झारखंड के हजारीबाग के रहने वाले रामेश्वर महतो का पार्थिव शरीर 45 दिनों के लंबे इंतज़ार के बाद गुरुवार को उनके पैतृक गांव लाया गया. रामेश्वर महतो पिछले 12 सालों से कुवैत में एक निजी कंपनी में काम कर रहे थे और वहीं 19 जून को हृदय गति रुकने से उनका निधन हो गया था.
न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक परिजनों ने रामेश्वर महतो के अंतिम भुगतान के बिना उनका शव स्वीकार करने से इनकार कर दिया था, जिसके चलते शव को भारत लाने में काफी देरी हुई. रामेश्वर की पत्नी प्रमिला देवी ने राज्य प्रवासी श्रमिक प्रकोष्ठ से शव को स्वदेश लाने की गुहार लगाई थी, जिसके बाद 19 जून को ही भारतीय दूतावास और रांची स्थित प्रवासी श्रमिक प्रोटेक्टर को सूचना दी गई थी.
शव लाने में क्यों हुई 45 दिनों की देरी ?
लेकिन परिवार द्वारा अंतिम भुगतान की मांग और अन्य औपचारिकताओं के चलते मामला उलझ गया. इस बीच लगातार संवाद और जिला प्रशासन के प्रयासों के बाद, हजारीबाग के उपायुक्त ने परिजनों को मनाया और 27 जुलाई को भारतीय दूतावास को औपचारिक अनुरोध भेजा गया. इसके बाद 28 जुलाई को कुवैत की कंपनी ने प्रक्रिया शुरू की और आखिरकार गुरुवार को करीब 3:45 बजे शव रांची स्थित बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर पहुंचा.
राज्य प्रवासी प्रकोष्ठ के एक अधिकारी ने बताया कि यह मामला उन जटिलताओं को उजागर करता है, जो विदेशों में काम कर रहे मजदूरों की मौत के बाद उनके शव को स्वदेश लाने में आती हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय और नीतियों की आवश्यकता है.
रामेश्वर महतो का शव गांव पहुंचते ही माहौल गमगीन हो गया. परिजन और ग्रामीणों की आंखों में आंसू थे. रामेश्वर महतो की अंतिम यात्रा पूरे गांव की मौजूदगी में संपन्न हुई. लोगों ने सरकार से ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई की मांग की है, ताकि भविष्य में किसी परिवार को इस तरह की पीड़ा का सामना न करना पड़े.
कुवैत में काम कर रहे झारखंड के रमेश्वर महतो का शव 45 दिन बाद उनके गांव बंडखरो पहुंचा. परिजनों ने रामेश्वर महतो के अंतिम सैलरी के भुगतान के बिना शव लेने से इनकार किया था, जिससे प्रक्रिया में देरी हुई. प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद शव गुरुवार को रांची एयरपोर्ट लाया गया. इस घटना ने प्रवासी मजदूरों की समस्याओं और प्रशासनिक पेचिदगियों को उजागर किया है.