
धरती की जन्नत वही है, बस माहौल और मिजाज बदला हुआ है. ये बदला-बदला कश्मीर है. आर्टिकल 370 हटाने के बाद घाटी में उपजे तनाव और फिर कोरोना की मार ने कश्मीर को पाबंदियों में जकड़ दिया था, लेकिन अब बहारों ने कश्मीर की बेड़ियां तोड़ दी हैं. कश्मीर में बेहतरी की उम्मीदों ने दस्तक दे दी है. श्रीनगर की डल लेक का सूनापन दूर हो चुका है. सैलानियों की चहल पहल बढ़ गई है. लोगों का भरोसा बढ़ा है, उत्तर भारत के तमाम इलाकों में मौसम का पारा चढ़ा है तो लोगों ने श्रीनगर का रुख किया है.
श्रीनगर का लाल चौक अब शांत है
आर्टिकल 370 हटने के बाद आतंकवाद पर नकेल कसने के लिए सरकार ने यहां सुरक्षा व्यवस्था बहुत कड़ी कर दी थी. चप्पे चप्पे पर सैनिक तैनात थे. श्रीनगर का लाल चौक कभी छावनी बना रहता था. बड़े पैमाने पर सुरक्षाबल यहां तैनात रहते थे. क्योंकि देश विरोधी प्रदर्शन सबसे ज्यादा यहीं होते थे. यहीं पर अक्सर पत्थरबाजी भी होती थी, लेकिन अब लाल चौक बिल्कुल शांत है.
अब यहां ना तो सुरक्षाबलों के बूटों की आवाजें हैं और ना ही लाल चौक छावनी बना हुआ है. यहां घूमने आए सैलानी भी कहते हैं कि लाल चौक अब बदला बदला सा है. यहां आम लोगों की चहल पहल है, जो पूरे हिंदुस्तान को सुकून देने वाली है.

दिल्ली, मुंबई समेत तमाम हिस्सों से लोग यहां पहुंच रहे
अरसे से तमाम कश्मीरियों का कारोबार ठप था, क्योंकि यहां सबसे ज्यादा लोग पर्यटन पर ही निर्भर हैं और पर्यटक यहां आ नहीं रहे थे. लेकिन अब लोगों को महसूस हो रहा है कि कश्मीर हर लिहाज से सुरक्षित है, दिल्ली, और मुंबई समेत तमाम हिस्सों से लोग यहां पहुंच रहे हैं. सैलानियों ने कश्मीर का रुख किया तो श्रीनगर में शिकारा चलाने वालों की जिंदगी में भी बहार आ गई.
प्रधानमंत्री की सर्वदलीय बैठक
कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया बहाल करने के लिए 24 जून को प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी. दिल्ली से दिल की नजदीकियों के एजेंडे पर बात हुई थी. कश्मीर के लोग भी अपनी बेहतरी चाहते हैं. वो चाहते हैं कि कश्मीर एक बार फिर गुलजार हो. साल भर बहारें यहां छाई रहें.

परिसीमन पर सवाल
कश्मीर में बदलाव की बयार ने संभावनाओं की सरगम छेड़ दी है. एक तरफ लोगों का कारोबार चल पड़ा है तो वहीं कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियां भी बढने लगी हैं. राजनीतिक प्रक्रिया बहाल करने के आगे सबसे बड़ा सवाल जम्मू कश्मीर के परिसीमन का है, जिसे कश्मीर के तमाम नेता शक की निगाह से देख रहे हैं.
उमर अब्दुल्ला ने सवाल उठाये थे कि परिसीमन में पारदर्शिता नहीं है, तो इसको ऐसे समझें- विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 44 सीटों से भी कम चाहिए क्योंकि लद्दाख़ की सीटें घट गयी हैं. ऐसे में अगर नये परिसीमन में जम्मू की सीटें इस आंकड़े से ऊपर चली जाएं और जम्मू से ही चुनकर सरकार बनने का गणित बैठ जाए तो क्या होगा. कुछ स्टेकहोल्डर्स को लगता है कि ऐसे कश्मीर पर जम्मू का दबदबा बढ़ जाएगा.

