महाराष्ट्र के उल्हासनगर से चिकित्सा जगत की बड़ी लापरवाही का मामला सामने आया है. यहां एक बुजुर्ग को डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया और डेथ सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया, जबकि वह जीवित था. 64 वर्षीय अभिमान तायडे को 12 जून की शाम बेहोशी की हालत में शिवनेरी प्राइवेट अस्पताल लाया गया था. मधुमेह और पीलिया सहित कई बीमारियों से पीड़ित अभिमान को डॉक्टर प्रभु आहूजा ने ऑटो रिक्शा में ही चेक किया और बिना दिल की धड़कन महसूस किए उन्हें मृत मान लिया.
डॉक्टर ने परिजनों से कहा कि मरीज की मौत हो चुकी है और डेथ सर्टिफिकेट भी बना दिया गया. इसके बाद परिवार अंतिम संस्कार की तैयारी कर ही रहा था कि किसी ने देखा कि अभिमान की छाती में हरकत है. तुरंत ही उन्हें एक दूसरे निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज शुरू होते ही वे होश में आ गए. इस चमत्कारिक पल ने परिवार को राहत दी, लेकिन लापरवाही को लेकर गुस्सा भी उफान पर था.
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डॉ. आहूजा ने मीडिया को बताया कि मरीज को करीब 30 मिनट तक जांचा गया, लेकिन ऑटो में हो रहे शोर और निर्माण कार्य की आवाजों के कारण दिल की धड़कन सुनाई नहीं दी. उन्होंने माना कि मरीज की हालत को सही से न जांच पाना उनकी भूल थी और उन्होंने इसके लिए माफी मांगी. डॉक्टर ने यह भी कहा कि परिवार ने बाद में उन्हें मरीज के जीवित होने की जानकारी नहीं दी, जिससे वह गुमराह हुए.
फिलहाल मरीज की हालत स्थिर है और परिवार ने शिवनेरी अस्पताल और डॉक्टर के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है. यह मामला स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और आपातकालीन जांच में लापरवाही की गंभीरता पर सवाल उठाता है.