कश्मीर में सर्दी की शुरुआत के साथ ही जहां फिजा में नया रंग घुल गया है, वहीं साइबेरिया, पूर्वी यूरोप, चीन और फिलीपींस से प्रवासी पक्षियों का आगमन भी शुरू हो गया है.
प्रवासी पक्षियों के आगमन के साथ ही शहर के लाल चौक से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित होकर्सर वेटलैंड्स अभयारण्य में दोबारा से जीवन लौट आया है. अभी तक यहां एक लाख से अधिक प्रवासी पक्षी पहुंच चुके हैं.
वन्यजीव संरक्षक (वेटलैंड्स) राउफ अहमद जरगर ने बताया, ‘प्रथम आगमन के रूप में अभयारण्य में ग्रेलेग हंस, मलार्ड, पिनटेल, गेडवाल, पोचर्ड, छोटी बत्तखें, कलगीदार बत्तखें और पानी के पक्षियों की भीड़ इकट्ठा हो गई है.’
उन्होंने बताया, ‘जलकाग जैसे प्रवासी पक्षी भी देखे जा रहे हैं. लेकिन वे यहां कम समय के लिए रूकेंगे. सर्दी बढ़ने के साथ ही वे मैदानी क्षेत्रों में चले जाएंगे.’
प्रवासी पक्षियों के अलावा अभयारण्य में स्थायी रूप से रहने वाले सैंकड़ों बैंगनी रंग के मुर्ग जातीय पक्षी सहित कई अन्य पक्षी भी देखे जा रहे हैं.
जरगर ने बताया, ‘ये यहां रहने वाले पानी के पक्षी हैं. ये वेटलैंड्स अभयारण्य में रहते, खाते और अण्डे देते हैं. लेकिन पिछले एक दशक से नया चलन देखने को मिल रहा है, जिसके परिणामस्वरूप मलार्ड जैसी प्रवासी पक्षियों की कुछ प्रजातियां गर्मियों में घाटी में ही रूक जाती हैं.’
कश्मीर के अन्य प्रमुख वेटलैंड अभयारण्य जैसे शालाबाग, हाइगम और मिरगंड में भी इन मेहमान पक्षियों ने आना शुरू कर दिया है. ये पक्षी अपने गर्मी के घरों की तेज सर्दी से बचने के लिए यहां आए हैं.
गंदेरबल जिला स्थित शालबाग पक्षी अभयारण्य के नजदीक चांदुना गांव निवासी और पक्षियों की निगरानी करने वाले 72 वर्षीय मास्टर हबीबुल्लाह ने बताया, ‘पक्षी अपने गर्मियों के घर से हजारों मील की दूरी तय कर घाटी में पहुंचते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘प्रवासी पक्षी जिस तरीके और अनुशासन में उड़ते हैं, वह देखने योग्य होता है. झुंड का सबसे ज्येष्ठ पक्षी सबसे आगे रहता हैं और अन्य पक्षी उसके पीछे उड़ते हैं.’
उन्होंने बताया, ‘आमतौर पर एक नेता पक्षी होता है, जो हवाई मार्ग से परिचित होता है. अगर किसी कारणवश वह झुंड का नेतृत्व नही कर पाता तो झुंड में दूसरे नम्बर का पक्षी यह जिम्मेदारी सम्भाल लेता है.’