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कश्मीर में दीवारों पर आतंकवाद समर्थक नारे, बार-बार की हिंसा से हिला सोपोर

श्रीनगर के पुराने इलाके में दीवार पर लिखा है, 'हम आईएसआईएस को चाहते हैं'. कश्मीर घाटी में दीवारों पर आतंक के समर्थन में नारे फिर नजर आने लगे हैं. इसके साथ ही लोगों को आतंकवाद से जोड़ने के लिए धार्मिक कार्यक्रम बराबर हो रहे हैं.

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ISIS flag
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श्रीनगर के पुराने इलाके में दीवार पर लिखा है, 'हम आईएसआईएस को चाहते हैं'. कश्मीर घाटी में दीवारों पर आतंक के समर्थन में नारे फिर नजर आने लगे हैं. इसके साथ ही लोगों को आतंकवाद से जोड़ने के लिए धार्मिक कार्यक्रम बराबर हो रहे हैं.

उत्तर कश्मीर के सोपोर से लेकर दक्षिण के अनंतनाग तक कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिससे पुलिस का मनोबल गिर गया है. घाटी में ‘सेवों का शहर’ सोपोर पूर्व आतंकवादियों समेत छह नागरिकों की हत्या के बाद बार-बार की हिंसा से हिल गया है. संदेह है कि हिज्बुल मुजाहिदीन से अलग हुए धड़े ने इन लोगों की हत्या की.

इन हत्याओं को लेकर कय्यूम नज्जर उर्फ ‘नजरवाला’ पर अंगुली उठी, लेकिन पुलिस अबतक उसे पकड़ नहीं पाई है और वह सोपोर में बेरोकटोक हिंसा फैलाने में लगा रहा.

श्रीनगर के बाहरी इलाके की नरबाल घटना से कानून प्रवर्तन मशीनरी में निराशा है. नरबाल में थाने पर पथराव कर रही भीड़ पर गोलियां चलाने पर एक सहायक उप निरीक्षक और कांस्टेबल को जेल में डाल दिया गया. पुलिस अधिकारियों का दावा है कि संबंधित पुलिसकर्मियों पर हत्या का आरोप लगाने से पहले कोई मजिस्ट्रेट जांच नहीं की गई.

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इन सब घटनाओं से आतंकवाद निरोधक अभियानों को एक बड़ा झटका लगा है, क्योंकि पुलिस का आम लोगों के बीच अपने सूत्रों और मुखबिरों से संपर्क खत्म हो रहा है. आतंकवाद विरोधी अभियानों में अग्रणी रहे एक पुलिस अधिकारी ने कहा, 'मानव खुफिया सूचना, जो सभी आतंकवाद विरोधी अभियानों की सफलता के लिए अहम है, खत्म हो गई है. हमारे कई सूत्र परिदृश्य से गायब हो गए हैं या फिर दूसरे पाले में चले गए हैं क्योंकि उन्हें बनाए रखने के लिए धन उपलब्ध नहीं है.'

पुलिस में सूत्रों ने स्वीकार किया कि सोपोर में जो लोग मारे गए, उनमें से कुछ पुलिस मुखबिर थे जो उन्हें राष्ट्रविरोधी गतिविधियों की सूचना देते थे.

एक पुलिस अधिकारी ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर कहा, 'इन हत्याओं के बाद, कई मुखबिर सुरक्षित स्थानों पर चले गए और अन्य ने पाला बदल दिया. पहले जो अभियान चलाए जाते थे, उनके लिए इन सूत्रों को अच्छा खासा भुगतान होता था, लेकिन अब राज्य सरकार की कुछ नीतियों के चलते इन सूत्रों को अपनी जीविका चलाना मुश्किल लगा और आतंकवादियों के पास लौट जाना आसान नजर आया.'

कुलगाम की इत्तफाक मुठभेड़ को छोडकर कोई आतंकवाद निरोधक अभियान नहीं चला है. कुलगाम में पिछले महीने आतंकवादियों के हथियारों का खुलासा हो जाने के बाद लश्कर ए तैयबा के दो आतंकवादी सेना और अर्धसैनिक बलों के हाथों मारे गए.

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हालांकि, इस्लामिक स्टेट के समर्थन में दीवारों पर लिखे नारे के महत्व को कमतर बताते हुए एक अधिकारी ने कहा, 'हमें नहीं मालूम कि रात में कौन आता है और दीवार पर लिख जाता है. कुछ शरारती तत्व हैं, लेकिन चिंता का कारण नहीं है.' अधिकारियों के दावे के विपरीत भय का माहौल यूं ही नजर आता है, क्योंकि दीवारों पर हाथ से लिखे पोस्टरों में ताजे फरमान हैं.

अपने आप को जम्मू कश्मीर तहरीक-ए-तालिबान होने का दावा करने वालों ने इन पोस्टरों में लोगों को टीवी नहीं देखने, शराब नहीं पीने, महिलाओं को बिना बुर्का के बाहर नहीं निकलने देने का निर्देश दिया है. इन फरमानों का अफगानिस्तान में तालिबान, इराक और सीरिया में आईएसआईएस के फरमानों से अद्भुत साम्य है.

कश्मीर स्थित 15वीं कोर के कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रत साहा ने कहा, 'जहां तक मेरी बात है तो मैं कहना चाहूंगा कि यह दो-चार ऐसी घटनाएं हैं, जहां हाथों से लिखे तालिबान के नोट या पोस्टर सोपोर में सामने आए. वैसे यह छिटपुट घटनाएं हैं लेकिन यह ढर्रा न बन जाए, उससे पहले उसे गंभीरता से लिया जाए, उसकी जांच की जाए और तार्किक नतीजे तक पहुंचाया जाए.'

हाल ही में कुछ अज्ञात युवकों ने आईएसआईएस के झंडे से मिलते-जुलते झंडे लहराए थे. सभाओं में पाकिस्तानी झंडे लहराने की, तो कई घटनाएं हो चुकी हैं. वैसे पुलिस महानिदेशक के. राजेंद्र ने उन्हें कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी है, लेकिन पुलिस के सूत्र निजी बातचीत में मानते हैं कि धरातल पर ज्यादा कुछ नहीं हुआ है.

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रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत समेत कश्मीर के परिदृश्य पर कड़ी नजर रखने वालों का कहना है, 'कुछ चीजें अच्छी नहीं दिख रही है. आसमान में कुछ काले बादल आ गए हैं.' पुलिस कुछ धार्मिक आतंकवाद समर्थक सभाओं पर अंकुश रखने या उन्हें खत्म करने में असमर्थ है क्योंकि ये घरों में या मस्जिदों में नमाज के बाद होती हैं.

घाटी में दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग से लेकर उत्तर के कुपवाड़ा तक पुलिस बल पारंपरिक रूप से 13 क्षेत्रों में वितरित है, लेकिन केवल तीन जिला पुलिस अधीक्षकों को ही आतंकवाद निरोधक अभियानों का अनुभव है.

ऐसी भी चर्चा है कि सरकार केवल उन अधिकारियों को वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के रूप में नियुक्त करने की योजना बना रही है, जिन्हें विशेष कार्यबल में काम करने का अनुभव नहीं है. यह बल 1990 के दशक के मध्य में आतंकवादियों पर अंकुश पाने के लिए बनाया गया था.

- इनपुट IANS

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