झारखंड देश के कुल खनिज भंडार का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा रखता है. यहां वैध खनन के साथ-साथ अवैध खनन भी एक समानांतर उद्योग का रूप ले चुका है. अनुमान के मुताबिक इस अवैध कारोबार का सालाना टर्नओवर 20 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा है. कोयले के इस काले साम्राज्य में सबकुछ काला है, लेकिन इसे संचालित करने वाले सफेदपोश हैं. माफिया और सिस्टम का ऐसा गठजोड़ है कि दशकों से ईडी, सीबीआई और सीआईडी भी इसे तोड़ नहीं पाई हैं.
विपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी ने हाल ही में कहा था कि इस अवैध उद्योग को सिस्टम का ही संरक्षण प्राप्त है. यह काला खेल अब सिर्फ धनबाद, बोकारो और रामगढ़ तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पलामू और लातेहार जैसे जिलों में भी फैल चुका है. प्रतिदिन हजारों टन कोयला पलामू के रास्ते बिहार के डेहरी और उत्तर प्रदेश के बनारस की मंडियों में पहुंचाया जा रहा है. आजतक की पड़ताल में सामने आया कि बंद और असुरक्षित कोलियरियों में गरीब और मजबूर लोग जान जोखिम में डालकर कोयला निकालते हैं. जमीन के नीचे सुरंगनुमा कुएं बनाकर 30 से 40 लोग एक साथ उतरते हैं. मजदूरों को 8 से 10 हजार रुपये देकर उनका भविष्य अंधकार में झोंक दिया जाता है, जबकि मास्टरमाइंड की तरक्की दिन-दुगुनी और रात-चौगुनी होती है.
धनबाद : अवैध कोयला कारोबार की राजधानी
धनबाद में अवैध कोयला सिंडिकेट ने पूरे उद्योग का रूप ले लिया है. प्रतिदिन करीब 500 ट्रक अवैध कोयला जिले से बाहर भेजा जा रहा है. इस अवैध कारोबार का संरक्षक स्थानीय प्रशासन ही बना हुआ है. आजतक की पड़ताड़ में पता चला कि एक अवैध कोयला सेंटर के लिए पुलिस का रेट तय है– एक जगह से करोड़ों रुपये पहुंचाए जाते हैं. टोकन मनी के रूप में 10 लाख और प्रति टन कोयला पर करीब 2200 रुपये लिए जाते हैं. एक डिपो से रोज 20 ट्रक निकलते हैं तो महीने में करोड़ों का खेल होता है.
बीसीसीएल और ईसीएल के कोलियरी क्षेत्रों– बाघमारा, झरिया, बलियापुर, निरसा तक बंद और असुरक्षित खदानों से कोयला तस्करी होती है. जिले की सभी सड़कों पर दिन-रात साइकिल, मोटरसाइकिल, ट्रैक्टर और हाइवा से अवैध कोयला ढुलाई होती दिखती है. बाघमारा, कतरास, झरिया, सिंदरी, निरसा, गोविंदपुर समेत हर थाना क्षेत्र में अवैध उत्खनन और डिपो चल रहे हैं. अवैध खनन में मजदूर जान हथेली पर रखकर कुएं जैसे गड्ढे बनाकर कोयला निकालते हैं. कई बार बड़े हादसे हो चुके हैं, लेकिन कोई जिम्मेदारी लेने वाला नहीं.
बमबाजी और गोलीबारी की घटनाएं आम बात
सिंडिकेट आपस में लड़ते-झगड़ते सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं, बमबाजी और गोलीबारी की घटनाएं रोज होती हैं, लेकिन पुलिस कार्रवाई के बजाय संरक्षण देती है. बीसीसीएल के सीएमडी मनोज कुमार अग्रवाल ने कोयला चोरी को झारखंड के कोयला उद्योग के लिए बड़ा संकट बताया. इसे समाज के लिए कोढ़ करार देते हुए उन्होंने कहा कि अवैध कोयला सस्ता होने से वैध कोयले की मांग घट रही है. मुख्य समस्या रंगदारी, दादागिरी और माफियागिरी है.
अवैध खनन की वजह से धनबाद से रामगढ़ तक जमीन के नीचे दशकों से आग धधक रही है. वहीं गिरिडीह के सीसीएल क्षेत्र में भूधंसान की घटनाएं लगातार हो रही हैं. महुआपथारी, भदुआ पहाड़ और कबरीबाद माइंस में पहले भी कई बड़े हादसे हो चुके हैं, जिनमें कई लोगों की जान गई. इसके बावजूद कोयला माफिया बेखौफ हैं. प्रशासन की कार्रवाई और डोजरिंग के कुछ दिनों बाद ही खनन फिर शुरू हो जाता है.
रामगढ़ में कोयले के साथ-साथ बालू की तस्करी भी बड़े पैमाने पर हो रही है. जेसीबी से अवैध खनन, जंगलों में कोयले का भंडारण और ट्रकों से यूपी-बिहार की मंडियों तक सप्लाई की तस्वीरें चौंकाने वाली हैं. रामगढ़ के एसपी अजय कुमार का कहना है कि अवैध मुहानों को ब्लास्टिंग कर बंद किया गया है और कार्रवाई लगातार जारी है. केंद्रीय कोयला मंत्री जी किशन रेड्डी ने कोयला माफियाओं के खिलाफ बड़े एक्शन प्लान का भरोसा दिलाया है. सवाल यही है कि जब रोजाना करोड़ों के राजस्व की लूट हो रही है और सरकार को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है, तो फिर यह अवैध खनन रुक क्यों नहीं रहा? क्या सिस्टम-माफिया गठजोड़ पर सच में कभी लगाम लग पाएगी?