24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सर्वदलीय बैठक में कश्मीर के नेताओं ने परिसीमन का मामला उठाया था. केंद्र ने भरोसा दिया था कि जल्द ही परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी.
दो केंद्रशासित प्रदेश- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख
हम आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाया था. इसके बाद राज्य का दर्जा वापस ले लिया गया और प्रदेश दो केंद्रशासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बंट गया. केंद्र सरकार ने यहां नए सिरे से विधानसभा और संसद की सीटों को बनाने के लिए पिछले साल फरवरी में एक विशेष परिसीमन आयोग का गठन किया था.
तमाम राजनीतिक दलों और अधिकारियों के साथ परिसीमन आयोग की लगातार बैठकें हो रही हैं. उम्मीद जताई जा रही है कि अगस्त महीने के आखिर तक परिसीमन आयोग की रिपोर्ट आ जाएगी. जिसके बाद राज्य में चुनावों का रास्ता भी साफ हो जाएगा.
जम्मू-कश्मीर में आख़िरी परिसीमन
जम्मू-कश्मीर में आख़िरी परिसीमन साल 1995 में हुआ था. फिलहाल जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 83 सीटें हैं जिनमें 37 सीटें जम्मू क्षेत्र में और 46 सीटें कश्मीर क्षेत्र में आती हैं इसके साथ ही 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर के लिए भी आरक्षित हैं.
नए परिसीमन में जम्मू कश्मीर में विधानसभा सीटें बढ़ने की संभावनाएं जताई जा रही हैं. जम्मू क्षेत्र के लोग हमेशा एतराज जताते रहे हैं कि उनका प्रतिनिधित्व बढ़ना चाहिए. वहीं कश्मीर के लोगों का तर्क है कि उनका इलाका ज्यादा बड़ा है, प्रतिनिधित्व उनका बढ़ना चाहिए.
जम्मू का प्रतिनिधित्व बढ़ना चाहिए: बीजेपी
बीजेपी चाहती है कि राज्य में जम्मू का प्रतिनिधित्व बढ़ना चाहिए. एक वजह ये भी है कि जम्मू में बीजेपी बेहतर प्रदर्शन करती रही है, जबकि कश्मीर में उसका जनाधार बहुत लचर ही है. जम्मू के नेता 2001 की जनगणना को परिसीमन का आधार बनाना चाहते हैं. उनका कहना है कि 2001 से 2011 के बीच जम्मू क्षेत्र की जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार कश्मीर में जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार से कम रही है. इसको लेकर बीजेपी परिसीमन आयोग के पास अपनी औपचारिक आपत्ति भी दर्ज करा चुकी है.
बीजेपी का मानना रहा है कि अगर जम्मू के हिस्से में ज्यादा सीटें आ गईं तो पार्टी का राज्य में अकेले बहुमत का रास्ता खुल सकता है. जम्मू के लोगों के बीच एक असंतोष ये है कि 1947 के बाद से अब तक जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री बनने वाला शख़्स कश्मीर से आता रहा है, हालांकि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद जम्मू के डोडा इलाक़े से आते हैं.
मनोज सिन्हा जम्मू-कश्मीर का उपराज्यपाल बनने के बाद से ही वहां के लोगों के दिल जीतने की कोशिशों में लगे हुए थे. उन्होंने कश्मीर के नेताओं से भी बातचीत करके उनमें भरोसा जताया. वो कोशिशें रंग ला रही हैं. कश्मीर में आर्टिकिल 370 हटने के 22 महीने बाद राजनीतिक हलचल एक बार फिर बढ़ी है. कश्मीरी खुद चाहते हैं कि वहां चुनाव हों और नई सरकार बने. लेकिन परिसीमन के मसले पर गुपकार गठबंधन के मन में आशंकाएं हैं, शायद इसी के लिए फारुख अब्दुल्ला के घर पर गठबंधन की बैठक बुलाई गई है.
आजतक ब्यूरो