अपने एक आदेश में बंबई हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि महज आपसी सहमति से कोई पति-पत्नी दस्तावेज तैयार कर तलाक नहीं ले सकते हैं. यही नहीं कोर्ट ने एक परिवार अदालत के उस आदेश को भी खारिज कर दिया, जिसने आपसी सहमति से छह महीने की इंतजार अवधि में छूट के साथ तलाक मांगने वाले दंपति की याचिका खारिज कर दी थी. हाई कोर्ट ने मामले को तलाक के लिए फिर से परिवार अदालत भेज दिया है.
दरअसल, मित्तल और मनोज पंचाल की शादी हिंदू रीति रिवाज से अप्रैल 2007 में हुई थी, लेकिन एक साल के अंदर ही दोनों में विवाद शुरू हो गया. उन्होंने अलग होने का फैसला किया और जून 2011 में आपसी सहमति से ‘तलाक का दस्तावेज’ तैयार किया. उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि इस तरह के तलाक को कानून से मान्यता नहीं मिली है.
दोनों ने इस अमान्य तलाक के बाद दूसरी शादी की. इसके बाद महिला ने अमेरिकी वीजा के लिए आवेदन किया, क्योंकि उसका दूसरा पति वहीं रह रहा था. लेकिन अमेरिकी दूतावास ने अदालती तलाक के आदेश की मांग की. ऐसे में महिला और उसके पूर्व पति ने जरूरी छह महीने की इंतजार अवधि में छूट की मांग करते हुए परिवार अदालत से हिंदू विवाह कानून की धारा-13बी के तहत तलाक की याचिका दायर की. परिवार अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद महिला ने बंबई उच्च न्यायालय का रूख किया.
'शादी खत्म हो चुकी थी, इसलिए तलाक को माना जाना चाहिए'
मामले में न्यायमूर्ति वीके ताहिलरमाणी की अध्यक्षता वाली हाई कोर्ट की पीठ ने हाल ही आदेश दिया कि परिवार अदालत का आदेश तथ्यों और कानून के हिसाब से मानने योग्य नहीं है. हाई कोर्ट ने कहा कि याचिका को खारिज करने के लिए परिवार अदालत के बताए गए तर्क कानूनी तौर पर खरे नहीं उतरते. तलाक को माना जाना चाहिए क्योंकि शादी खत्म हो चुकी थी और बाद में दोनों पक्ष अलग-अलग हो गए व तलाक के लिए आपस में सहमत हुए.
'दूसरी शादी कर ली, इसलिए इंतजार करने की कोई वजह नहीं'
पीठ ने कहा कि हिंदू कानून के तहत विवाह को दो लोगों के बीच अनुबंध के तौर पर नहीं माना जाता. दंपति के बीच तलाक का पत्र तामील होने के बावजूद शिकायतकर्ताओं के बीच कानूनी तौर पर शादी का बंधन नहीं खत्म हुआ था, इसलिए हिंदू विवाह कानून की धारा-13बी के तहत दायर याचिका विचार योग्य है.
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि चूंकि दोनों ने फिर शादी कर ली, इसलिए जरूरी छह माह की अवधि तक इंतजार करने के लिए कहने की कोई वजह नहीं है. इसलिए, मामले को तलाक आदेश जारी करने के लिए परिवार अदालत को वापस भेजा जाता है.