
गुना में कलेक्ट्रेट परिसर के बाहर 38 मजदूरों ने अपने काम का मेहनताना पाने के लिए बुधवार को धरना दिया. गौंड आदिवासी समुदाय के ये मजदूर हाथों के छाले दिखाते हुए कहते हैं कि एक महीने तक उन्होंने जी-तोड़ मेहनत की लेकिन वन विभाग उनकी मजदूरी पर कुंडली मार कर बैठा है.
ये मजदूर कटनी से 421 किलोमीटर का सफर तय करके इस आस के साथ गुना आए थे कि यहां काम करने से उनकी आर्थिक दिक्कतें कम होंगी. लेकिन उन्हे ये नहीं पता था कि एक महीना काम करने के बाद उन्हें मजदूरी देने से इनकार किया जाएगा.
हर गड्ढे के लिए 15 रुपये
दरअसल गुना में इन मजदूरों का कोई जानकार रहता था. उसी ने इन्हें बताया था कि वन विभाग को मकसूदनगढ़ क्षेत्र में यहां गड्ढे खोदने के लिए मजदूर चाहिए. इसी के बाद फरवरी के शुरू में ये मजदूर कटनी से गुना आ गए. इनमें महिलाएं भी शामिल थीं. इनसे कहा गया कि कुल 46 हजार गड्ढे खोदे जाने हैं. हर गड्ढा 15 रुपये के हिसाब से मजदूरी तय की गई.

इन मजदूरों का कहना है कि इन्होंने मेहनत से काम करना शुरू किया और एक महीने में करीब 20,000 गड्ढे खोद डाले. मजदूरों के दावे के मुताबिक जब वन विभाग के रेंजर से उन्होंने मजदूरी मांगी तो जवाब मिला कि जब तक गड्ढे पूरे नहीं खोदे जाएंगे, उन्हें एक पाई भी नहीं मिलेगी. इस पर मजदूरों का माथा ठनका और उन्होंने और गड्ढे खोदना बंद कर दिया.

वन विभाग में कोई सुनवाई नहीं हुई तो इन मजदूरों ने कलेक्ट्रेट परिसर के बाहर बुधवार को करीब 10 घंटे तक अपने हक की कमाई पाने के लिए धरना दिया. मजदूरों के इस तरह भूखा-प्यासा बैठे होने की सूचना मिलने पर गुना के कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम ने उनके लिए भोजन की व्यवस्था कराई. उन्होंने वन विभाग से मजदूरों की समस्या पर गौर करने के लिए भी कहा.
पैसा नहीं मिलेगा जो करना है वो कर लो!
पंजाब सिंह नाम के मजदूर का कहना है कि “पूरे काम के करीब 7 लाख रुपये बैठते हैं. आधा काम होने के बाद जब मजदूरों ने वन विभाग से कहा इतने का तो पैसा दो, बाकी जब काम पूरा हो जाएगा तब दे देना. इस पर वन विभाग के कर्मचारी धमकी देने लगे कि पैसा नहीं मिलेगा जो करना है वो कर लो.”

इस मुद्दे पर जब वन विभाग के डीएफओ मयंक चांदीवाल से संपर्क साधा गया तो उन्होंने कहा, “मजदूरों ने काम पूरा नहीं किया है. जिस मानदंड के हिसाब से गड्ढे खोदे जाने थे, वैसे नहीं खोदे गए, इसलिए पेमेंट रोका गया.” हालांकि वन विभाग का ये भी कहना है कि फिलहाल बजट की दिक्कत है, इसलिए एक साथ भुगतान नहीं किया जा सकता.
बहरहाल, मजदूरों का कहना है कि घर से इतनी दूर रह कर बिना पैसे वो कैसे गुजारा कर सकते हैं. जब तक मजदूरी का भुगतान नहीं मिल जाता तब तक घर भी नहीं लौट सकते.