लॉकडाउन में समाज का कोई तबका ऐसा नहीं होगा जिसकी आर्थिक स्थिति इन दो सालों में डगमगाई नहीं होगी लेकिन महंगाई से परेशान आम आदमी के लिए इन दिनों स्कूलों की महंगी फीस भी जेब पर एक बड़ा बोझ बन चुकी है जिसके चलते अभिभावक अब अपने बच्चों को महंगे निजी स्कूलों से निकालकर सरकारी स्कूलों या कम महंगे निजी स्कूलों में भेजने लगे हैं.
भोपाल में रहने वाले दीपक मल्होत्रा का 9 साल का बेटा शिवांश. पढ़ाई में होनहार शिवांश पिछले साल तक भोपाल के एक नामचीन स्कूल में पढ़ता था लेकिन पिछले साल कोरोना के बाद लगे लॉकडाउन में स्कूल बंद होने के बाद भी जब स्कूल ज़रूरत से ज्यादा फीस लेने की जिद पर अड़ा रहा तो शिवांश के पिता दीपक मल्होत्रा ने अपने बेटे को स्कूल से निकलकर राजधानी के ही केंद्रीय विद्यालय में दाखिल करवा दिया. स्कूल तो फिलहाल बंद है लेकिन शिवांश ने फिलहाल घर पर से ही पढ़ाई जारी रखी हुई है.
शिवांश के पिता का आरोप है कि लॉकडाउन में उनका काम धंधा तो चल नहीं रहा था और आमदनी काफी घट गई थी. इसलिए उन्होंने बेटे की स्कूल फीस में राहत देने के लिए स्कूल प्रबंधन से बात की लेकिन जब वो नहीं मानें तो बेटे को उस स्कूल से निकालकर केंद्रीय विद्यालय में दाखिल करवा दिया क्योंकि लॉकडाउन में घटती कमाई के चलते स्कूल की महंगी फीस उनके बूते की बात नहीं थी.
दीपक अकेले नहीं. स्कूल की महंगी फीस का दंश भोपल के कोलार इलाके में रहने वाले गजेंद्र यादव भी झेल रहे हैं. गजेंद्र के दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी. दोनों एक ही स्कूल में हैं. बेटा निजी स्कूल में चौथी कक्षा में है तो वहीं बेटी उसी स्कूल की कक्षा 2 में पढ़ती है. गजेंद्र यादव के सामने स्कूल फीस पिछले साल तक कोई बड़ी समस्या नहीं थी लेकिन इस साल लॉकडाउन में फार्मा सेक्टर में काम करने वाले गजेंद्र की नौकरी छूट गई लिहाज़ा हर महीना होने वाली आमदनी पर ब्रेक लगा तो स्कूल की फीस का भार उठाना मुश्किल हो गया. अब गजेंद्र महंगे स्कूल से बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजने की तैयारी में जुट गए हैं.
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उनका कहना है कि स्कूल से टीसी मिल गई तो बेटे को दूसरे स्कूल में पांचवी क्लास में दाखिला मिल जाएगा नहीं तो उसका एक साल बैक लगाकर उसी क्लास में दूसरे स्कूल में दाखिला करवाएंगे. दीपक और गजेंद्र की ही तरह भोपाल में ऐसे अभिभावकों की कमी नहीं जिसके बच्चों का सुनहरा भविष्य लॉकडाउन ने छीन लिया. पालक महासंघ के महासचिव प्रबोध पंड्या के मुताबिक पूरे मध्यप्रदेश में ऐसे अभिभावकों की संख्या 100 से ज्यादा है जो इस साल महंगे स्कूलों से बच्चों को निकालकर सरकारी या कम फीस वाले स्कूलों में डालने जा रहे हैं.
प्रबोध बताते हैं कि हाइकोर्ट तक स्कूल फीस के मामले में सरकार की खिंचाई कर चुका है लेकिन इसके बावजूद महंगी फीस से कोई राहत अभिभावकों को नहीं मिली है. पालक महासंघ की मांग है कि ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों के लिए अलग-अलग फीस तय होनी चाहिए.
ऐसा नहीं है कि इस बारे में सरकार को कुछ नहीं मालूम. मध्यप्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार कहते हैं कि सरकार ने बीते साल तो नियम बनाए थे कि स्कूल ट्यूशन फीस के अलावा दूसरी कोई फीस नहीं लेंगे लेकिन इस साल स्कूल खुलने की संभावना के बीच फिलहाल सरकार ने ऐसा कोई फैसला नहीं लिया है. बहरहाल, स्कूलों में फीस का हर साल महंगा होना कोई नई बात नहीं लेकिन कोरोना काल के घटती आमदनी के बीच बढ़ती हुई फीस अभिभावकों के लिए ऐसा बोझ बन गई है जिसे उठा पाना अब आम आदमी के बूते की बात नहीं.