस्ताव किया था.
शिवसेना ने जब से महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस से हाथ मिलाया है, बीजेपी की ओर से उस पर हिन्दुत्व से समझौता करने के आरोप लगते रहे हैं. ऐसे में कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि औरंगाबाद का नाम बदलने के लिए शिवसेना की ओर से हाल में दबाव बढ़ाए जाना अपने कोर वोटरों को साथ जोड़े रखने की कोशिश है. हालांकि कांग्रेस ने इस मामले में कहा है कि औरंगाबाद का नाम बदलने की कोई भी कोशिश होगी तो वो उसका विरोध करेगी.संयोगवश, औरंगाबाद का आखिरी मेयर शिवसेना से ही रहा.
औरंगाबाद के अलावा शिवसेना ने अहमदनगर और उस्मानाबाद के नाम बदलने की भी मांग की है. वहीं, सम्भाजी ब्रिगेड पुणे का नाम छत्रपति शिवाजी की माता जीजाबाई के नाम पर बदलना चाहती है. लेकिन क्या ऐतिहासिक दस्तावेज इस तरह शहरों के नाम बदलने के संबंध में कोई पुख्ता आधार पेश करते हैं. इंडिया टुडे ने मौजूदा विवाद की पृष्ठभूमि में शहरों के प्राचीन नाम खंगालने की कोशिश की.
औरंगाबाद का कई बार नाम बदला
औरंगाबाद नाम मुगल बादशाह औरंगजेब के नाम पर रखा गया जो हिन्दुओं पर ज्यादतियों के लिए कुख्यात रहा. ऐतिहासिक रिकार्ड्स बताते हैं कि सतावाहन युग में इस जगह का पहले नाम राजतडाका था.मुंबई के पास कन्हेरी गुफाओं में अंकित है कि राजतडाका सतावाहनों का एक तालुका था जहां दो गुफाओं कुटी और कोधी (चैत्य और विहार) को उकेरा गया. इतालवी शोधकर्ता पिया ब्रानकेसियो के मुताबिक राजतडाका में कपास उद्योग के लिए कपास का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता था.
कई समकालीन इतिहासकारों ने राजतडाका को उज्जैन से तेर (तगार) तक ट्रेड रूट का एक हिस्सा भी बताया. तेर महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में स्थित है. इस रूट में बुरहानपुर, अजंता, घटोक्काच्चा, भोकर्दन, राजतडाका और प्रतिस्थाना जैसे प्राचीन स्थल जुड़े थे. लेकिन बाद में ये औरंगाबाद के उत्तर पूर्व में छोटे भौगौलिक ट्रैक के तौर पर ही सिमट गया.
इस शहर (औरंगाबाद) का दूसरा नाम मुहम्मद बिन तुगलक के काल में पड़ा जब उसने 1326-27 में अपनी राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद स्थानांतरित कर दिया था. तुगलक ने इस रूट के आसपास कई सराय, कुओं, मस्जिद, बाजार आदि का निर्माण किया जिस पर रूट से गुजरने वाले यात्रियों को आसानी रहे.
तुगलक के जमाने का ऐसा ही एक जटिल निर्माण औरंगाबाद शहर के बीच जूना बाजार क्षेत्र है. इसका मूल नाम जौना खान की सराय था जो समय बीतने के साथ जूना बाजार में तब्दील हो गया. मुहम्मद बिन तुगलक का असली नाम जौना था.
शहर के लिए तीसरा नाम खडकी था जिसका उल्लेख 1600 में मलिक अंबर ने किया था. मलिक अंबर अबीसीनिया (अब इथियोपिया) का कमांडर और निजाम मुर्तजा शाह का प्रधानमंत्री था. मलिक अंबर ने लिखा कि खाम नदी के पास कैम्प करते हुए उसे खडकी को देखने का मौका मिला. उसके मुताबिक चट्टानी जमीन वाली इस जगह की आबादी करीब 500 लोगों की थी.
औरंगाबाद का चौथा नाम ‘खुजिस्ता बुनियाद’ था जिसका मतलब था पाक जमीन. ये नाम औरंगजेब ने डेक्कन की अपनी पहली गवर्नरशिप (1636-44) के दौरान दिया था. इस नाम पर सिक्के भी चलाए गए. औरंगजेब ने डेक्कन की अपनी दूसरी गवर्नरशिप (1652-57) के दौरान इस जगह का नाम बदलकर औरंगाबाद कर दिया.
