झारखंड के बहुचर्चित फर्जी नक्सल सरेंडर मामले की फाइल पुलिस विभाग ने बंद कर दी है. आरोप है कि दिग्दर्शन इंस्टीट्यूट के जरिये साल 2014 में 514 छात्रों को नक्सली बताकर फर्जी तरीके से सरेंडर कराया गया था.
पूरे प्रकरण में पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों के शामिल होने की बात भी सामने आई थी. जांच में बड़े अधिकारियों ने भी पाया था कि इनमें से सिर्फ 10 युवकों का ही नक्सली गतिविधियों से संबंध था, लेकिन जिस तरह से इंस्टिट्यूट के ही पांच लोगों को आरोपी बताते हुए जांच की फाइल बंद कर दी गई, उसने कई सवाल खड़े कर दिए है.
फर्जीवाड़े तक सिमटी रही जांच
मामले में पुलिस अधिकारियों के शामिल होने की बात सामने आने के बावजूद जांच सिर्फ नौकरी के नाम पर फर्जीवाड़े तक सिमटी रही. उन पर आरोप है कि जांच के नाम पर खेल हुआ और अधिकारियों को बचा लिया गया.
इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट पर भी गौर नहीं किया जिसमें कहा गया था कि पुलिस के बड़े अधिकारियों ने सरेंडर का आंकड़ा बढ़ाने के लिए सरेंडर पॉलिसी का दुरुपयोग किया. सरेंडर करने वाले युवकों में से महज 128 से ही पुलिस ने बयान लिया. इनमें अधिकांश के पते का पुलिस या तो सत्यापन ही नहीं कर पाई या फिर वे इन पतों पर नहीं मिले. मामले की जांच रिपोर्ट सौंपी जा चुकी है, जिसमें महज पांच नामजद को ही दोषी बताया गया है और ये सभी दिग्दर्शन संस्थान से ही जुड़े रहे हैं.
क्या है मामला?
झारखंड सहित देश के दूसरे राज्यों में नक्सलियों को राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए सरेंडर कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. इसी के तहत झारखंड पुलिस ने रवि बोदरा नामक शख्स की सहायता ली. रवि के बारे में जांच रिपोर्ट में बताया गया है कि वह सेना में कर चुका है और वहां से रिटायर होने के बाद वह मिलिट्री इटेंलीजेस से जुड़ गया था.
रवि बोदरा ने रांची, गुमला, खूटी, सिमडेगा जैसे नक्सलवाद प्रभावित जिलों में घूम-घूम कर कैंप लगवाया था और सरेंडर पॉलिसी के तहत हथियार के साथ सरेंडर करने का सुझाव युवाओं को दिया. ऐसे में सीआरपीएफ और सेना में नौकरी पाने के लालच मे गांव के युवकों ने जमीन और मोटरसाइकिल बेचकर रवि और दिनेश प्रजापति को पैसे दिए. दोनों ने युवकों से कहा था कि नक्सली के रूप में सरेंडर करने पर ही नौकरी मिलेगी.
बाद में सभी युवकों को पुराने जेल में रखा गया. मामला सामने आने के बाद पुलिसिया जांच की मंजूरी दी गई. वैसे रांची पुलिस ने जो जांच की उसमें यह कहा गया है कि रवि, दिनेश प्रजापति के साथ बड़े अफसरों के रिश्तों की जांच नहीं की गई. इन 514 युवकों के फर्जी सरेंडर के बाद इन्हें सीआरपीएफ की देखरेख में रखा गया.
हैरानी की बात यह रही कि सरेंडर के बाद किसी भी युवक को कोर्ट में पेश ही नहीं किया गया था. मानवाधिकार आयोग ने भी इस प्रकार युवकों को रखने के लिए पुलिस अधिकारियों को दोषी बताया था. वैसे पुलिस ने भले ही फाइल बंद कर दी हो लेकिन यह मामला अभी हाईकोर्ट में लंबित है.