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जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को लगाई फटकार, पूछा- आपने कौन-सा सामाजिक कार्य किया?

बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की और एक्टिविस्ट से पूछा है कि उसने कौन सा सामाजिक कार्य किया है. याचिका में कहा गया था कि शहीद दिवस पर महाराष्ट्र के पुलिस स्टेशनों में साइरन नहीं बजाया गया है. राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के परिपत्र का पालन नहीं किया है. हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाई और याचिका को अस्पष्ट बताया है.

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बॉम्बे हाईकोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई की है. (फाइल फोटो)
बॉम्बे हाईकोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई की है. (फाइल फोटो)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ शहीद दिवस पर सायरन नहीं बजवाने पर दायर याचिका पर सुनवाई की और एक्टिविस्ट को जमकर फटकार लगाई. कोर्ट ने याचिकाकर्ता एक्टिविस्ट से पूछा कि किन जगहों पर साइरन नहीं बजे या व्याख्यान नहीं हुआ? कोर्ट ने स्पष्ट जानकारी नहीं दिए जाने पर नाराजगी जताई और कहा- आप खुद यह बताएं कि आपने कौन सा सामाजिक कार्य किया है. कोर्ट का कहना था कि थाने में सायरन का ना होना अलग बात है. लेकिन आप कह रहे हैं कि सर्कुलर का पालन नहीं किया जा रहा है. याचिकाकर्ता ने अतिरिक्त तथ्यों को रिकॉर्ड पर रखने के लिए कुछ समय मांगा और अदालत ने सुनवाई 30 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी है.

दरअसल, याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकार ने महात्मा गांधी की पुण्यतिथि को शहीद दिवस के रूप में मनाने के लिए 30 जनवरी की सुबह 11 बजे सायरन बजाने के संबंध में केंद्र सरकार की गाइडलाइन को ठीक से लागू नहीं किया है. हाई कोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और संदीप मार्ने की डबल बेंच ने सोमवार को एक्टिविस्ट फिरोज मिथिबोरवाला की जनहित याचिका पर सुनवाई की. याचिका में आरोप लगाया कि 7 जनवरी को केंद्र सरकार ने एक सर्कुलर जारी किया था. लेकिन, राज्य सरकार यहां नेशनल इंट्रीगेशन पर एक्टिविटीज के मामले में विफल रही है. 
केंद्र ने सर्कुलर में राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपने प्राणों की आहुति देने वालों की याद में 30 जनवरी की सुबह 11 बजे दो मिनट का मौन रखने का निर्देश दिया था. इसमें कहा गया था कि पूरे देश में सायरन की आवाज से दो मिनट का मौन रखा जाएगा. परिपत्र में स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय एकता पर आयोजित होने वाले व्याख्यान या भाषणों को भी प्रोत्साहित करने के लिए कहा गया था.

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हाईकोर्ट में भी सायरना बजा और दो मिनट का मौन रखा

बॉम्बे हाई कोर्ट में भी सोमवार सुबह 11 बजे सायरन बजा और जजों समेत सभी ने काम रोक दिया और दो मिनट का मौन रखा, उसके बाद जनहित याचिका पर सुनवाई की गई. याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता अविनाश गोखले ने तर्क दिया कि राज्य सरकार सर्कुलर लागू करने में विफल रही है. इसमें महात्मा गांधी के बलिदान को श्रद्धांजलि, सम्मान और लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने का मकसद शामिल था.

'विशिष्ट उदाहरण समेत जानकारी दी जाए'

हालांकि, बेंच ने याचिकाकर्ता से उन मामलों को इंगित करने के लिए कहा, जहां सायरन नियम का पालन नहीं किया गया. गोखले ने तर्क दिया कि अधिकांश पुलिस थानों में आपात स्थिति के लिए भी सायरन या अलार्म सिस्टम नहीं थे. कोर्ट ने कहा कि जब तक आप हमें विशिष्ट उदाहरण नहीं देते, यह सिर्फ जनहित याचिका दायर करने के लिए है. थाने में सायरन नहीं बजना अलग बात है, आप कह रहे हैं कि सर्कुलर का पालन नहीं किया जा रहा है. गोखले ने आगे कहा कि राष्ट्रीय एकता पर स्कूलों में व्याख्यान के लिए परिपत्र प्रदान किया गया और इसे राज्य द्वारा लागू नहीं किया गया.

कोर्ट ने कहा- दो मिनट का मौन या सायरन क्या महत्वपूर्ण है? आप कितनी बार स्कूलों में गए हैं और राष्ट्रीय एकता पर व्याख्यान दिया है? अस्पष्ट तरीके से याचिका दायर करना बहुत आसान है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि प्रथम दृष्टया ना तो याचिकाकर्ता को राष्ट्रीय एकता पर कोई व्याख्यान देते हुए पाया गया और ना ही ऐसे उदाहरण मिले कि दो मिनट का मौन नहीं रखा गया. हालांकि, चूंकि याचिकाकर्ता ने अतिरिक्त तथ्यों को रिकॉर्ड पर रखने के लिए कुछ समय मांगा है, इसलिए कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए 30 मार्च, 2023 तक के लिए स्थगित कर दी है.

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