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महाराष्ट्र में भाषा विवाद पर तकरार, फडणवीस के ‘पलटूराम’ वाले बयान पर उद्धव ने जमकर बोला हमला

महाराष्ट्र में भाषा को लेकर सियासत चरम पर है. फडणवीस सरकार ने तीसरी भाषा नीति के फैसले को वापस ले लिया है. मुख्यमंत्री फडणवीस ने उद्धव ठाकरे को 'पलटूराम' कहकर निशाना बनाया तो उद्धव ने भी तीखा पलटवार किया है. भाषा मंत्री उदय सामंत ने उद्धव गुट पर श्रेय लेने की राजनीति करने का आरोप लगाया है.

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महाराष्ट्र में तीसरी भाषा नीति पर घमासान (फाइल फोटो)
महाराष्ट्र में तीसरी भाषा नीति पर घमासान (फाइल फोटो)

महाराष्ट्र में भाषा की लड़ाई ने सियासत की जमीन हिला दी. फडणवीस सरकार ने हिंदी को तीसरी भाषा बनाने का फैसला लिया. लेकिन मराठी अस्मिता की लहर इतनी तेज चली कि बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति सरकार को आखिर झुकना पड़ा. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना (यूबीटी) के नेता उद्धव ठाकरे को 'पलटूराम' कहकर निशाना बनाया, जिस पर उद्धव ठाकरे ने भी पलटवार किया. 

सरकार जनता की आवाज सुनती है: फडणवीस

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि यह एक ऐसी सरकार है जो लोगों के हित में निर्णय लेती है, एक ऐसी सरकार है जो लोकतंत्र में लोगों की आवाज सुनती है. हमने एक समिति गठित की है जो राज्य में प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी भाषा शुरू करने के विषय पर अध्ययन करेगी और रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी. 

मुख्यमंत्री फडणवीस कह रहे हैं कि सरकार झुकी नहीं, जनता की भावना को देखा और फैसला लिया. वहीं उद्धव ठाकरे बोल रहे हैं कि ये मराठी अस्मिता की जीत है.

उद्धव सरकार के कार्यकाल में बनी समिति और रिपोर्ट

मुख्यमंत्री फणडवीस ने कहा, 21 सितंबर 2020 को उद्धव सरकार ने विशेषज्ञ समिति बनाई. 16 अक्टूबर 2020 को डॉ रघुनाथ माशेलकर के नेतृत्व में टास्क फोर्स बनी. 14 सितंबर 2021 को रिपोर्ट सौंप दी गई. हिंदी को अनिवार्य भाषा बनाने की सिफारिश की गई. इसके तहत कक्षा 1 से 12 तक और संभावित रूप से कॉलेज डिग्री कार्यक्रमों में अंग्रेजी और हिंदी अनिवार्य दूसरी भाषा होनी चाहिए, ताकि छात्रों को तकनीकी और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए तैयार किया जा सके, जबकि उच्च शिक्षा में मराठी को प्राथमिकता दी जाए. 

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उन्होंने कहा, उद्धव ठाकरे ने रिपोर्ट को तत्काल लागू करने का निर्देश दिया था, उस समय संजय राउत भी मौजूद थे. 

मराठी अस्मिता की जीत: उद्धव ठाकरे

शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष ने कहा, 'मैं अलग-अलग राजनीति दलों का शुक्रिया करना चाहूंगा कि इस मुद्दे पर सभी साथ आए. त्रिभाषा नीति रद्द होने की वजह से पांच जुलाई को होने वाले विरोध प्रदर्शन को टाला जा सका. इस प्रदर्शन में एकनाथ शिंदे गुट के शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी के नेता शामिल हो सकते थे. शिक्षा से जुड़े मामलों को देखने के लिए डॉ. नरेंद्र जाधव जैसे वित्तीय विशेषज्ञों की नियुक्ति मजाक है. हमने मराठी भाषा को नफ़रत करने वालों को मुंह पर तमाचा मारा है और यही एकता बनी रहनी चाहिए'.

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फडणवीस सरकार का आदेश और फिर यू-टर्न

16 अप्रैल 2025 और 17 जून 2025 को फडणवीस सरकार ने सरकारी आदेश दिया. लेकिन 28 जून 2025 को विपक्ष समेत कई पार्टियों के दबाव में फडणवीस सरकार को यू-टर्न लेना पड़ा. हालांकि फडणवीस ने कहा कि ठाकरे ने संजय राउत की मौजूदगी में रिपोर्ट को तत्काल लागू करने का निर्देश दिया था. लेकिन अब यही हिंदी महाराष्ट्र में बेवजह विवादों में घसीटी जा रही है. 

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बीजेपी पर झूठ बोलने का आरोप: संजय राउत

शिवसेना (यूबीटी) संजय राउत ने कहा, भारतीय जनता पार्टी की एक राष्ट्रीय नीति है, झूठ बोलने की. वही जो एक राष्ट्रीय नीति है, वह सिर्फ़ झूठ बोलने का काम करते हैं. अगर उद्धव ठाकरे ने कोई रिपोर्ट बनाई है, तो उसे सामने लाइए. हम बार-बार कह रहे हैं कि अगर ऐसा कोई पेपर है तो उसे सार्वजनिक कीजिए. एक जो कमिटी की रिपोर्ट सामने आई है, क्या उसे कैबिनेट में रखा गया है? क्या उस पर चर्चा नहीं हो सकती? आपने हिंदू शक्ति को लेकर जबरदस्ती चर्चा की है, क्यों? क्योंकि वह आपकी राष्ट्रीय नीति है. अगर कोई राष्ट्रीय नीति राज्य के सामने आती है, तो उस पर चर्चा करना ज़रूरी होता है. देवेंद्र फडणवीस तीन बार मुख्यमंत्री बने हैं, क्या उन्हें इतनी भी जानकारी नहीं है?

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और टकराव

अब सियासत का अगला अध्याय शुरू हो चुका है. उदय सामंत ने ठाकरे गुट पर क्रेडिट लेने का आरोप जड़ा, तो सुनील प्रभु ने नया टर्न देते हुए कहा कि हमने रिपोर्ट तो मानी थी, लेकिन बीजेपी ने महाविकास अघाड़ी सरकार गिरा दी थी. 

हिंदी अनिवार्यता पर विरोध से दबाव में सरकार

दरअसल, जैसे ही महाराष्ट्र में पहली कक्षा से हिंदी अनिवार्य की बात सामने आई तो इसके खिलाफ विपक्षी शिव सेना (यूबीटी) और राज ठाकरे की पार्टी MNS एक हो गए. दोनों दलों ने पांच जुलाई को महामोर्चा निकालने का ऐलान कर दिया. जिस तरह से मामले ने तूल पकड़ा उससे इस बात की संभावना बढ़ गई ती कि यह आगे जाकर बड़ा मुद्दा बन सकता है. इससे पहले ही फडणवीस सरकार ने एक कमेटी बनाकर फिलहाल मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया.

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हिंदी कोई पराई नहीं, सहज रूप से अपनाने की ज़रूरत

हिंदी कोई पराई नहीं. हिंदी इस देश की आत्मा है. केंद्र से लेकर कई राज्यों में सरकारी कामकाज की भाषा है. और तकनीकी, वैज्ञानिक और व्यापारिक दुनिया से जोड़े रखने का जरिया भी. समझने की बात ये है कि हिंदी को थोपने की नहीं, सहज रूप से अपनाने की जरूरत है. इसलिए महाराष्ट्र में जब उद्धव की सरकार थी तो एक समिति बनाई गई. 

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