
देश को आजाद हुए अगले महीने 74 साल पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन झारखंड के गुमला जिले का लिटिया चुबा गांव अब भी बुनियादी सुविधाओं का इंतजार कर रहा है. झारखंड के अलग राज्य बने भी दो दशक से अधिक वक्त बीत गया लेकिन जंगल से घिरे पहाड़ पर बसे गांव की न तो तस्वीर बदली और न ही यहां बसे लोगों की तकदीर.
बिहार से अलग होकर वर्ष 2000 में झारखंड राज्य बना तो गांव में बसे कोरवा आदिवासी समुदाय के लोगों ने सोचा था कि अब इलाके का तेजी से विकास होगा. लेकिन उनका ये सपना सपना ही रह गया, हकीकत में तब्दील नहीं हो सका.
गुमला जिले के डुमरी ब्लॉक के मझगांव पंचायत के तहत आने वाले लिटिया चुवा गांव के सड़क, बिजली, पानी, दवा जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीना पड़ रहा है. अगर गांव में कोई गंभीर रूप से बीमार पड़ जाता है तो उसे खाट पर लिटा कर आठ किलोमीटर दूर पक्की सड़क तक ले जाना पड़ता है.
विडंबना यह है कि आदिवासियों के तेजी से विकास और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के नाम पर ही अलग झारखंड राज्य के विचार ने जन्म लिया था लेकिन दुर्भाग्य से इन आदिवासियों की दिक्कतों का ही कोई अंत नजर नहीं आता.

लिटिया चुवा गांव में करीब 40 घर हैं. 100 से ज्यादा लोगों की आबादी वाला ये छोटा सा गांव छत्तीसगढ़ की सीमा पर बसा हुआ है. प्रसिद्ध बाबा टांगीनाथ धाम सिर्फ 8 किलोमीटर की दूरी पर ये गांव पहाड़ी पर बसा है. कोरवा जनजाति समुदाय वाले इस गांव के लोगों को पीने के पानी के लिए भी दो किलोमीटर दूर स्थित कुएं पर जाना पड़ता है. गांव के लोग लंबे समय से सड़क, बिजली, पानी और दवा जैसी बुनियादी सुविधाओं की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन शासन-प्रशासन की ओर से सुनवाई नहीं की जा रही है.

लिटिया चुवा गांव के लोगों की दिक्कतें समझने के लिए पहुंची आजतक टीम को भी आठ किलोमीटर पैदल चलना पड़ा. ये गांव गुमला जिले के मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर स्थित है. गांव के लोग कहते हैं कि बाहर का कोई शख्स इस गांव में अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहता. यहां के लोगों को अनाज के लिए भी आठ किलोमीटर दूर चलना पड़ता है. डाकिया योजना के तहत अनाज घर के द्वार तक पहुंचाने का प्रावधान है लेकिन कोई डीलर इस गांव के लिए ऐसा नहीं करता. पक्की सड़क न होने की वजह से गांव के बच्चों की भी अच्छी शिक्षा तक पहुंच नहीं है.
आजतक ने गांव के लोगों की दिक्कतों का मुद्दा जिले के डिप्टी कमिश्नर शिशिर कुमार सिन्हा के सामने उठाया. उन्होने कहा कि REO से जांच कराने के बाद गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए जल्दी कदम उठाया जाएगा. साथ ही वहां बिजली और पानी की जो समस्या है उसे भी जल्दी दूर किया जाएगा.

अब देखना है कि ये वादे कब तक पूरे होते हैं. इस गांव के लोगों से आदिवासी कल्याण के नाम पर राजनेता हर चुनाव में वादे तो लंबे चौड़े करते हैं लेकिन चुनाव जीतते ही गांव की बदहाली से आंखें मोड़ लेते हैं.
(गुमला से मुकेश सोनी के इनपुट्स के साथ)