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बिरसा मुंडा के गांव को झारखंड बनने के दो दशक बाद भी विकास का इंतजार

रविवार को बिरसा मुंडा की 145वीं जयंती और राज्य के 21वें स्थापना दिवस पर उन्हें याद किया गया. दूसरी ओर जमीनी हकीकत यह है कि बिरसा मुंडा का गांव उलिहातू अब भी वैसा विकास नहीं देख पाया है जो शहीद ग्राम के नाते यहां होना चाहिए था.

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बिरसा मुंडा का गांव उलिहातू
बिरसा मुंडा का गांव उलिहातू
स्टोरी हाइलाइट्स
  • झारखंड का गठन 15 नवंबर 2000 को हुआ
  • रविवार को मनाई गई बिरसा मुंडा की 145वीं जयंती
  • बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू में नहीं हुआ विकास

झारखंड को बिहार से अलग होकर राज्य बने रविवार को 20 साल पूरे हो गए. झारखंड का गठन 15 नवंबर 2000 को आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की 125वीं जयंती पर हुआ था. आदिवासियों में आराध्य बिरसा मुंडा को भगवान की तरह ही पूजा जाता है. उनके इर्द-गिर्द ही इस आदिवासी क्षेत्र की राजनीति घूमती है.

रविवार को बिरसा मुंडा की 145वीं जयंती और राज्य के 21वें स्थापना दिवस पर उन्हें याद किया गया. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने अंग्रेज़ों के किस तरह छक्के छुड़ाए और अपनी शहादत दी, उसका स्मरण किया गया. दूसरी ओर जमीनी हकीकत यह है कि बिरसा मुंडा का गांव उलिहातू अब भी वैसा विकास नहीं देख पाया है जो शहीद ग्राम के नाते यहां होना चाहिए था.

जब झारखंड बिहार का ही हिस्सा था तो लालू यादव के मुख्यमंत्री काल में उलिहातू के खपरैल वाले घरों को पक्का बनाने के वादे किए गए, वो नया राज्य बनने के दो दशक बाद भी पूरे नहीं हुए. मुख्यमंत्री रहते लालू यादव शहीद बिरसा मुंडा के गांव में आए भी थे. तब उन्होंने गांव के सभी लोगों को पक्का मकान देने का एलान किया था. लेकिन वो एलान हवा में रह गया. 

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उलिहातू गांव में सरकारी इमारतों को छोड़कर आज भी गांव के सभी घर खपरैल के हैं. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने भी उलिहातू के लिए कई विकास योजनाओं की घोषणाएं की थीं, जो पूरी नहीं हुईं. ऐसे ही विकास के वादे पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने भी किए जो बस वादे ही रह गए. बहरहाल मुख्यमंत्री कोई भी रहा हो, शहीद बिरसा मुंडा का गांव उलिहातू विकास की रफ्तार नहीं पकड़ सका. 

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बिरसा मुंडा के वंशज सुखराम मुंडा को भी उलिहातू की उपेक्षा का दर्द सालता है. उनका कहना है, ‘’उलिहातू का शहीद ग्राम की तरह विकास होना था, काम तो हुआ लेकिन उतना नहीं जितना होना चाहिए था. यहां के लोगों को रोजगार की सबसे बड़ी समस्या है. वन आधारित छोटे घरेलू उद्योग यहां लगाए जाएं तो तस्वीर बदल सकती है. इससे गांव में ही लोगों को रोजगार मिल सकेगा.’’  

बिरसा मुंडा के वंशजों में कानु मुंडा और जंगल मुंडा को सरकारी नौकरी मिली है, लेकिन गांव के अधिकतर युवा बेरोजगार हैं. रोजगार के नाम पर मनरेगा योजनाओं का कुछ काम जरूर किया गया, लेकिन पानी की समस्या होने की वजह से उनका पूरा लाभ नहीं मिला.  

उलिहातू गांव में पीने के पानी का भी संकट है जो गर्मियों में ज्यादा होता है. इसके लिये भी पुणे की एक कंपनी से डीपीआर बनवाया जा रहा है. हां, यहां सड़कें जरूर चकाचक बन गई हैं. बिजली के ट्रांसफार्मर भी बहुत पहले से लगे हैं. गांव में बिरसा कांप्लेक्स बनाया गया है जहां पर 10+2 आवासीय विद्यालय संचालित है, यहां दूसरी जगहों के बच्चे भी पढ़ते हैं. गांव में स्वास्थ्य केंद्र है, एक एंबुलेंस की भी व्यवस्था है. हर दिन यहां डॉक्टर नहीं बैठते, इसलिए मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.  

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