आज की तारीख तक औरंगाबाद में औरंगजेब के काल में बने कई निर्माण मौजूद हैं. इनमें सबसे अहम बीबी का मकबरा है जो ताज महल के डिजाइन पर है. शहर में औरंगजेब के वक्त की कई और निशानियों के तौर पर दीवारें, दरवाजे देखे जा सकते हैं. इनके अलावा सोनहेरी महल और नहर-ए-अम्बरी का भी नाम लिया जा सकता है. नहर-ए-अम्बरी को पानी की व्यवस्था के लिए मलिक अंबर के मॉडल पर बनाया गया था.
औरंगजेब के वक्त में 11 और नहरों को जोड़ा गया जो पूरे शहर की पानी की जरूरत को पूरा करती थीं. खुला पानी होने की वजह से हिमायत बाग जैसे कई खूबसूरत बाग उस दौर में बनाए गए. इसके अलावा कव्वाल तालाब या जसवंत तालाब जैसे पानी के स्रोत भी विकसित किए गए. औरंगाबाद उस दौर में जल्दी ही चहल पहल वाला समृद्ध शहर बन गया था.
इस मध्ययुगीन शहर में सभी समुदायों और धर्मों के लोगों को जगह मिली. राजपूतों को जागीरें दी गईं. उनके नाम पर कई उपनगरों के नाम रखे गए, जैसे कि जसवंतपुरा, जयसिंहपुरा और केसरसिंहपुरा. कायस्थों को जमीन दी गई जो धवानी मोहल्ला के तौर पर जानी गई. इसी तरह गुजराती कासो परख में रहे.
प्राचीन नाम है पुणे
संदर्भों के मुताबिक पुणे का नाम आठवीं सदी में पुन्नाह/पुन्यक था. अब्दुल कादिर ने अपनी किताब ‘तारीख-ए-अहमदनगर’ में लिखा है मुथा नदी के किनारे पर दो गांव स्थित थे- पुन्नेश्वर और नारायणेश्वर. ये दोनों नाम दो मंदिरों पर आधारित थे.11वीं सदी में पुणे को कस्बे पुणे या पूनावाडी के तौर पर पहचान मिली. मराठाओं के समय में इसे पुणे कहा गया. बोलचाल की भाषा में ये पून्ना था जिसे ब्रिटिश हुकूमत के दौरान बदल कर पूना कर दिया गया. मौजूदा समय में शहर को इसके मूल नाम पुणे से ही जानाता जाता है. हालांकि मराठा संगठन सम्भाजी ब्रिगेड की मांग है कि पुणे का नाम बदलकर जीजानगर किया जाए.
संस्थापक के नाम पर है अहमदनगर का नाम
अहमदनगर की स्थापना मालिक अहमद निजाम शाह ने बाहमनी साम्राज्य के टूटने के बाद की थी. शहर की स्थापना के बाद अहमद शाह ने 1490 में नए निजाम शाही वंश को शुरू किया. शहर को सीना नदी के उत्तरी किनारे पर बसाया गया. अहमद शाह ने अपने नाम पर इस जगह का नाम रखा. यही प्राचीन समय मे भीनगर हुआ करता था.
दो साल में ही अहमद शाह ने जगह का नक्शा बदल दिया. इसकी तुलना बगदाद और काहिरा जैसे खूबसूरत शहरों से की जाने लगी. अहमदनगर जिले के शिरडी से शिवसेना सांसद सदाशिव लोखंडे ने शहर का नाम देवी अंबिका के मंदिर के नाम पर अंबिकापुर करने की मांग की है.
उस्मानाबाद का इतिहास
उस्मानाबाद का नाम हैदराबाद के सातवें निजाम, उस्मान अली खान के नाम पर पड़ा. उस्मान अली खान को अपने वक्त में शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार के लिए जाना जाता है. उन्होंने कई स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों का निर्माण कराया.
ऐतिहासिक स्रोतों के मुताबिक उस्मानाबाद का मूल नाम धाराशिवा था. ये नाम देवी ‘धारासुर मर्दिनी’ के नाम पर था. यहां पास में धाराशिवा गुफाएं स्थित हैं जिन्हें छठी से सातवीं सदी का बताया जाता है. हालांकि वीवी मिराशी और डॉ धारुरकर जैसे इतिहासकारों में इन गुफाओं को लेकर भी विवाद है कि ये बौद्ध गुफाएं हैं या जैन गुफाएं.
(लेखक डॉ दुलारी कुरैशी एक शिक्षाविद और इतिहासकार हैं)